इस मंदिर में देवी लक्ष्मी ने खुद खोदा था पवित्र कुंड

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Tadkeshwar Mahadev Temple: कैसे पड़ा भगवान शिव का नाम ताड़केश्वर महादेव?

Tadkeshwar Mahadev Temple: देवदार और बलूत जंगलों से घिरा मंदिर, जहां माता लक्ष्मी ने स्वंय अपने हाथों से एक पवित्र कुंड का निर्माण किया था। इसी कुंड के पवित्र जल से आज महादेव के इस मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) में मौजूद शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है।

ये मंदिर पौड़ी जिले के लैंसडाउन से करीबन 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसका नाम है ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple). ये मंदिर समुद्रतल से करीबन 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जहां भगवान शिव विराजमान हैं। इस मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) में शाल के पत्ते और सरसों का तेल ले जाना वर्जित है।

यहां इस मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार ताड़कासुर नाम के एक राक्षस ने इसी स्थान पर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, ताड़कासुर की तपस्या ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और भगवान शिव ने ताड़कासुर को अमरता का वरदान दिया।

इसके अलावा ताड़कासुर को ब्रह्मदेव द्वारा भी एक वरदान प्राप्त था। ताड़कासुर ने ब्रह्मदेव की घोर तपस्या कर उनसे ये वरदान मांगा था कि उनके आगे कोई भी बलवान न हो और उनकी मृत्यु केवल एक शिव पुत्र ही कर सके।

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भगवान शिव द्वारा वरदान प्राप्त करने पर ताड़कासुर ने चारों ओर अत्याचार करना शुरु कर दिया। ताड़कासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी देवी- देवता और ऋषि मुनी भगवान शिव की शरण में पहुंचे और उनसे ताड़कासुर का वध करने का अनुरोध किया।   

अब अमरता का वरदान देने के बाद खुद भगवान शिव भी ताड़कासुर का वध नहीं कर सकते थे, जिसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का पहला पुत्र जन्मा जिसका नाम था कार्तिकेय। भगवान शिव का आदेश पाने के बाद कार्तिकेय ने ताड़कासुर से युद्ध लड़ा जिसमें ताड़कासुर कमजोर पड़ने लगा।

अपनी हार पास देख ताड़कासुर भगवान शिव के पास माफी मांगने पहुंचा। अब करुणा दिल भोले बाबा ने ताड़कासुर को माफ कर दिया और उसे वरदान दिया कि कलयुग में इसी जगह पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से की जाएगी, जिसके कारण इस जगह पर भगवान शिव को ताड़केश्वर महादेव (Tadkeshwar Mahadev Temple) के नाम से जाना जाता है।

इस मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) के पास 7 देवदार के पेड़ मौजूद हैं, इन पेड़ों को पार्वती माता का रुप माना जाता है। दरअसल कार्तिकेय द्वारा जब ताड़कासुर का वध कर दिया गया तो भगवान शिव इसी स्थान पर विश्राम करने पहुंचे। विश्राम करते समय भगवान शिव पर सूरज की तेज करणें पड़ रही थी जिसके बाद माता पार्वती स्वंय 7 देवदार के पेड़ों के रुप में यहां प्रकट हुईं और भगवान शिव पर छाया की।

ये 7 देवदार के पेड़ आज भी इस मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) के पास मौजूद हैं, जिन्हें पार्वती माता के रुप में पूजा जाता है। इस मंदिर पर भक्तों की काफी आस्था हैं, यहां मांगी गई हर मुराद पूरी जरूर होती है और मुराद पूरी होने पर भक्त यहां घंटी चढ़ाते हैं। मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) में मौजूद हजारों घंटियां इस बात का सबूत है कि इस मंदिर (Tadkeshwar Mahadev Temple) मांगी गई हर मुराद पूरी जरूर होती है।

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