तेरहवीं का खाना खाने वाला क्यों होता है पाप का भागीदार?

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Terahvi Sanskar
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Terahvi Sanskar:  अगर आपने भी तेरहवीं का खाना खाया है तो हो जाएं सावधान!

Terahvi Sanskar: अगर आपने भी कभी तेरहवीं का खाना खाया है तो आपको भी सावधान होने की जरूरत है, अब आप में से कुछ लोगों के दिमाग में आ रहा होगा कि क्यों नहीं खा सकते? वहीं कुछ लोगों के दिमाग में आ रहा होगा कि ऐसा कुछ नहीं है। मगर इस बात का तर्क जो हम आपको आज देगें वो सुनकर आपके भी होश उड़ जाएंगे और आप इस विषय पर सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।

परिवार में जब किसी की मृत्यु होती है तो 13 दिन बाद मृत व्यक्ति की आत्मा की शांती के लिए तेरहवीं (Terahvi Sanskar) का आयोजन किया जाता है। इस समय पर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और साथ ही साथ अपने आस पास के लोगों और रिश्तेदारों को भी भोजन कराया जाता है।

मगर गरुड़ पुराण में ऐसा कुछ भी वर्णित नहीं है, जिसमें कहा गया हो कि रेश्तेदारों और आसपास के लोगों को खाना खिलाने से आत्मा को शांती मिलती है, फिर कहां से ब्राह्मणों के अलावा अन्य लोगों को भी खाना खिलाने का चलन शुरू हुआ। तेरहवीं (Terahvi Sanskar) से जुड़े हर तथ्य के बारे में आज आपको जानने को मिलेगा।

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गरुड़ पुराण के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके परिजनों को उस व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए और साथ ही यमलोक तक की यात्रा तय करने के लिए पूजा और तर्पण देना चाहिए। जब कोई आत्मा यमलोक का सफर तय करती है तो बीच में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इन्हीं कठिनाइयों का सामना करने के लिए उन्हें एक ऊर्जा की जरूरत होती है जो उन्हें उनके परिजनों द्वारा किए गए तर्पण और पूजा पाठ से मिलती है जो इन 13 दिनों में किए जाते हैं।

12 दिनों तक किए जाने वाले पिंड दान से आत्मा को ताकत मिलती है ताकी वो यमलोक तक पहुंच सके और इसके बाद 13वें दिन मृत व्यक्ति के परिजनों द्वारा ब्रह्मभोज का आयोजन किया जाता है जिसमें अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। मगर तेरहवीं (Terahvi Sanskar) पर ब्राह्मणों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को भोजन कराने का प्रावधान नहीं है, लेकिन आजकल लोगों द्वारा अपनी क्षमता से ज्यादा तेरहवीं (Terahvi Sanskar) पर एक बड़ा भोज रखा जाता है, जिसे आजकल लोग मृतभोज भी कहते हैं।

आपको बता दें कि ब्रह्मभोज को मृतभोज कहना गलत होता है क्योंकि ब्रह्मभोज में केवल ब्राह्मणों को ही भोजन काराया जाता है। इस दिन 1, 13 या फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार कितने भी ब्रह्मणों को ब्रह्मभोजन कराना चाहिए और भोजन के साथ ही एक सफेद साफी, जनेऊ और एक पात्र दान में देना चाहिए।

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अब आपको बताते हैं कि ब्राह्मणों के अलावा अन्य लोगों को खाना खिलाने की प्रथा कहां से शुरू हुई। दरअसल जब परिवार के मुखिया की मृत्यु होती है तो उसके बाद परिवार का नया मुखिया चुना जाता है। इस दौरान परिवार के मुखिया के मरने के 13 दिन बाद एक पगड़ी रस्म की जाती है, इसमें परिवार के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति को पगड़ी बांधी जाती है और आस पास के लोगों और रिश्तेदारों को खाना खिलाया जाता है। बस इसी के बाद से मनुष्य तेहरवीं (Terahvi Sanskar) पर भी लोगों को खाना खिलाने लगे।

अब आपको बताते हैं कि आखिरकार क्यों आपको किसी की भी तेरहवीं (Terahvi Sanskar) पर खाना नहीं खाना चाहिए। इस बात का वर्णन गरुड़ पुराण में नहीं बल्की महाभारत में किया गया है। दरअसल महाभारत के युद्ध से पहले श्री कृष्ण दुर्योधन से संधि करने के लिए उनके पास गए थे, लेकिन दुर्योधन था कि उसे युद्ध ही लड़ना था। ऐसे में श्री कृष्ण वहां से लौटने लगे और तभी दुर्योधन श्री कृष्ण से भोजन करके जाने का आग्रह करता है, लेकिन श्री कृष्ण मना कर देते हैं।

श्री कृष्ण कहते हैं,”हे दुर्योधन जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न न हो तो ऐसे में भोजन नहीं करना चाहिए, यदी दोनों के दिल में दर्द है तो ऐसे में भोजन करना पाप के समान होता है”

इसी कारण किसी भी प्रकार का शोक जैसे की तेरहवीं (Terahvi Sanskar) पर ब्राह्मणों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को भोजन नहीं कराना चाहिए, क्योंकि जब किसी परिवार में किसी की मृत्यु होती है तो ऐसे में परिवार के लोगों को उस मृत्यु का दुख होता है और वहां मौजूद सभी लोग भी मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हैं। ऐसा भोजन आपके अंदर अशांति लाता है और आपके अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है। तो अगली बार आप जब भी किसी शोक समारोह (Terahvi Sanskar) में जाएं तो वहां खाने से पहले इस बात को एक बार जरूर याद करलें।

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