PFI पर प्रतिबंध और बसपा प्रमुख मायावती का मुस्लिम मोह, 2024 में क्या आएगा काम ?
बसपा प्रमुख मायावती ने PFI प्रतिबंध पर एक ट्वीट किया है जिसमें उन्होने कहा है राजनीतिक स्वार्थ और संघ तुष्टीकरण की नीति मानकर लोगों में संतोष की भावना कम और बेचैनी ज्यादा है। जहां एक तरफ आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की हार ने असमंजस बढ़ाया है ऐसे में अब मायावती को पीएफआई के बहाने उनकी ओर पहल करने का अवसर मिला है। यह ट्वीट उन लोगों को भी जवाब था जो भाजपा के प्रति नरम रुख रखने का उन पर आरोप लगाते हैं।
PFI पर ट्वीट करके मायावती ने मुस्लिम मतों को लेकर छटपटाहट दिखा दी, मुस्लिमों पर फेका चारा
बसपा प्रमुख मायावती ने यह ट्वीट उस दिन किया था, जिस दिन पूरे देश में PFI पर प्रतिबंध लगाया गया था और इसके राजनीतिक निहितार्थ पढ़ें तो मुस्लिम मतों को लेकर मायावती की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है। उनके शब्द सधे हुए जरूर थे, लेकिन उनकी मंशा साफ थी कि वो मुस्लिमों के लिए फिक्रमंद हैं और उनके लिए पीएफआई के समर्थन की हद तक जा सकती हैं। जहां विपक्षी पार्टियां सरकार की नीयत पर शक कर रही और हमलावर है और आरएसएस पर भी प्रतिबंध की मांग खुलेआम कर रही है। उनका कहना है कि जब पीएफआई देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है तो अन्य संगठनों पर भी बैन लगना चाहिए ।
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PFI पर मायावती का ट्वीट संदेश भी वार भी ,नजर मुस्लिम वोट बैंक पर
2. यही कारण है कि विपक्षी पार्टियाँ सरकार की नीयत में खोट मानकर इस मुद्दे पर भी आक्रोशित व हमलावर हैं और आरएसएस पर भी बैन लगाने की माँग खुलेआम हो रही है कि अगर पीएफआई देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा है तो उस जैसी अन्य संगठनों पर भी बैन क्यों नहीं लगना चाहिए?
— Mayawati (@Mayawati) September 30, 2022
PFI पर मायावती ने यह दांव चला है तो इसके पीछे उनकी सोच सपा के मुस्लिम-यादव समीकरण पर प्रहार करने की है। यह समीकरण मुलायम सिंह यादव ने खड़ा किया है और इसके लिए उन्हें अयोध्या में रामभक्तों पर गोलियां चलवाने में भी कोई हिचक नहीं हुई। इसके अलावा भी वे मुस्लिमों की हमेशा सरपरस्ती करते रहे। प्रदेश के चुनाव में मुस्लिम मतदाता एक बड़ी धुरी हैं और फिलहाल सपा को अपना नजदीक मानते हैं।
मायावती मुस्लिम मतों की कीमत इसलिए भी समझती हैं ,क्योंकि बीते लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन होने के कारण उन्हें मुस्लिम वोट मिले थे और वो सीट जीत गईं थी। मायावती के लिए सुनहरा अवसर कि कैसे आजम प्रकरण को लेकर मुस्लिम का एक वर्ग खुलकट सपा का विरोध न भी करे ,लेकिन नाराजगी है। दूसरा कारण मुस्लिमों को जो अपेक्षा मुलायम सिंह यादव से हुआ करती थी वो बात अखिलेश में नहीं है।
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