/ Jun 03, 2025
All rights reserved with Masterstroke Media Private Limited.
UTTARAKHAND PANCHAYAT: उत्तराखंड में पंचायत व्यवस्था को लेकर बड़ा संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। राज्य की 10,760 त्रिस्तरीय पंचायतों में न तो कोई निर्वाचित प्रतिनिधि है और न ही प्रशासक तैनात हैं। यह स्थिति तब बनी जब प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो गया और उनकी पुनर्नियुक्ति के लिए लाया गया अध्यादेश राजभवन ने बिना मंजूरी के लौटा दिया। अब राज्य की अधिकतर ग्राम पंचायतें, क्षेत्र पंचायतें और जिला पंचायतें पूरी तरह मुखिया विहीन हो गई हैं।
नवंबर 2024 में पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो गया था। सरकार ने उस समय पंचायतों को प्रशासकों के हवाले किया और यह कहा गया था कि चुनाव समय रहते करवा लिए जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और अब 28 मई को ग्राम पंचायतों, 30 मई को क्षेत्र पंचायतों और 1 जून को जिला पंचायतों में प्रशासकों का कार्यकाल भी खत्म हो चुका है।
स्थिति को संभालने के लिए पंचायती राज विभाग ने जल्दबाज़ी में पंचायती राज अधिनियम में संशोधन करने के लिए अध्यादेश तैयार किया। यह अध्यादेश पहले विधायी विभाग के पास भेजा गया, लेकिन विभाग ने यह कहकर इसे लौटा दिया कि कोई भी अध्यादेश अगर एक बार अस्वीकृत हो चुका हो, तो उसे उसी रूप में दोबारा लाना संविधान के साथ धोखा होगा। विधायी विभाग की आपत्तियों के बावजूद सरकार ने अध्यादेश को राजभवन भेज दिया, लेकिन वहां से भी यह बिना मंजूरी के वापस लौटा दिया गया।
राज्यपाल के सचिव रविनाथ रामन ने स्पष्ट किया कि यह अध्यादेश विधायी विभाग की आपत्तियों का समाधान किए बिना ही राजभवन भेजा गया था। उन्होंने बताया कि अध्यादेश में कुछ बातें स्पष्ट नहीं थीं, जिनको लेकर स्पष्टीकरण मांगा गया है। इसलिए इसे विधिक परीक्षण के बाद फिर से विधायी विभाग को लौटा दिया गया है। इस पूरी स्थिति के कारण प्रदेश की 10,760 पंचायतें अब नेतृत्व विहीन हो गई हैं। इनमें 7478 ग्राम पंचायतें, 2941 क्षेत्र पंचायतें और 341 जिला पंचायतें शामिल हैं। केवल हरिद्वार जिले की 318 ग्राम पंचायतें इस संकट से अछूती हैं क्योंकि वहां पहले ही पंचायत चुनाव करवा लिए गए थे।
सीएम धामी ने जिलाधिकारियों के साथ वर्चुअल बैठक की, दिए ये खास निर्देश
देश दुनिया से जुड़ी हर खबर और जानकारी के लिए क्लिक करें-देवभूमि न्यूज
All Rights Reserved with Masterstroke Media Private Limited.