जब मुख्यमंत्री के लिए निर्दलीय विधायक ने सीट छोड़ने से कर दिया साफ मना

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पोलिटिकल स्टोरीस नाम की इस सीरीस मे हम आप को सुनाएँगे पॉलिटिक्स की दुनिया के ऐसे रहस्यमयी, रोमांचकारी और रोचक किस्से जिन्हे सुनकर ना सिर्फ़ आपको बड़ा मज़ा आएगा बल्कि आप आश्चर्य-चकित भी रह जाएँगे. इस अंक मे बात उत्तराखंड की. यहां अमोमन देखा गया है कि राष्ट्रीय पार्टियों ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जो विधानसभा सदस्य नहीं थे…ऐसे में लाजिमि है कि मुख्यमंत्री को 6 महिने के अंदर विधानसभा का सदस्य बनना पड़ता है…जिस कारण यहां प्रदेश को एक उपचुनाव का सामना भी करना पड़ता है…इसी उपचुनाव से जुड़ा एक रोचक किस्सा है जिसमें मुख्यमंत्री के लिए सीट छोड़ने के लिए एक निर्दलीय विधायक ने मना कर दिया…इसके बाद खुब बवाल भी देखने को मिला…एक बार तो यह तक लगने लगा था कि कहीं मुख्यमंत्री को अपनी सीट न गवानी पड़े….इन सब के बावजूद भी निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री राजी नहीं कर पाये और उन्हें अंत में दूसरी सीट से चुनाव लड़ा…

हम बात कर रहे हैं बीजेपी के वरिष्ट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री मंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी की…. उत्तराखंड में 2007 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई थी और भुवन चंद्र खंडूड़ी को यहां का मुख्यमंत्री बनाया गया था…तब बीसी खंडूड़ी गढ़वाल सीट से लोकसभा सांसद थे…. इन चुनाव में बीजेपी को भले ही पूर्ण बहुमत नहीं मिला लेकिन उत्तराखंड क्रांति दल और निर्दलीयों के सहयोग से उन्होंने सरकार बना दी… इस चुनाव में बीसी खंडूड़ी की महत्पूर्ण भूमिका भी रही….साथ ही बीसी खंडूड़ी, अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे थे तो उनके अनुभवों को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया…अब मुख्यमंत्री बने रहने के लिए बीसी खंडूड़ी को विधानसभा का सदस्य बनना था…बीसी खंडूड़ी को उनके सलाहकारों ने कई सुझाव दिये लेकिन बीसी खंडूड़ी का मन तो सिर्फ एक सीट पर था…और वह सीट थी पौड़ी विधानसभा सीट…इस सीट पर खंडूड़ी का मन लगने का एक बड़ा कारण एक यह भी था कि पौड़ी उनका गृह क्षेत्र था और यहीं खेल- कूदकर वे सैन्य अधिकारी बने और लोकसभा सांसद भी बने….लेकिन 2007 के इस चुनाव में पौड़ी से निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम चुन कर आये….यशपाल बेनाम तब पौड़ी के नगर पालिका अध्यक्ष थे और उन्होंने इस चुनाव में प्रदेश के पहले शिक्षा मंत्री तीरथ सिंह रावत और एनडी तिवारी सरकार में शिक्षा मंत्री रहे नरेंद्र सिंह भंडारी जैसे दिग्गजों को हराया…इस सीट पर चुनाव भी बड़ा रोचक रहा था….यशपाल बेनाम ने मात्र 11 वोट से तीरथ सिंह रावत को हराया था…नरेंद्र सिंह भंडारी तीसरे नंबर रहे थे…अब यशपाल बेनाम भी चुनाव जीतने के बाद पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हो गये थे और वे उत्तराखंड की सक्रिय राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे….लेकिन जब मुख्यमंत्री का मन हो तो उन्हें कौन रोक सकता था….

फिर शुरू हुई यशपाल बेनाम को मनाने की प्रक्रिया….कई दिग्गज नेता, कई बीजेपी कार्यकर्ता और कई खंडूड़ी जी के समर्थकों ने यशपाल बेनाम के चक्कर काटने शुरू कर दिये…लेकिन य़शपाल बेनाम ने सीट छोड़ने के लिए साफ मना कर दिया….बेनाम निर्दलीय जरूर थे लेकिन वे सीट छोड़ने को भी राजी नहीं थे….उन्होंने साफ कह भी दिया कि चाहे राज्य का मुख्यमंत्री ही अपील क्यों न कर दे, उनका फैसला स्पष्ट है और वे किसी के लिए अपनी सीट छोड़ने वाले नहीं हैं….अब किसी भी मुख्यमंत्री के लिए इससे अपमानजन क्या हो सकता है….एक तरफ विधायक अपने मुख्यमंत्री के लिए सीट छोड़ने के लिए इस कदर तैयार रहते हैं कि मुख्यमंत्री के लिए अपनी सीट कुर्बान करने को लेकर लड़ाई हो जाती है ….लेकिन उत्तराखंड की सियासत की तो बात ही कुछ अलग है…अब बीसी खंडूड़ी के पास समय कम था और उन्हें विधानसभा में भी पहुंचना था…यशपाल बेनाम को मनाने में बीजेपी पूरी तरह से असमर्थ रही….फिर बीसी खंडूड़ी ने बीच का रास्ता देखा और बीजेपी ने धूमाकोट से कांग्रेस के विधायक टीपीएस रावत को मनाना शुरू कर दिया….टीपीएस रावत को मनाने में बीजेपी कामयाब भी रही….फिर बीजेपी ने कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए टीपीएस रावत को अपने पाले में कर दिया और टीपीएस रावत ने बीसी खंडूड़ी के लिए अपनी सीट छोड़ दी… फिर बीसी खंडूड़ी धूमाकोट से विधायक बने और टीपीएस रावत खंडूड़ी जी की जगह लोकसभा में चुनकर पहुंचे… यह माना जाता है कि यशपाल बेनाम अगर उस समय खंडूड़ी जी के लिए सीट छोड़ देते तो आज वे राजनीति के अलग मुकाम पर रहते…हो सकता था वे टीपीएस रावत की जगह सांसद बन जाते… खंडूड़ी जी के समय ही विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन भी हुआ था जिसके बाद पौड़ी की विधानसभा सीट आरक्षित हो गई. क्यों हो गयी ये आप समझ जाइए … और यशपाल बेनाम उसके बाद कभी भी उत्तराखंड की विधानसभा में नहीं पहुंच पाये….. ये स्टोरी मजेदार लगी हो तो मज़े को शेयर कर लीजिए एक-आध दर्जन दोस्तों के साथ. अगले अंक मे फिर एक रोचक रहस्य खोलेंगे. तो फटाफट से देवभूमि न्यूज़ को सबस्क्राइब कर लीजिए जिससे आप एक बड़ी ही मजेदार और रोमांचकारी पोलिटिकल स्टोरी मिस ना करें.