Lavasa Controversy: भारत में बनी 2 लाख करोड़ की स्मार्ट सिटी कैसे हुई फेल?

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Lavasa Controversy
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Lavasa Controversy में क्यों आई?

National News Desk: भारत में एक सपना देखा गया, सपना था इटली के पोर्टोफिनो की तरह ही भारत में भी एक ऐसा ही शहर बनाने का। ये सपना देखा गया था हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन के एमडी अजीत गुलाबचंद द्वारा। अजीत गुलाबचंद ने जो सपना देखा था उसे पूरा करने का भी ठान लिया था। अजीत गुलाबचंद ने महाराष्ट्र के पूणे से करीबन 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सह्याद्री पर्वत श्रृंखला को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए चुना। इस काम के लिए अजीत गुलाबचंद ने वर्ल्ड की बेस्ट आर्किटेक्ट कंपनी को चुना। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए “hellmuth Obata & Kassabaum” को चुना गया और फिर बस तेज़ी से इस पर काम करना शुरू कर दिया गया।

कब हुई Lavasa Project की शुरुआत?

ajit gulabchand
Source: Social Media

अजीत गुलाबचंद ने इस प्रोजेक्ट को नाम दिया Lavasa The Lake City. इस प्रोजेक्ट की योजना सन 2000 में बनाई गई और 2002 से इसका निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। Lavasa को 5 सब- टाउन्स (Sub-Towns) में डिवाइड किया गया। पहला टाउन पूरी तरह से रिहायशी तौर पर बनाया गया, दूसरा कमर्शियल टाउन बनाया गया, तीसरा टाउन आईटी सेक्टर (IT Sector) के लिए बनाया जाने वाला था, चौथा टाउन अम्यूजमेंट पार्क के लिए बनाया जाना था और पांचवा टाउन फिल्म सिटी के तौर पर बनाया जाने वाला था। इसके साथ ही प्लॉन के मुताबिक Lavasa में गोल्फ कोर्स बनाया जाना था और बच्चों के लिए पार्क बनाए जाने थे।

Lavasa Controversy में कब आई?

वहीं Lavasa Project के लिए एक बड़ी उपलब्धी ये थी कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी भी यहां एक नया सेंटर बनाने वाली थी। कई विदेशी कंपनिया भी इस प्रोजेक्ट पर निवेश कर रही थीं। 2004 तक इस प्रोजेक्ट ने अच्छी खासी स्पीड पकड़ ली थी और चार साल के अंदर Lavasa Project के 2 शहर पूरी तरह से बनकर तैयार हो चुके थे। मगर फिर Lavasa Project UNESCO के घेरे में आ गया और फिर Lavasa के ऊपर मुसीबतों के काले बादल मंडराने लगे।

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UNESCO ने Lavasa Project पर क्यों जताया एतराज़?

दरअसल जिस सह्याद्री पर्वत श्रृंखला पर Lavasa के Dream Project को तैयार किया जा रहा था वो UNESCO प्रोटेक्टेड एरिया है, जिसके चलते इस क्षेत्र में किसी भी तरह का काम करने या कराने से पहले UNESCO द्वारा परमिशन लेना जरूरी है और Lavasa ने यहीं पर गलती (Lavasa Controversy) कर डाली। अब UNESCO द्वारा जब बार बार ऑब्जेक्शन किया जाने लगा तो पर्यायवरण मंत्रालय ने इस ओर कड़ा कदम उठाते हुए Lavasa Project पर 1 साल के लिए रोक लगा दी।

Lavasa के निर्माण के लिए क्यों नहीं ली गई केंद्र सरकार की इजाजत?

दरअसल Lavasa Project की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार द्वारा कभी कोई परमिशन दी ही नही गई थी। इस प्रोजेक्ट के लिए अजीत गुलाबचंद ने केवल राज्य सरकार से ही परमिशन ली थी और केंद्र सरकार से इसकी परमिशन लेना उन्होंने ज़रूरी ही नही समझा जिसके बाद Lavasa lake City का काम रोक (Lavasa Controversy) दिया गया।

Lavasa Controversy में क्यों आई?

Lavasa Controversy
Source: Social Media

Lavasa Controversy: इसके बाद केंद्र सरकार के मुताबिक किसी भी हिल स्टेशन में कोई भी इमारत 100 मीटर से ऊंची नही होनी चाहिए, जबकी Lavasa Project की सभी इमारते 100 सीटर से ऊंची थी। इसके बाद यदी किसी प्रोजेक्ट की लागत 50 करोंड़ से ज्यादा है और उसमें रहने वाले लोगों की संख्या हज़ारों में हो तो भी इसकी परमिशन केंद्र सरकार से लेनी जरूरी है, जो कि फिरसे Lavasa Project द्वारा नही ली गई।

महाराष्ट्र सरकार क्यों थी Lavasa Project पर इतनी मेहरबान?

