Ashwathama Still Alive: 5000 सालों से जिंदा अश्वथामा को देखा गया यहां।

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देहरादून ब्यूरो। वो इन्सान जो 5000 सालों से जिंदा है जिसके ज़ख्म 5000 सालों से लेकर अबतक हरे हैं, जो लोगों से छिपता है और कभी कभी लोगों से अपने जख्मों पर लगाने के लिए मरहम के तौर पर हल्दी और तेल भी मांगता है। कौन है ये इन्सान और क्यों भोग रहा है 5000 सालों से ये इस तरह का जीवन। कई लोगों ने इन्हें देखा है और दावा किया है कि इनके शरीर में कई घाव है जिनमें से खून निकलता रहता है। दिखने में ये बेहद विशाल हैं और इनके माथे पर से तो हमेशा ही खून बहता रहता है।

ऐसा दावा किया जाता है कि ये शख्स महाभारत काल से जीवित अश्वथामा हैं जिन्हें कई लोगों ने देखा है और ये भी दावा किया जाता है कि जिन्होंने भी इन्हें देखा है वो या तो मर जाते हैं या फिर पागल हो जाते हैं या फिर उन्हें लकवा मार जाता है। इनके बारे में और भी कई रहस्य है जिन्हें हम आज की वीडियो में आपको बताएंगे। अश्वथामा के अस्तित्व के जहां पर तथ्य मिलें हैं वो जगह है मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से करीबन 20 किमी दूर जिसका नाम है असीरगढ़ किला। ये किला सतपुड़ा की पहाडियों पर स्थित है जो समुद्र तल से 750 फीट की ऊंचाई पर है।

अश्वथामा पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र हैं। ये इतने शक्तिशाली थे कि महाभारत के युद्ध में इन्होंने पांडवों को लगभग हरा ही दिया था। गुरु द्रोणाचार्य और अश्वथामा महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से लड़ रहे थे। इन दोनों बाप बेटों की जोड़ी इतनी शक्तिशाली थी कि इन्हें युद्ध भूमि में हराना बहुत मुश्किल था जिसके कारण पांडवों की हार निश्चित थी। मगर पांडवों के साथ थे श्री कृष्ण जो ताकतवर होने के साथ साथ बुद्धिमान भी थे। युद्धभूमि में अस्वथामा नाम का एक हाथी भी था और जैसे ही इस हाथी की मृत्यु हुई बस उसी समय श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर के जरिए ये खबर पूरी युद्ध भूमि में फैला दी। जिसके बाद गुरू द्रोणाचार्य विचलित हो गए और युद्ध भूमि में बैठकर रोने लगे इस दौरान वो अपने अस्त्र शश्त्र भी छोड़ देते हैं जिसका फायदा उठाते हुए पांडवों के खेमे से दृष्टद्यम ने गुरू द्रोणाचार्य का सर धड़ से अलग कर डाला और द्रोणाचार्य की मृत्यु हो गई और जैसे ही गुरू द्रोणाचार्य की मृत्यु की खबर अश्वथामा तक पहुंची अश्वथामा गुस्से में आगबबूला हो गया जिसके बाद उसे बस अब किसी भी हालत में अपने पिता की मृत्यु का बदला लेना था। गुरू द्रोणाचार्य की मौत का बदला लेने के लिए अश्वथामा ने रात का सहारा लिया और उसने रात होते ही द्रौपदी के पांचों पुत्रों को मौत के घाट उतार दिया। इस खबर को सुनने के बाद अर्जुन अपना आपा खो देता है और वो अश्वथामा का पीछा करता है। अब अपने आप को खतरे में देख अश्वथामा ब्रह्मास्त्र चला देता है। अश्वथामा को ब्रह्मास्त्र चलाने का ज्ञान तो था मगर ब्रह्मास्त्र को वापिस लेने का ज्ञान नही था। जिसके बाद अश्वथामा द्वारा चलाया गया ब्रह्मास्त्र सीधे जाकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में जाकर लगता है और अजन्में अभिमन्यु पुत्र परीक्षित की मृत्यु हो जाती है। मगर भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा करते हैं और अश्वथामा को एक अजन्में बच्चे की हत्या करने के आरोप में दंडस्वरूप अश्वथामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर देते हैं जिसके कारण उनके माथे से खून बहने लगता है और साथ ही उसे श्राप देते हैं कि जब तक धरती पर जीवन रहेगा तब तक अश्वथामा अपने इन जख्मों के साथ धरती पर भटकता रहेगा। अश्वथामा के माथे पर मौजूद उस मणि में इनता तेज था और शक्ति थी कि वो अश्वथामा को सभी से बचाकर रखता था और जैसे ही श्री कृष्ण ने उनके माथे से वो मणि उखाड़ दी वैसे ही अस्वथामा की सभी शक्तियां भी चली गई। इस मणि के निकलने के बाद जो घाव अश्वथामा के माथे पर था वो आजतक वैसा ही है, उसी प्रकार उसके माथे से खून बहता रहता है जिसे कई लोगों ने देखने का दावा भी किया है।

असीरगढ़ किले के आस पास कई बार अश्वथामा को भटकते देखा गया है। ये कोई कहानी नही बल्की बिलकुल सच है क्योंकि अश्वथामा के जीवित होने के तथ्य भी मिले हैं। असीरगढ़ किले में एक शिव मंदिर भी है और दावा किया जाता है कि इस मंदिर में प्रतिदिन भगवान शिव की सबसे पहली पूजा अश्वथामा ही करते हैं, वो भी ब्रह्ममूहरत में। ये तब पता चला जब इस मंदिर में सुबह की पूजा करने गए पंडित जी ने देखा कि शिवलिंग की तो पहले से ही किसी के द्वारा पूजा की जा चुकी है और कई बार लोगों ने एक विशाल आकार के अजीब से दिखने वाले आदमी को    किले के आसपास के जंगलों में भी देखा है। जिसके बाद से ये कहा जाता है कि ब्रह्ममूहरत में ही अश्वथामा द्वारा सबसे पहले यहां भगवान शिव की पूजा कि जाती है और ऐसा रोज होता है।

ये भी कहा जाता है कि भगवान शिव की पूजा करने से पहले अश्वथामा किले में स्थित तालाब में स्नान करके पूजा-अर्चना करने जाते हैं।