Dussehra 2022
पांच अक्टूबर को दशहरा है, इस दिन रावण का दहन किया जाएगा, लेकिन भारत में एक ऐसा पहाड़ी क्षेत्र भी है जहां इस दिन रावण दहन नहीं होता, देहरादून जिले में स्थित पहाड़ी क्षेत्र के दो गांवों में दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता है।
ये हैं कालसी के दो गांव उत्पाल्टा और कुरोली, सदियों पुरानी मान्यता का निर्वहन करते हुए दशहरे के दिन देहरादून जिले ते उत्पाल्टा और कुरोली गांव के लोगों के बीच करीब एक घंटे तक भीषण गागली युद्ध होता है, इसके बाद दोनों गांवों के लोग एक दूसरे के गले मिलकर पाइता पर्व की बधाइयां देते हैं।
लोग दो सगी बहनों की घासफूस की प्रतिमा को कुएं में विसर्जित करते हैं,सुबह थाती-माठी और गांव के कुल देवता बत्तिसर देव की पूजा करते हैं।
दशहरे के दिन जब पूरा देश रावण दहन कर अपने अंदर की बुराइयों को खत्म करने का संकल्प लेते हैं, उसी दिन देहरादून जिले में जौनसार बावर क्षेत्र के दो गांवों में कुछ अलग ही नजारा देखने को मिलता है। यहां पर दशहरे की जगह पर अरबी के डंठलों से गागली युद्ध करते हैं, इस युद्ध में किसी की भी हार जीत नहीं होती।
Dussehra 2022
पौराणिक कथाओं के अनुसार 200 साल पहले रानी और मुन्नी नाम की दो बहनें थी। दोनों साथ साथ कुएं में पानी भरने जाती थीं। एक दिन रानी की कुएं में गिरने से मौत हो गई। लोगों ने रानी की मौत के लिए मुन्नी को दोषी ठहराया, इससे तंग आकर मुन्नी ने भी कुएं में छलांग लगाकर जान दे दी।
बहनों की मौत के श्राप से बचने के लिए लोग महासू देवता की शरण में गए। देवता ने श्राप से बचने के लिए दोनों बहनों की घासफूस की प्रतिमाओं को दशहरे के दिन कुएं में विसर्जित करने की बात कही। तब से उत्पाल्टा में पाइता पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।
![उत्तराखंड के इन गांवों में नहीं होता रावण दहन,दो बहनों के बनते हैं पुतले 2 Dussehra 2022](https://devbhoominews.com/wp-content/uploads/2022/09/istockphoto-1179814955-612x612-1-600x400-1-300x200.jpg)
Dussehra 2022
लोग दशहरे के दिन पश्चाताप स्वरुप गागली युद्द करते हैं, ग्रामीणों का कहना है कि जब तक गांव में दशहरे के दिन दो कन्याओं का जन्म नहीं हो जाता तब तक ये परंपरा जारी रहेगी, ताकि गांव को किसी अनहोनी से बचाया जा सके।
एक महीने से शूरू होती है तैयारियां
दशहरा पर्व मनाए जाने वाले पाइता पर्व के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं, गागली के डंठलों को काट कर सुखाया जाता है, इसके बाद इन डंठलों का इस्तेमाल लड़ाई के लिए किया जाता है।
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