अब Lavasa Project पर सवाल (Lavasa Controversy) तब खड़े हुए जब लगातार 8 सालों तक इस प्रोजेक्ट पर काम करने का बाद इसे रोक दिया गया। तो क्या अब तक राज्य सरकार की मेहरबानियों के बदौलत इस प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा था। Lavasa Project में साफ तौर पर राज्य सरकार का इंवॉल्वमेंट नज़र आ रहा था क्योंकि महाराष्ट्र सरकार द्वारा Lavasa Project को स्पेशल प्लॉनिंग अथॉरिटी (special planning authority) के दर्जे पर रखा गया था। आपको बता दें कि ये दर्जा केलव सरकार के लिए काम कर रही संस्थाओं को ही दिया जाता है।   

इसी दौरान ही महाराष्ट्र के आईपीएस अधिकारी योगेश प्रताप सिंह ने भी महाराष्ट्र सरकार पर ये आरोप लगाया की Lavasa (Lavasa Controversy) को राज्य सरकार द्वारा जो जमीन दी गई वह मिट्टी के भाव गई। बताया ये भी जा रहा था कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा Lavasa को 25000 एकड़ जमीन केलव 23000 रुपय महीना लीज़ पर दी गई थी। मगर असल सवाल ये है कि आखिरकार क्यों महाराष्ट्र सरकार Lavasa पर इतना मेहरबान हो रही थी, क्यों इतने कम दामों में Lavasa को ये 25000 एकड़ की जमीन दे दी गई।

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अजीत पंवार का Lavasa Controversy में कैसे था हाथ?

sharad pawar with ajit pawar
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दरअसल उस समय महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री और डिप्टी सीएम थे अजीत पंवार जो कि शरद पंवार के भांजे थे। शरद पंवार की बेटी सुप्रिया सुले और दमाद सदानंद सुले यशोमला कंपनी में स्टेक होल्डर्स थे और यशोमला कंपनी के Lavasa Project में 20.8% के शेयर थे। तो अब आप समझ ही गए होगें कि क्यों महाराष्ट्र सरकार Lavasa पर इतनी मेहरबान हो रही थी। इस मेहरबानी का नतीजा निकला की Lavasa एक के बाद एक बिल्डिंगें बनाता रहा और फिर जब घेरे में आया तो ऐसा आया कि आज ये ड्रीम प्रोजेक्ट खंडर बनने तक की कागार में आ गया।

Lavasa Controversy के चलते इंवेस्टर्स ने वापस खींचे अपने हाथ

Lavasa Controversy
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इसके बाद इस प्रोजेक्ट पर रोक लगने का एक कारण ये भी था कि जिन 18 गांवों से इस प्रोजेक्ट को बनाने के लिए जमीन खरीदी गई थी उनके पेमेंट को लेकर भी कई विवाद खड़े हुए थे और जब Lavasa Project को लेकर इतनी सारी कॉन्ट्रोवर्सीज (Lavasa Controversy) होने लगी तो इस प्रोजेक्ट से धीरे धीरे सभी Investors अपना हाथ वापस खींचने लगे और जो लोग पहले से ही इंवेस्ट कर चुके थे उनका सारा पैसा डूब गया और फिर Lavasa Project पर काम होना बंद हो गया।

अब किस काम आ रही है Lavasa The Lake City?

Lavasa Controversy: ये ड्रीम प्रोजेक्ट पूरा तो नही हो सका लेकिन आज यहां लोग इस जगह को देखने आते हैं, घूमने आते हैं और साथ ही ये देखने आते हैं कि करोड़ों की लागत से बनी Lavasa Lake City असल में कैसी दिखाई देती होगी। इतना पैसा लगने के बावजूद भी इस जगह से कंपनी को कोई लाभ नही हुआ बल्की ये बैंककरप्ट ही हो गई। अब यहां लोग वीजियो बनाने आते हैं, फोटोग्राफी के लिए आते हैं, प्रकृति का लुत्फ उठाने आते हैं, एकांत में कुछ समय बिताने आते हैं, वॉटर एक्टिविटी करने आते हैं, बस यहीं तक सीमित रह गया भारत का स्मार्ट हिल स्टेशन Lavasa.

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