/ Sep 17, 2024
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क्यों कहा जाता है इन्हें न्याय का देवता?

Mahasu Devta Chakrata: इस मंदिर में आता है राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक

Mahasu Devta Chakrata: प्रकृति की गोद में बसा वो मंदिर जहां न्याय के देवता विराजते हैं। इनसे मांगी गई हर मुराद पूरी जरूर होती है। इस मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) की इतनी मान्यता है कि हर साल यहां राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक दान किया जाता है।

ये चमत्कारी मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) चकराता के हनोल गांव में स्थित है जिसका नाम है महासू देवता मंदिर (Mahasu Devta Chakrata). हर साल देश विदेश से लाखों श्रद्धालू महासू देवता के दर्शन करने आते हैं और उनसे न्याय की गुहार लगाते हैं।

महासू देवता मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) में सिर्फ एक देवता नहीं विराजते बल्की यहां चार देवता विराजते हैं, जो 4 भाई हैं। इन चारों को सामुहिक नाम दिया गया है महासू, लेकिन इनके अलग अलग नाम हैं, इनके नाम हैं बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू। ये चारों भाई भगवान शिव का रूप हैं जिसके कारण इन्हें सामुहिक नाम दिया गया महासू जिसका अर्थ है महाशिव का अपभ्रंश।

लोक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) का निर्माण 9वीं शताब्दी में पांडवों द्वारा किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने घाटा पहाड़ से मंदिर बनाने के लिए पत्थरों को ढोया था और देव शिल्पी विश्वकर्मा की मदद से उनके द्वारा हनोल में इस मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) का निर्माण किया गया था।

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हैरानी की बात तो ये है कि ये पूरा मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) बिना गारे की चिनाई से बना हुआ है लेकिन बावजूद इसके ये मंदिर कई हजारों सालों से मजबूती के साथ खड़ा हुआ है। मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) के गर्भगृह के ठीक ऊपर भीम छतरी नामक एक विशाल पत्थर मौजूद है जो भीमसेन खुद घाटा पहाड़ से लाए थे।

महासू देवता मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) प्रांगड़ में सीसे के दो गोले भी मौजूद हैं जिन्हें उठाना हर किसी के बस की बात नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इन गोलों से भीम कंचे खेला करते थे। ये सीसे के गोले दिखने में छोटे जरूर हैं लेकिन इन्हें उठाना बेहद मुश्किल है।

इनमें से एक का वजन 240 किलो है वहीं दूसरे गोले का वजन है 360 किलो। इन गोलों को उठाना किसी पहलवान के बस की बात भी नहीं है लेकिन अगर कोई भक्त इन गोलों को सच्चे और पवित्र मन से उठाते हैं तो ये गोले उठाए भी जा सकते हैं। महासू देवता को उत्तराखंड सहित हिमाचल में भी अपने ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है। 

वर्तमान की बात की जाए तो यह मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है। टौंस नदी के किनारे बसे इस मंदिर की एक पौरैणिक कथा काफी प्रचलित है। इस कथा के अनुसार टौंस नदी के आसपास के क्षेत्रों में राक्षस किरमिक का काफी आतंक था जिसके बाद इस राक्षस से सभी को छुटकारा दिलाने के लिए एक ब्राह्मण द्वारा भगवान शिव और शक्ति की पूजा की गई। इस ब्राह्मण का नाम था हुणाभाट जिनकी पूजा से प्रसन्न होकर हनोल में भगवान शिव द्वारा चार भाइयों की उत्पत्ती हुई जिनका नाम था महासू।

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महासू द्वारा इस राक्षस को मौत के घाट उतारा गया जिससे क्षेत्र से राक्षस का आतंक खत्म हो गया, बस इसी के बाद से पूरे क्षेत्र में महासू को देवता के रूप में पूजा जाने लगा और इन्हें न्याय के देवता की उपाधी दी गई।

अगर आप में से किसी को महासू देवता के दर्शन करने जाना हैं तो इसके 3 रस्ते हैं। अगर आप देहरादून से होते हुए महासू देवता के मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) जाते हैं तो आपको विकासनगर से होते हुए चकराता जाना होगा, इसके बाद त्यूणी से होते हुए आप हनोल गाव पहुंचेगें, देहरादून से महासू मंदिर की दूरी करीबन 188 किलोमीटर है।

वहीं आप देहरादून के मसूरी से होते भी इस मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) तक पहुंच सकते हैं। मसूरी से आपको सबसे पहले नैनबाग आना होगा, इसके बाद पुरोला, फिर मोरी से होते हुए आप हनोल गांव तक पहुंच सकते हैं। मसूरी से महासू देवता की तक दूरी करीबन 175 किलोमीटर है।

वहीं देहरादून से ही महासू मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) जाने के लिए एक और रस्ता है जिसकी दूरी है 178 किलोमीटर। आपको सबसे पहले देहरादून से विकासनगर आना होगा, यहां से आप छिबरौ डैम, क्वाणू, मिनस, हटाल होते हुए त्यूणी पहुंचेगे और त्यूणी से आगे आएगा हनोल गांव जहां महासू देवता का मंदिर स्थापित है।

आपको बता दें कि महासू देवता के मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) के गर्भ गृह में भक्तों को जाने की अनुमती नहीं है, यहां केवल मंदिर के पुजारी ही जा सकते हैं। वहीं इस मंदिर में कई दशकों से एक ज्योति जलती रहती है जो आजतक नहीं बुझी है। इसके साथ ही इस मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) के गर्भ गृह में पानी की एक धारा हमेशा बहती रहती है। आज तक किसी को भी ये मालूम नहीं पड़ा है कि ये पानी आ कहा से रहा है और जा भी कहा रहा है। इसी पानी को मंदिर (Mahasu Devta Chakrata) में आने वाले भक्तों के बीच प्रसाद से तौर पर बांटा जाता है।

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