Satopanth Lake: साल में एक दिन यहां स्नान करने आते हैं त्रिदेव
Satopanth Lake: धार्मिक शास्त्रों में कहा गया है कि मरने के बाद स्वर्ग या नर्क में जाना मनुष्य द्वारा किए गए कर्मों पर निर्भर करता है। कहा जाता है कि अच्छे कर्म करने वालों को स्वर्ग और बुरे कर्म करने वालों को नर्क की प्राप्ती होती है। लेकिन हर मनुष्य चाहता है कि उसे स्वर्ग की ही प्राप्ती हो। ऐसे में हर किसी के मन के ये सवाल जरूर आता होगा कि आखिर कैसा होता है स्वर्ग और कहां से जाता है इसका रास्ता। तो चलिए आज स्वर्ग का रास्ता हम आपको बताते हैं।
उत्तराखंड, एक ऐसा राज्य है जिसके कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। केवल इतना ही नहीं बल्कि महाभारत में पांडवों का भी इस राज्य से गहरा संबंध रहा है। यहां कई रहस्यमयी जगहें मौजूद हैं जिनका उल्लेख महाभारत काल में किया गया है। इन्हीं में से एक है सतोपंथ झील (Satopanth Lake) जो बद्रीनाथ धाम से लगभग 21 किमी दूर चौखंभा शिखर की तलहटी पर बसी हिमरूप झील है। ऐसा कहा जाता है कि युद्ध की समाप्ति के बाद इसी झील (Satopanth Lake) से पांडवों ने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी।
समुद्र तल से लगभग 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये झील (Satopanth Lake) न केवल धार्मिक लिहाज़ से बल्कि अपने अद्वितीय प्राकृतिक सौन्दर्य की वजह से भी प्रसिद्ध है। इस झील (Satopanth Lake) का आकार अन्य झीलों से अलग है। अक्सर हमने गोल या चौकोर आकार वाली झील देखी हैं लेकिन सतोपंथ झील (Satopanth Lake) त्रिभुजाकार में है। हालांकि इसके पीछे भी एक रहस्यमयी कहानी जुड़ी हुई है।
ऐसा कहा जाता है कि त्रिलोक के स्वामी अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने इस झील (Satopanth Lake) के तीनों कोनों पर तपस्या की थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक, हर साल सितंबर माह की एकादशी के पावन अवसर पर त्रिदेव इस झील (Satopanth Lake) में स्नान करते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म के लोगों के बीच इस स्थान की विशेष मान्यता है।
दूसरी धार्मिक मान्यताएं ये भी है कि महाभारत काल के दौरान पांडव भाई इसी रास्ते से स्वर्ग की ओर गए थे। इसी कारण इस झील का नाम सतोपंथ (Satopanth Lake) पड़ गया। सतोपंथ (Satopanth Lake) यानी सत्य का रास्ता। ये भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर उन्होंने स्नान किया था और ध्यान लगाया था। इसके पश्चात ही उन्होंने आगे का सफर तय किया था। लेकिन जब पांडव स्वर्ग की ओर जा रहे थे तो उसी दौरान पांडवो की एक-एक करके मृत्यु हो गई थी। लेकिन केवल युद्धिष्ठिर ही ऐसे थे जो सशरीर स्वर्ग पहुंचे।
इसी स्थान के आगे स्वर्गारोहिणी नामक स्थान है, इसी स्थान से ज्येष्ठ पांडव धर्मराज युधिष्ठिर ने आकाशीय वाहन के जरिए सशरीर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया था।
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