नई दिल्ली में बैठकर बनाए जा रहे उत्तराखंड की नई सरकार के समीकरण

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चुनाव मतगणना की उल्टी गिनती शुरू, कयासों का दौर लगातार जारी

देहरादून, ब्यूरो। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की मतगणना से पहले सरकार बनाने के समीकरणों को लेकर दोनों राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के नेता जुटे हुए हैं। चुनाव मतगणना को मुश्किल से अब सात दिन का ही समय बचा है। ऐसे में दोनों पार्टियों के वरिष्ठ नेता दिल्ली की ओर रुख कर रहे हैं। कांग्रेस हो या भाजपा हर बार दोनों पार्टियों ने बहुमत में आने के बाद कुछ अपवादों को छोड़ दें तो दिल्ली दरबार से ही उत्तराखंड पर मुख्यमंत्री थोपा है। वहीं, इस बार भी स्थिति 2007 और 2012 की तरह होने जा रही है।

जानकारों की मानें तो जो भी पार्टी सरकार बनाएगी उसे निर्दलीयों और अन्य छोटी पार्टियों को अपनी संख्या बल बढ़ाने के लिए समर्थन लेना पड़ेगा। बड़ी बात यह है कि चुनाव में बड़े-बड़े दिग्गजों की साख और भविष्य दांव पर लगा है। पूर्व सीएम हरीश रावत हो या वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी या फिर प्रीतम सिंह हो या गणेश गोदियाल, यशपाल आर्य। भाजपा के कई मंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं का भविष्य भी मतगणना के बाद सामने होगा। गौरतलब यह भी है कि अगर किसी भी एक बड़ी पार्टी को बहुमत मिल गया तो भी विधायकों में शायद इस बार भी मुख्यमंत्री बनता है या नहीं यह देखना होगा। दोनों ही पार्टियों के नेताओं को दिल्ली दरबार से जारी होने वाले फरमान का ही हर बार पालन करना होता है। इसे देखते हुए नेताओं ने दिल्ली की दौड़ लगानी शुरू कर दी है।

भाजपा की बात करें तो पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक के बाद अब वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी भी आज दिल्ली गए हैं। वहीं, इससे पहले मदन कौशिक भी दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं। वहीं, कांग्रेस की बात करें तो कई नेता दिल्ली दरबार में जमे बताए जा रहे हैं, वहीं कुछ रवाना होने की तैयारी हैं। सभी को पता है कि वह जो भी समीकरण बनाएंगे आखिर में उसे अंतिम स्वीकृति दिल्ली दरबार से ही मिलेगी।

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यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अभी तक जो भी चुनाव हुए हैं उसमें नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दिया जाए तो एक भी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं है जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो। राज्य के नेताओं की आपसी खींचतान कहें या फिर पार्टियों की प्रदेश के ऊपर नए-नए नेताओं को सीएम बनाकर थोपने और बार-बार तख्ता पलट करने की, इससे कहीं न कहीं राज्य का ही हर बार नुकसान हुआ है।

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आपको बता दें कि उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के गठन की तैयारी आगामी 10 मार्च को शुरू हो जाएगी। उत्तराखंड के इतिहास में देखा जाए तो अभी तक चार बार विधानसभा चुनाव और एक बार अंतरिम सरकार बनी है। करीब-करीब हर बार दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने बार-बार अपने मुख्यंत्रियों को बदलने के साथ अक्सर जो विधायक दल से चुनकर भी नहीं आया था उसे मुख्यमंत्री बना दिया। इसे यहां के लालची नेताओं और दिल्ली में बैठे राजनेताओं की अदूरदर्शी सोच ही कहेंगे। चार विधानसभा चुनाव में प्रदेश को चार ही मुख्यमंत्री मिलने चाहिए थे, लेकिन आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अभी तक कितने लोगों को बदल-बदल कर प्रदेश की चाबी सौंपी गई।