मुख्य चिकित्साधिकारी का ये बयान सिस्टम पर क्यों खड़े कर रहा है कई सवाल?

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थराली (संवाददाता- मोहन गिरी): उत्तराखंड में जहां सरकारें पहाड़ो में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के दावे करती है वहीं ये दावे धरातल पर खोखले

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साबित होते नजर आते हैं और पहाड़ो के अस्पताल महज रेफर सेंटर साबित हो रहे हैं। यकीन मानिए खुद चमोली जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी ने विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी से जूझते चमोली जनपद पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चिंता जाहिर की है। साथ ही उन्होंने कहा कि बड़े स्तर पर इस चिंता पर गहन विचार की आवश्यकता है कि आखिर क्यों विशेषज्ञ चिकित्सक या फिर एमबीबीएस डॉक्टर आखिर उत्तराखंड में चिकित्सा पद्धति से विमुख होकर चिकित्सक अपना त्यागपत्र देकर पहाड़ो से वापसी कर रहे हैं।

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अब थराली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की ही बात करें तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 6 पद स्वीकृत हैं और पिछले दशक से भी ज्यादा समय से ये पद रिक्त ही चल रहे हैं ,वहीं विशेषज्ञ मिले न मिले लेकिन एमबीबीएस डॉक्टर भी यहां रुकने को तैयार नहीं हैं। ताजा मामला थराली विकासखण्ड के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कुराड़ का है जहां सेवारत चिकित्सक पुनीत गौतम ने अपना त्यागपत्र दिया है, वहीं राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चोपता नारायणबगड़ में भी सेवारत डॉक्टर शुभम मिश्रा ने सरकारी सेवा को अलविदा कहा है। इससे पूर्व भी थराली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सेवारत डॉ सुष्मिता भी त्यागपत्र देकर पीजी करने के लिए चली गयीं।

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पूरे चमोली जनपद की बात करें तो यहां 64 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से भी 44 पदों पर विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद रिक्त चल रहे हैं। वहीं जनपद के जिला चिकित्सालय समेत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 164 पदों के सापेक्ष अभी भी 36 डॉक्टरों की रिक्ति खाली चल रही है।

ऐसे में अब सरकार को इस बारे में भी चिंता जाहिर करने की आवश्यकता है कि आखिर डॉक्टरों के इस्तीफे के सिलसिले को कैसे रोका जाए। उन कारणों पर गौर करने की जरूरत है जिन कारणों से चिकित्सक सरकारी सेवा से विमुख हो रहे हैं और सरकारी सेवाओं में चिकित्सकों को लाने के लिए ठोस पॉलिसी बनाने की कवायद शुरू करने की ओर ध्यान देने की जरूरत है।

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मुख्य चिकित्साधिकारी चमोली का ये बयान भले ही अपने ही डिपार्टमेंट पर सवाल खड़े करता हो लेकिन ये बयान उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की भी पोल खोलता है कि आखिर अभी तक की सरकारों और स्वास्थ्य महकमे के आला अधिकारियों ने उत्तराखंड के पहाड़ो में डॉक्टर्स को सरकारी सेवाओं में रोक पाने के लिए कितने भरसक प्रयास किये और अगर प्रयास किये तो त्यागपत्रों का सिलसिला रुका क्यों नहीं। मुख्य चिकित्साधिकारी चमोली का बयान भले ही सिस्टम पर सवाल है लेकिन तब भी सच है और सवाल वाजिब है।

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