एक ऐसी वीरांगना, पति पर गोलियां बरसा रहे थे अंग्रेज, फिर भी नहीं झुकने दिया तिरंगा

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यूं तो भारत आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है।  हमें आजादी एक दिन एक हफ्ते एक महीने में नहीं मिली बल्कि कई सालों तक हमारे देश के असंख्य लोगों ने आजादी के लिए संघर्ष किया अपने प्राणों की आहूति दी। तब जाकर हमें एक आजाद देश का दर्जा प्राप्त हुआ।

उन महान यौद्धाओं की वजह से आज हम इस खुली हवा में खुलकर सांस ले पा रहे हैं लेकिन इन्हीं वीरों में से बहुत से वीर ऐसे हैं जिन्हें संपूर्ण देश जानता है लेकिन बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने खुशी खुशी देश के लिए अपनी जान दे दी लेकिन इतिहास के पन्नों से गायब हैं। ऐसी ही एक महिला थी तारा रानी  श्रीवास्तव। इन्होंने भारत को आजाद करवाने में अपनी अहम भूमिका निभाई थी।

इनका जन्म बिहार के सारण जिले में हुआ था। फुलेंदू बाबू नाम के एक शख्स से काफी कम उम्र में तारा रानी का विवाह हो गया था।

तारा रानी छोटी सी उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गई थी। उनके पति फुलेंदू बाबू गांधी जी के अनुयायी और स्वतंत्रता सेनानी थे और वे अक्सर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जुलूस निकालते थे। और यहीं से तारा रानी ने आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता दर्ज करानी शुरु की।  

 उस  समय शादीशुदा महिलाओं पर बहुत पाबंदियां होती थीं लेकिन बावजूद इसके  तारा रानी ने घर की चारदीवारी से निकल कर न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया, बल्कि अन्य महिलाओं को भी इस संग्राम से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और इनसब में उनके पति फुलेंदू ने उनका पूरा साथ  दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान फुलेंदू बाबू विरोध प्रदर्शन और जुलूस निकालते थे। इसी दौरान 12 अगस्त 1942 को फुलेंदू बाबू सारन पुलिस थाने तक जुलूस निकाल रहे थे। उनकी थाने की छत से ब्रिटिश सरकार का झंडा उतार कर भारत का तिरंगा फहराने की योजना थी। हालांकि अंग्रेजो ने जुलूस पर लाठीचार्ज कर दिया और लोगों पर गोली चलाने लगें। तारा रानी के सामने फुलेंदू बाबू को अंग्रेजों ने गोली मार दी। पति सामने घायल पड़े थे, पर तारा कमजोर नहीं पड़ीं।

तारा के हाथ में तिरंगा था, पर पति को इस अवस्था में देखकर भी उन्होंने तिरंगा नहीं छोड़ा। उन्होंने साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर फुलेंदू बाबू को पट्टी बांधी और उन्हें एक सुरक्षित स्थान पर छोड़ा और प्रदर्शन जारी रखा। उन्होंने धाने में पहुंचकर तिरंगा फहराया। हालांकि जब तक वो अपने पति के पास पहुंची तब तक वो शहीद हो चुके थे ।तारा ने हमेंशा के लिए अपने पति को खो दिया था। फिर बिहार के छपरा में उनकी याद में एक प्रार्थना सभा रखी गई थी।

पति की शहादत को उन्होंने ऐसी ही जाने नहीं दिया। वो लड़ती रही और आखिर में तारा रानी औऱ फुलेंदू बाबू समेत तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का संघर्ष रंग लाया और ठीक 5 साल बाद यानी 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिल गई।