चुनाव खत्म हुए हैं लेकिन हरदा का चुनावी अभियान नहीं।

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devbhoomi

हरीश रावत बखूबी जानते हैं कि जनता क्यों भाजपा को वोट दे रही है लेकिन ये हरदा इसका कर कुछ नहीं सकते. अब ये कुछ ऐसा ही है जैसे इंदिरा गाँधी के समय यदि कोई भाजपाई ये कहे की जनता पता नही क्यों कॉंग्रेस को वोट दे रही है! कॉंग्रेस अगर उत्तराखंड मे यहाँ तक पहुँची है यक़ीनन कारण हरदा ही हैं. हँसे, नाचे, कूदे, इमोशनल हुए, रोए भी. सारे फल सब्जियों के नाम की पार्टी कर डाली पेड़ के नीचे, धरने भी खूब दिए, मौन व्रत भी रखे, अपने कार्यकाल की उपलब्धियाँ भी खूब गिनाई, उत्तराखंड मे से उत्तराखंडियत ढूँढ लाए, सब किया लेकिन बेअसर केंद्रीय नेतृत्व और गुटबाजी ने अरमानों पर पानी फेर दिया.

एक वाक्य मे समेटें तो मोदी जी ने कॉंग्रेस से गाँधी जी छीन लिए हैं. अब गाँधी जी कॉंग्रेस के नहीं देश के हैं. और 1947 से गाँधी ही तो कॉंग्रेस है और कॉंग्रेस ही गाँधी है. अब बिना गाँधी कैसी कॉंग्रेस! बिना मजबूत जड़ के पेड़ कब तक टीकेगा?
उत्तराखंड राष्ट्रवादी विचारधारा वाले पढ़े लिखे लोगों का राज्य है. आप इस राज्य की जनता को चुनाव से चन्द दिन पहले हमेशा लॉलिपोप नहीं थमा सकते. आपको पहले ही दिन से विकास का रोडमॅप खींच कर उसे अमलीजामा पहनाने का काम शुरू करना होगा. अन्यथा मोदी के नाम पर इस राज्य से सांसद तो शायद मेवा खाते रहें, विधायकों की चाँदी कब तक कटेगी ये आप 2017 और 2022 के आँकड़ों की तुलना कर के स्वयं ही सहजता से अनुमान लगा सकते हैं.

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