मुलायम बिन अखिलेश, कैसे मिटेगा क्लेश-पार्टी और परिवार को साधना होगा तेज

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Mulayam Singh की गैरहाजिरी में अखिलेश का इम्तिहान, बड़ी चुनौतियों को करना होगा पार

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री Mulayam Singh यादव का सोमवार को निधन हो गया। जब तक “नेताजी “रहे तब तक पार्टी और परिवार का मार्गदर्शन करते रहे। लेकिन अब जब वो नहीं रहे तो उनके बेटे और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने ढेरों चुनौतियाँ सामने खड़ी हैं,वो चाहे पार्टी,परिवार, वोट या फिर विरासत ही क्यों ना हों । अखिलेश यादव पर यह आरोप हमेशा लगता रहा है कि पुराने अनुभवी नेताओं को छोड़कर वो सिर्फ अपने कुछ युवा ब्रिगेड के नेताओं से घिरे रहते हैं और सिर्फ उन्हीं की सुनते हैं।

मुलायम सिंह यादव अपने जीते ही अपनी सियासी विरासत को अखिलेश यादव के हवाले कर गए, लेकिन अब आने वाले समय में अखिलेश को कई बड़े और कड़े इम्तिहान देने होंगे, चाहे यादव कुनबे को साथ रखना, एमवाई समीकरण को साधे रखना मैनपुरी सीट का वारिस तलाशना। “नेताजी”के साथ कार्यकर्ताओं और समर्थकों का भावनात्मक रिश्ता था जिसे अखिलेश को बड़ी मजबूती से बांधे रखना होगा। मुलायम के बिना समाजवादी पार्टी की राह अखिलेश यादव के सियासी कौशल पर निर्भर करेगी।

Mulayam Singh के बाद यादव कुनबे को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती, परिवार को लाना होगा साथ

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समाजवादी पार्टी और यादव कुनबे दोनों को Mulayam Singh ने एक साथ बखूबी जोड़ रखा था। अब मुलायम के बाद पूरे यादव परिवार को एक साथ लेकर चलने की ज़िम्मेदारी अखिलेश यादव की है। ये तब और जरूरी हो जाता है जब चाचा शिवपाल यादव से लेकर अपर्णा यादव तक अखिलेश से अलग हो चुके हैं। साथ ही धर्मेंद्र यादव, तेजप्रताप यादव, अक्षय यादव, अंशुल यादव और सबसे जरूरी रामगोपाल यादव को फिर से सपा से मजबूती से जोड़ने की ज़िम्मेदारी अखिलेश की है। जहां शिवपाल यादव को लेकर अखिलेश का नजरिया इतना तल्ख है उसे बदलना होगा,हालांकि अखिलेश चाचा का सम्मान करते हैं लेकिन सियासी तौर पर उनको साथ लेकर चलने में परहेज भी।

Mulayam Singh के सियासी समीकरण [ मुस्लिम-यादव ] को बचाए रखने की चुनौती

जगजाहिर है कि इतने बरसों तक Mulayam Singh मुस्लिम-यादव [MY] समीकरण के जरिये राजनीति के धुरी बने हुए थे, लेकिन अब उनके इस वोट-बैंक में सेंध लगाने की पूरी कोशिश बसपा, काँग्रेस, AIMIM और प्रसपा तक लगे हुए हैं। मुस्लिम से जुड़े मुद्दों को कमजोर ढंग से उठाने पर सपा से मुसलमानों का बड़ा तबका नाराज है और ऐसे में शिवपाल यादव से लेकर भाजपा तक मुस्लिम वोट बैंक पर सेंधमारी की कोशिश कर रही है। अगर सपा से ये MY तबका खिसक गया तो अखिलेश के लिए अपनी सियासी जमीन बचाना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में देखना होगा कि अखिलेश कैसे सपा के इस सियासी आधार को बचाते हैं।

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Mulayam Singh के बाद अखिलेश कैसे करेंगे दिल्ली की सियासत मजबूत ?

Mulayam Singh के बाद उत्तर प्रदेश के साथ केंद्र [दिल्ली] की राजनीति में भी अखिलेश को खुद को मजबूत बनाए रखना होगा। मुलायम के रहते अखिलेश दिल्ली से लेकर यूपी तक अपनी पारी बढ़ा रहे थे लेकिन उनके ना रहने पर दिल्ली की सियासत पर सपा की पकड़ कमजोर हो सकती है। अखिलेश यादव को उनकी कमी पूरा करने के लिए अब राष्ट्रीय स्तर पर नयी रणनीति बनानी होगी और सामने अति महत्वपूर्ण 2024 का चुनाव भी आने वाला है।

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