Draupadi ka Danda
चार अक्टूबर को उत्तरकाशी जिले के द्रौपदी डांडा चोटी पर एवलांच आया था। निम यानी नेहरु पर्वतारोहियों का दल इसकी चपेट में आ गया था। आप में से बहुत से लोग ये जरुर जानना चाह रहे होंगे की आखिर इस चोटी का नाम द्रौपदी का डांडा क्यों और कैसे पड़ा?
Draupadi ka Danda : यहां से पांडव गए थे स्वर्ग
कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव यहीं से स्वर्ग गए थे। इस जगह से पूरा हिमालय क्षेत्र दिखता है। ऐसे में इसका नाम द्रौपदी का डांडा रख दिया गया। माना जाता है कि आज भी स्थानीय लोग इस पर्वत की पूजा करते हैं।
द्रौपदी का डांडा समुद्रतल से 18,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां जाने के लिए पहले उत्तरकाशी से भटवाड़ी पहुंचना पड़ता है। वहीं तीन किलोमीटर की दूरी पर भुक्की गांव स्थित है और यहां से 3 किमी आगे तेल कैंप, इसके बाद 3 किलोमीटर की दूरी पर गुर्जर हट हैं इसके आगे चार किमी की दूरी पर बेस कैंप है।
बेस कैंप से ढ़ाई किमी की दूरी पर एडवांस बेस कैंप हैं। यहां से करीब ढाई किमी दूर डोकराणी ग्लेशियर है यहां पर समिट कैंप लगाया जाता है। समिट कैंप से लगभग 1.5 किमी की दूरी पर डीकेडी चोटी की ओर से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर मंगलवार को सुबह एवलांच आया था।
Draupadi ka Danda : आज भी ग्रामीण करते हैं इसकी पूजा
आज भी भटवाड़ी क्षेत्र के ग्रामीण इस पर्वत की पूजा करते हैं। वो इसकी तलहटी में स्थित खेड़ा ताल को नाग देवता का ताल मानते हैं। हर साल ग्रामिण इस ताल में पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं।
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