भारत में यहां बनाई जा रही हैं प्लास्टिक की सड़कें

0
254

Plastic Road Construction: क्या प्लास्टिक की सड़कें हैं ज्यादा पक्की?

Plastic Road Construction: हमारे देश की सबसे बड़ी और पहली समस्या है सड़कों पर गढ्ढे और इसके बाद है प्लास्टिक (Plastic Road Construction) जो हमारे पर्यावरण को दूषित कर रहा है, लेकिन शायद ही आप में से किसी को ये मालूम होगा कि इन दोनों समस्याओं का निवारण ये दोनों खुद ही कर सकते हैं, आइए जानते हैं कैसे?

दरअसल एक सड़क बनाने में काफी खर्च आता है, इन सड़कों को बनाने में हजारों बैरल तेल का इस्तेमाल किया जाता है और बावजूद इसके इन सड़कों में कुछ ही दिनों में गड्ढे दिखाई देने लगते हैं। वहीं अगर परसेंटेज की बात की जाए तो एक सड़क को बनाने में 90 प्रतिशत पत्थर और 10 प्रतिशत बिटेमिन का इस्तेमाल होता है और बिटेमिन हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानीकारक साबित होता है।

दरअसल बिटेमिन को क्रूड ऑयल से निकाला जाता है जो सड़क बनाने वाले मटीरियल को एक दूसरे से बांधकर रखता है। बिटेमिन महंगा होने के साथ साथ ज्यादा टिकाऊ भी नहीं होता है यही कारण था कि एक ऐसी तकनीक का आविष्कार किया गया जो सस्ती हो, टिकाऊ हो और साथ ही पर्यावरण को नुकसान भी न पहुंचाए।

ये भी पढ़ें:
kamar ali darvesh dargah
इस छोटे से पत्थर को नहीं उठा सकता कोई पहलवान भी

प्लास्टिक से सड़क (Plastic Road Construction) बनाने की इस तकनीक को जन्म देने वाले प्रोफेसर का नाम है राजगोपालन वासुदेवन। राजगोपालन वासुदेवन (Rajagopalan Vasudevan) मदुरै के त्यागराजार कॉलेज में केमेस्ट्री के प्रोफेसर हैं जिन्होंने एक ऐसी तकनीक (Plastic Road Construction) का आविष्कार किया जिससे दो परेशानियों का समाधान निकल सके और वो भी कम दाम में।

जिस प्लासटिक (Plastic Road Construction) से हमारे पर्यावरण को नुकसान होता है, बेजुबानी जीव मरने तक की कागार में आ जाते हैं, आज उसी प्लास्टिक (Plastic Road Construction) को प्रोफेसर ने सड़क बनाने में इस्तेमाल कर दिखाया है। इस तकनीक से न केवल प्लास्टिक को सही तरीके से डिसपोज किया जा सकता है बल्की इससे सड़क निर्माण (Plastic Road Construction) में काफी पैसा भी बच सकता है।

प्रोफेसर द्वारा बताया गया कि 1 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने में करीबन 1 टन प्लास्टिक वेस्ट (Plastic Road Construction) का इस्तेमाल होता है। आपको बता दें कि प्लास्टिक वेस्ट से सड़क (Plastic Road Construction) बनाने का परिक्षण उन्होंने सबसे पहले अपने कॉलेज में किया, उनके द्वारा साल 2002 में अपने कॉलेज में इस तकनीक से सड़क का निर्माण कराया गया।

ये भी पढ़ें:
Gold Rain in India
जब आसमान से होने लगी सोने की बारिश

इस प्रकार की सड़क (Plastic Road Construction) को लेकर राजगोपालन द्वारा बताया गया कि इन सड़कों पर पानी रिसता नहीं है जिसके कारण इस प्रकार की सड़कें लंबे समय तक टिकी रहती हैं और न ही इन सड़कों पर गड्ढे जल्दी होते हैं। प्लास्टिक से बनी सड़कों (Plastic Road Construction) की मेनटेनेंस की बात की जाए तो इन्हें 10 से 15 सालों तक किसी भी प्रकार के मेनटेनेंस की कोई दरूरत नहीं पड़ती है।

इसके बाद उन्होंने अपने इस फॉर्मुले को पेटेंट कराया जिसे खरीदने के लिए देश विदेश की कई कंपनियों ने उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन प्रोफेसर राजगोपालन ने किसी को भी अपना ये फॉर्मुला नहीं बेचा बल्की उन्होंने भारत सरकार को अपना ये फॉर्मुला (Plastic Road Construction) फ्री में दिया जिसके लिए उन्हें नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी नवाजा गया।  

इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए भारत में अबतक 11 राज्यों में प्लास्टिक की सड़कें (Plastic Road Construction) बन चुकी हैं और इस सड़क की लंबाई की बात की जाए तो ये करीबन 1 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है।

ये भी पढ़ें:
Suicide Plant
इस पौधे को छूने के बाद क्यों करते हैं लोग आत्महत्या?

For latest news of Uttarakhand subscribe devbhominews.com