DEVBHOOMI NEWS DESK: आज यानि 12 जनवरी का दिन आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म पौष माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि यानि 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त हाईकोर्ट में वकालत करते थे और माता भुवनेश्वरी गृहणी थीं। बचपन से ही बालक नरेंद्र नाथ अपनी मां के धार्मिक विचारों से काफी प्रभावित थे।
प्रारंभिक शिक्षा के बाद 1879 में नरेंद्र ने मैट्रिक परीक्षा पास करके प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। यहाँ से उन्होंने पाश्चात्य दर्शन और इतिहास का अध्ययन किया। कलकत्ता से फाइन आर्ट्स में डिग्री के दौरान स्वामी विवेकानंद ने बंगाली और संस्कृत में लिखे धार्मिक साहित्य का भी अध्ययन किया।
गुरु रामकृष्ण परमहंद से मुलाकात
साल 1881 में उनकी मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से हुई। उन्हें अपनी जिज्ञासाओं का समाधान रामकृष्ण परमहंस से मिलने लगा, इसके बाद नरेंद्र ने उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु स्वीकार कर लिया। रामकृष्ण परमहंस ने ही नरेंद्र को विवेकानंद नाम दिया। साल 1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु स्वामी विवेकानंद ने साधु बनने का निश्चय किया और एक मठ बनाकर रहने लगे।
नरेंद्र नाथ से स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद भारत और पूरी दुनिया में अपने विचारों के लिए याद किए जाते हैं। 1890 से उन्होंने उन्होंने पैदल ही भारतवर्ष की यात्रा करना शुरू कर दिया और भारतीय समाज और लोगों के रहन-सहन, संस्कृति को समझने की कोशिश की। इन यात्राओं के बाद उन्होंने महसूस किया कि देश में फैली कुरीतियों को खत्म करने से ही नए भारत का निर्माण हो सकेगा। इसके बाद उन्होंने लोगों को शिक्षित करना, युवाओं को प्रेरित करने का काम शुरू किया।
स्वामी विवेकानंद और विश्व यात्रा
स्वामी विवेकानंद ने पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति, विचारों से लोगों को परिचित कराने के लिए 31 मई 1893 को अपनी यात्रा शुरू की और जापान के कई शहरों का दौरा किया, चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो पहुँचे। उस समय शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी। स्वामी विवेकानन्द ने उसमें भारत के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। यहां उन्होंने अपने भाषण के दौरान भारतीय संस्कृति, विचारों से लोगों को परिचित कराया। 1894 में न्यूयॉर्क में स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त सोसाइटी की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन
- उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
- हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
- एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
- एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ।
- पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा।
- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
- स्वामी विवेकानंद ने कहा था – चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
- हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
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