माता सीता ने अपने महल में क्यों एक गर्भवती के साथ किया ऐसा व्यवहार?
देहरादून ब्यूरो। क्या आपको मालूम है कि लक्ष्मी रूप भूमि पुत्रि माता सीता ने भी अपने जीवन काल में एक ऐसा घोर पाप किया था जिसकी सज़ा उन्हें उनके उसी जीवन में मिली। ये जानने के बाद भी कि वो जो कर रही हैं वो सही नही है फिर भी सीता माता ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने उनको उनके पति से ही अलग कर दिया। क्या था वो पाप और किस श्राप के कराण सीता माता को पति वियोग से गुज़रना पड़ा।
माता सीता ने अपने महल में तोते के जोड़े के साथ क्या किया?
एक कथा के अनुसार एक रोज़ जब माता सीता अपने बगीचे में घूम रही थी तो उनकी नज़र तोते के एक जोड़े पर पड़ी। ये जोड़ा आपस में कुछ बातें कर रहा था। तोते के जोड़े को आपस में बातें करते देख माता सीता के अंदर जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि ये दोनों क्या बातें कर रहे होगें।
जिसके बाद माता सीता तोते के उस जोड़े के पास गई और उन्होंने सुना कि ये जोड़ा सीता माता और उनके पति यानी की भगवान राम के बारे में बात कर रहा है। जब माता सीता ने तोतों के मुख से अपने भविष्य के बारे में इतनी सारी बातें सुनी तो उन्होंने पूछा कि तुम्हें मेरे भविष्य के बारे में इतना सब कुछ कैसे ज्ञात है।
तो इसके जवाब में उन्होंने बताया वो वालमिकी आश्रम के एक पेड़ में रहते थे जहां हर वक्त माता सीता और भगवान राम के बारे में ही बातें होती रहती थी।
तोते के इस जोड़े ने ये तक बताया कि आगे चलकर भगवान राम मिथिला आकर आपके स्वेम्वर में शामिल होगें और भगवान शिव के धनुष को तोड़कर आपसे विवाह करेगें। अब अपने भविष्य के बारे में इतना सबकुछ जानने के बाद माता सीता के मन में अपने भविष्य के बारे में और भी जानने की जिज्ञासा हुई जिसके बाद माता सीता ने तोते के उस जोड़े को बंदी बनाकर पिंजरे में डलवा दिया।
माता सीता ने गर्भवती मादा तोते के साथ ऐसा क्यों किया?
काफी कुछ जानने के बाद अब माता सीता को मादा तोते से एक लगाव हो गया था जिसके बाद माता सीता ने नर तोते को तो पिंजरे से बाहर कर दिया लेकिन मादा तोते को अपने पास पिंजरे में रखने का ही निर्णय लिया। अब तोतों का जोड़ा एक दूसरे से अलग हो गया था जिसके बाद मादा तोते ने माता सीता को बताया कि मै गर्भवति हूं मुझे छोड़ दिजिए।
लेकिन आप सभी को ये सुनकर हैरानी होगी कि माता सीता ने उसे छोड़ने से इनकार कर दिया। नर तोते ने भी माता सीता से अपनी बीवी को छोड़ने का काफी निवेदन किया मगर माता सीता ने कहा कि उन्हें मादा तोते से लगाव हो गया है, उन्हें वो इतनी भाने लगी कि अब वो मादा तोते को अपने से दूर नही होने देंगी।
इसके बाद नर तोते ने ये तक कहा कि मेरी बीवी को खुले जंगल में हमारे बच्चों को जन्म देने दो, इसके बाद मैं वापिस अपनी बीवी को आपके पास छोड़ दूंगा। मगर इस पर भी माता सीता नही मानी और तोते को वहां से अकेले ही जाने को कह दिया गया। 3-4 दिन गुज़रने के बाद मादा तोते ने पिंजरे में पति वियोग के कारण दम तोड़ दिया।
अब जब नर तोता अपनी पत्नी से मिलने महल पहुंचा तो उसने वहां देखा कि उसकी गर्भवति पत्नि प्राण त्याग चुकी है, जिसके बाद दुखी नर तोता सीता माता से कहता है, “हे सीता तुमने मेरी गर्भवति पत्नि को मुझसे दूर कर उसके प्राण हरे हैं, मै तुम्हें भी ये श्राप देता हूं कि तुम भी अपनी गर्भावस्था में ही अपने पति से अलग हो जाओगी और तुम्हारे अलग होने का कारण मै ही बनूंगा” ये कहकर नर तोता वहां से उड़ जाता है।
माता सीता को मिली उनके पाप की सज़ा
जिसके बाद वो सीधे अयोध्या जाता है और धोबी के रूप में जन्म लेता है। ये वही धोबी होता है जिसने माता सीता के रावण के चुंगुल से छूटने के बाद माता सीता के चरित्र पर सवाल खड़े किए थे और इसी का कारण भगवान राम माता सीता को उनकी गर्भावस्था में त्याग देते हैं। तो माता सीता को उनके इसी जन्म में उनके द्वारा किए गए इस महा पाप का दंड इस तरह मिलता है।
माता सीता ने अपने जीवन में किया था ये महा पाप
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