/ Oct 22, 2024

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जानिए क्यों मनाया जाता है धनतेरस, क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा?

DHANTERAS: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस साल 30 अक्टूबर को धनतेरस मनाया जाएगा। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, जिससे इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है, जिन्हें चिकित्सा विज्ञान के प्रवर्तक और भगवान विष्णु का अंश माना जाता है। इसके साथ ही माता लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है। यह दिन दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत का प्रतीक भी है।

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भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को सबसे बड़ा धन माना गया है और इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि को स्वास्थ्य और चिकित्सा के देवता के रूप में पूजा जाता है, और वे चिकित्सा विज्ञान का प्रसार करने वाले माने जाते हैं। धनतेरस के दिन घर के द्वार पर तेरस के दीपक जलाने की प्रथा है, जिसका धार्मिक महत्व यह है कि यह अंधकार को दूर करने और समृद्धि लाने का प्रतीक है। धनतेरस का शाब्दिक अर्थ ‘धन का तेरह गुना’ होता है और इस दिन भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण वैद्य समाज इसे धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मनाता है।

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DHANTERAS से जुड़ी पौराणिक कथा 

धनतेरस के साथ एक पुरानी कथा जुड़ी हुई है, जो समुद्र मंथन के समय की है। शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे और यह तिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी थी। इसी कारण इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है, क्योंकि अमृत कलश का प्रतीक बर्तन माने जाते हैं। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के बाद, दो दिन बाद माता लक्ष्मी भी समुद्र से प्रकट हुईं और उसी दिन दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा।

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यमराज और धनतेरस

धनतेरस से जुड़ी एक और प्रसिद्ध कथा यमराज और यमदूतों के संवाद पर आधारित है। एक बार यमराज ने अपने यमदूतों से पूछा कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में उन्हें दया आई है। यमदूतों ने कहा कि वे केवल आदेश का पालन करते हैं, लेकिन एक यमदूत ने बताया कि एक बार ऐसा हुआ था। उसने कहा कि राजा हंस, जो शिकार पर गया था, भटककर राजा हेमा की सीमा में चला गया, जहां उसे आदर-सत्कार मिला। उसी दिन हेमा के घर एक पुत्र का जन्म हुआ और ज्योतिषों ने भविष्यवाणी की कि इस बालक की विवाह के चार दिन बाद ही मृत्यु हो जाएगी।

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राजा ने बालक को ब्रह्मचारी जीवन जीने के लिए एक गुफा में रखा, ताकि वह स्त्रियों से दूर रहे। लेकिन नियति के अनुसार, राजा हंस की पुत्री उस बालक से मिल गई और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद बालक की मृत्यु हो गई और उसकी पत्नी के करुण विलाप ने यमदूत का हृदय पिघला दिया। जब यमदूत ने यह घटना यमराज को सुनाई, तो यमराज ने कहा कि यह विधि का विधान है और इसे टाला नहीं जा सकता लेकिन DHANTERAS के दिन विधि-विधान से पूजा और दीपदान करने से अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है। तभी से दीपदान करने की प्रथा चली आ रही है।

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