/ Oct 14, 2025

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राजनीतिक दलों को विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए पूर्व-प्रमाणन अनिवार्य, चुनाव आयोग ने जारी की गाइडलाइन

POLITICAL ADS MONITORING: भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने बिहार विधान सभा के आम चुनाव और छह राज्यों व जम्मू-कश्मीर के आठ विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनावों की घोषणा के साथ ही सोशल मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापनों के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। आयोग के नए आदेश के अनुसार अब कोई भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार सोशल मीडिया सहित किसी भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम पर बिना पूर्व-प्रमाणन के राजनीतिक विज्ञापन जारी नहीं कर सकेगा।

POLITICAL ADS MONITORING
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POLITICAL ADS MONITORING: अब हर राजनीतिक विज्ञापन के लिए पूर्व-प्रमाणन अनिवार्य

भारत निर्वाचन आयोग द्वारा 9 अक्टूबर 2025 को जारी आदेश के तहत यह अनिवार्य किया गया है कि प्रत्येक पंजीकृत, राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय राजनीतिक दल और हर उम्मीदवार को मीडिया पर किसी भी राजनीतिक विज्ञापन के प्रकाशन से पहले उसका पूर्व-प्रमाणन कराना होगा। यह नियम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक, एक्स (पूर्व ट्विटर), यूट्यूब, इंस्टाग्राम और अन्य इंटरनेट-आधारित माध्यमों पर भी समान रूप से लागू होगा।

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बिना प्रमाणन के विज्ञापन पर होगी सख्त कार्रवाई

राज्य और जिला स्तर पर मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति (एमसीएमसी) का गठन किया गया है, जो राजनीतिक विज्ञापनों के पूर्व-प्रमाणन की प्रक्रिया को संभालेगी। किसी भी विज्ञापन को जारी करने से पहले संबंधित समिति उसकी सामग्री की समीक्षा करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि वह आदर्श आचार संहिता और निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुरूप हो। यदि ऐसा किया गया तो उसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा और संबंधित उम्मीदवार या दल के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।

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उम्मीदवारों को देना होगा सोशल मीडिया खातों का विवरण

एमसीएमसी को न केवल विज्ञापनों के पूर्व-प्रमाणन की जिम्मेदारी दी गई है, बल्कि उसे मीडिया में पेड न्यूज के संदिग्ध मामलों पर भी कड़ी निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं। समिति को ऐसे मामलों में तत्काल जांच कर आवश्यक कदम उठाने का अधिकार होगा। आयोग ने सोशल मीडिया की बढ़ती पहुंच को ध्यान में रखते हुए यह भी निर्देश दिया है कि उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते समय अपने प्रामाणिक सोशल मीडिया खातों का विवरण प्रस्तुत करें। इससे चुनाव प्रचार में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और फर्जी या भ्रामक अकाउंट्स के माध्यम से प्रचार को रोका जा सकेगा।

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चुनावी व्यय का पूरा ब्योरा देना होगा

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 77(1) और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक राजनीतिक दल को विधानसभा चुनाव समाप्त होने के 75 दिनों के भीतर चुनाव प्रचार पर किए गए सभी खर्चों का विवरण निर्वाचन आयोग को देना होगा। इस खर्च में सोशल मीडिया और इंटरनेट पर दिए गए विज्ञापनों का भुगतान, डिजिटल कंटेंट निर्माण पर हुआ व्यय और सोशल मीडिया खातों को संचालित करने में आने वाला खर्च भी शामिल रहेगा।

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