/ Dec 12, 2025
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LUMINESCENCE DATING WORKSHOP: देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान में भूगर्भीय इतिहास और प्राकृतिक आपदाओं के अध्ययन को लेकर एक महत्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का मुख्य विषय ‘ल्यूमिनिसेंस डेटिंग’ और इसके अनुप्रयोग रहा। कार्यशाला के दौरान देश के शीर्ष वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे यह तकनीक पुरानी चट्टानों, मिट्टी और वस्तुओं की उम्र का पता लगाने में क्रांतिकारी साबित हो रही है। विशेष रूप से उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में, जहां भूकंप और बाढ़ का खतरा बना रहता है, यह तकनीक भविष्य की आपदाओं का अनुमान लगाने में मददगार साबित हो सकती है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अतीत के पैटर्न को समझना बेहद जरूरी है और इसमें ल्यूमिनिसेंस डेटिंग एक अहम भूमिका निभा रही है। भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. अशोक सिंघवी ने कार्यशाला के दूसरे दिन उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि भूगर्भीय इतिहास को डिकोड करने में ल्यूमिनिसेंस डेटिंग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने ‘ल्यूमिनिसेंस डेटिंग: उद्भव, वर्तमान और भविष्य’ विषय पर अपना व्याख्यान दिया। प्रो. सिंघवी ने बताया कि इस विधि से पुरातत्व से जुड़ी सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है।

हैदराबाद स्थित सीएसआईआर के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. देवेंद्र कुमार ने ल्यूमिनिसेंस डेटिंग और रेडियो कार्बन डेटिंग के बीच के अंतर को स्पष्ट किया। कार्बन डेटिंग के लिए सैंपल में कार्बन की मौजूदगी होना अनिवार्य है, जो हर जगह नहीं मिल पाता। इसके विपरीत, ल्यूमिनिसेंस डेटिंग के लिए सेडिमेंट्स (तलछट या मिट्टी) का उपयोग किया जाता है, जो हर जगह आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। रेडियो कार्बन डेटिंग के जरिए अधिकतम 40 से 50 हजार साल पुरानी वस्तुओं की ही डेटिंग की जा सकती है, जबकि ल्यूमिनिसेंस डेटिंग विधि के जरिए 1 लाख 50 हजार साल तक की वस्तुओं की सटीक उम्र का पता लगाया जा सकता है।

कार्यशाला में वैज्ञानिक जावेद मलिक ने पुराने भूकंपों को समझने में इस विधि के महत्व पर प्रकाश डाला। वैज्ञानिकों ने बताया कि नदियां अपना रास्ता बदलती रहती हैं और जब बड़ी बाढ़ या सुनामी आती है, तो अपने पीछे सेडिमेंट्स छोड़ जाती हैं। अगर इन सेडिमेंट्स की सही डेटिंग कर ली जाए, तो यह पता चल सकता है कि बाढ़ या सुनामी कितनी बार आई और उसकी बारंबारता (फ्रीक्वेंसी) क्या है। इसी तरह पुराने भूकंपों की वास्तविक तारीख निकालकर भविष्य के खतरों का अनुमान लगाया जा सकता है। यह तकनीक यह भी बता सकती है कि किसी जमाने में मौसम कैसा था, क्या वहां हिमयुग था या समुद्र तल की ऊंचाई कितनी थी।

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