धामी निकाल पाएँगे मंत्री-विधायकों की सबसे बड़ी समस्या का हल?

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devbhoomi

चेतक पर अगर महाराणा प्रताप की जगह मुंगेरीलाल सवार होते तो क्या होता ज़रा सोचिए! हल्की सी हरकत मे पटक देता चेतक, सवार होने के अंदाज से समझ जाता की ये महाराणा नहीं है. चेतक समर्थ है, योग्य है, बुद्धिमान है, शक्तिमान भी है, असीम प्रतिभा और क्षमताओं का स्वामी है, चेतक नौकरशाह है. देश की सर्वोच्च प्रतियोगिता परीक्षा को लाँघ कर आया है. उसे सिर्फ़ महाराणा ही हांक सकते हैं. सिर्फ़ महाराणा ही हैं जो उसकी क्षमताओं का सर्वश्रेष्ठ तरीके से उपयोग कर सकते हैं, राष्ट्रहित मे. राष्ट्रहित यहाँ महत्वपूर्ण है.

अब यदि आप 650 एम. जी. पैरासीटामोल से डेंगू ठीक करेंगे तो ये कालिदास की भाँति उष्ट्र को उटर बोलने जैसा होगा, चेतक तुरंत समझ जाएगा की ये महाराणा नहीं हैं. फिर आप शिकायत करते हैं की चेतक निरंकुश हो गया है, उद्दंड हो गया है. अब सतपाल महाराज कह रहे हैं कि नौकरशाहों की सी. आर. लिखने का अधिकार मंत्रियों को दे दो. क्या सिर्फ़ चेतक की लगाम थामने भर की इज़ाज़त मिलने से हो जाएगा? आपको महाराणा बनना ही होगा. कोई विकल्प नहीं इसके सिवाय.

वैसे पुष्कर धामी की दूसरी इनिंग की शुरुआत मे प्रधानमंत्री मोदी ने आकर कहीं ना कहीं नौकरशाही को भी संदेश दे दिया है कि काम अब मेरे अंदाज मे होगा. और जिस तरह से धामी के तेवरों की खबरें आ रहीं हैं उनसे ये प्रमाणित भी हो रहा है. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के नाते ये मीडीया की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि ऐसे सवालों की बौछार करता रहे जिससे राज्य को विकास-पथ पर ले जाने वाले अपने पथ से विमुख ना होने पाएँ. नौकरशाह के लिए नियमों के व्यूह मे से निकलने के रास्ते ढूँढना क्या मुश्किल काम है?

चेतक की लगाम अपने हाथ मे देने की बात सार्वजनिक रूप से करने वाले महाराज जिस पर्यटन विभाग के मंत्री बनना चाह रहे हैं वो उत्तराखंड को मिला हुआ गॉड-गिफ्ट है. इस राज्य का हर कोना पर्यटन स्थल है, थोड़ा सा संवार भर दीजिए उसे. महाराज के अलावा उनकी धर्मपत्नी भी इस विभाग की मंत्री रह चुकी है. इस विभाग ने राज्य निर्माण से लेकर अभी तक कितने नये टूरिस्ट डेस्टिनेशन डेवेलप कर दिए और कितने पहले से ही मौजूद की कायाकल्प कर दी, ये दिखता है सबको, आप जितना मर्ज़ी गाल बजाते रहिए.

और अगर आपको उत्तराखंड पर्यटन के क्षेत्र मे विकास देखना हो तो कागज मे देख लीजिए. कोने कोने मे भर भर के मिलेगा. हाल ही मे उस विकास को ढूँढ कर पर्दे पर दर्शाने के लिए फिल्में बनाने का टेंडर निकाला है पर्यटन विभाग ने. जमा करने की आख़िरी तारीख है 11 एप्रिल 2022. 2020 मे भी एक ऐसे ही टेंडर के ज़रिए 5 करोड़ 31 लाख रुपये की लागत से 1 से 2 मिनट की तीन, 5 से 6 मिनट की दो और 30 सेकेंड की 5 फ़िल्मे बनवाई थी पर्यटन विभाग ने. वें कहाँ चली हैं? किस राज्य या देश के पर्यटकों को दिखाई गयी हैं? कितनो को खींच लाई उत्तराखंड? चलो लगभग साढ़े 5 करोड़ की फ़िल्मे इतनी तो अच्छी होंगी की पर्यटन विभाग अपनी वेब-साइट पर ही डाल दे. कोई तो देखे 5 करोड़ 31 लाख की फिल्में.

5 करोड़ मे बनने वाली 2 फ़िल्मो के नाम बताते है आपको. – अ वेद्नेस डे, स्टारिंग नसीरूद्दीन शाह एंड अनुपम खेर. विक्की डोनर, स्टारिंग आयुष्मान खुराना. भेजा फ्राइ तो 60 लाख मे बन गयी थी. तीनो ही फ़िल्मे शायद आप सभी ने देखी होंगी. फिल्म निर्माण दिमाग़ से होता है, हुनर से होता है. आर्ट है ये. लेकिन नहीं, आपका टर्नोवर 2 करोड़ होना चाहिए. ऐसा नही की चेतक को ये पता नहीं है. दरअसल महाराणा नहीं बैठे उपर.

एक उत्तराखंडी कंपनी ने इस गोरख्धन्दे के खिलाफ 2020 मे नैनीताल हाइ कोर्ट मे गुहार लगा दी थी, फिल्म निर्माण के टेंडर मे उत्तराखंड अधिप्राप्ति नियमावली 2017 के उल्लंघन को लेकर. सरकारी वकील को जज की फटकार के बावजूद बैक-डेट मे टेंडर अलॉट कर के चेतक छलान्ग लगा कर निकल गया, अब चेतक है वो. और इस बार के टेंडर मे तो चेतक ने आवेदकों की लिटिगेशन हिस्टरी माँग ली. लिटिगेशन हिस्टरी मतलब मुक़दमेबाजी का इतिहास. कोई ऐसा ना आ जाए जो हमारे खेल मे खलल डाले.
अब महाराणा तो छोड़ो अभी तो कोई राणा भी नही हैं पर्यटन विभाग मे. तो उछल-कूद मचाने दो यार. जब तक मंत्री जी अपायंट होंगे तब तक मलिक हम… पर शायद नहीं, क्योंकि इस बार लगता है की मोदी स्वयं ताजपोशी मे उपस्तिथ हो कर धामी को महाराणा बना गये हैं. And The Message is Loud & Clear. अब चेतक से उम्मीद की जा सकती है की इधर उधर उछल कूद मे अपनी ऊर्जा नष्ट ना करे और द्रुत गति से कुलाँचे मारते हुए राज्य को विकास पथ पर ले जाए. उत्तराखंड की जय हो.

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