ऐसा क्या दिखा अटल बिहारी को भुवन चंद्र मे!

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राजनीति में सब संभव है. कुछ नेता राजनीति में लंबा संघर्ष करते हैं लेकिन अचानक एक ऐसा चेहरा आता है जो सभी समीकरण बदल देता है. ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने अचानक ही राजनीति में इंट्री की. उत्तराखंड की राजनीति में भी एक ऐसा बड़ा नाम है जिन्हें देखकर या फिर उनके स्वभाव से नहीं लगता कि वे राजनीति में आना चाहते थे.जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे मेजर जरनल भुवन चंद्र खंडूड़ी की.

अब खंडूड़ी जी राजनीति में अचानक कैसे अवतरीत हो गये इसके पीछे भी एक रोचक किस्सा है. 1990 में भुवन चंद्र खंडूड़ी मेजर जरनल पद से भारतीय सेना के कोर ऑफ इंजिनीयर्स से रिटायर हुए. 1982 में उन्हें भारतीय सेना में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति द्वारा अति विशिष्ट सेवा मैडल भी दिया गया था. अब रिटायरमेंट के बाद खूंडूड़ी जी दिल्ली छोड़ अपने देहरादून आवास पर शिफ्ट होने की तैयारी कर रहे थे. एक दिन अचानक बीजेपी के एक नेता का उन्हें फोन आया और उनसे कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी जी आप से मिलना चाहते हैं. लेकिन अपने फौजी स्वभाव के कारण उन्होंने कह दिया कि क्या जरूरत है? फिर उन नेता जी ने कहा कि एक बार मिलने में भी क्या बुराई है? इस के बाद खंडूड़ी जी वाजपेयी जी से मिलने के तैयार हो गये. तय समय पर बीसी खंडूड़ी अटल बिहारी बाजपेयी से मिलने पहुंच गये. वहां पहुंते ही उन्हें पता चला की उन्हें वाजपेयी जी के साथ देहरादून जाना है. तब तक देश में लोकसभा चुनाव का ऐलान हो चुका था और वाजपेयी जी के साथ फिर वे देहरादून पहुंचे.

देहरादून के परेड ग्राउंड में वाजपेयी जी की जनसभा थी जिसमें खंडूड़ी जी मंच के पीछे बैठे थे, लेकिन वाजपेयी जी के कहने पर उन्होंने जनसभा को संबोधित भी किया. इस तरह से खंडूड़ी जी राजनीति में आ गये. खंडूड़ी जी के राजनीति में आने की दो वजहें मानी जाती हैं. एक तो जिसका जिक्र विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब – “हार नहीं मानूंगा” में किया है कि तब पहाड़ों में बीजेपी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. विधानसभा और लोकसभा में बीजेपी का कोई भी प्रतिनिधि नहीं था तब मंडल कमीशन के कारण जगह- जगह छात्रों के आंदोलन हो रहे थे. छात्र आत्मदाह कर रहे थे जिससे खंडूड़ी जी दुखी थे. तब कांग्रेस इस आंदोलन को लेकर कुछ कर भी नहीं रही थी. दूसरी वजह ये मानी जाती है कि तब भारतीय जनता पार्टी को सैन्य बाहुल्य पहाड़ी क्षेत्र से ऐसा नेता चाहिए था जो सैन्य पृष्टभूमि से हो दूसरा बीजेपी को एक ऐसा नेता भी चाहिए था जो हेमवती नंदन बहुगुणा परिवार से हो, जिसका संदेश पूरे उत्तर प्रदेश में जाये ये दोनों ही स्थिति में बीसी खंडूड़ी फिट बैठते थे क्योंकि वे रिटायर सैन्य अधिकारी थे और हेमवती नंदन बहुगुणा उनके मामा थे.

खंडूड़ी जी की मां कांग्रेस की सक्रिय सदस्य रही, उनकी ममेरी बहन रीता बहुगुणा जोशी और ममेरे भाई विजय बहुगुणा दोनों कांग्रेस में सक्रिय थे इसके बावजूद वे बीजेपी में आ गये. इसके बाद तात्कालिक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र ने भी उन्हें गढ़वाल सीट से चुनाव लड़ने के आदेश दे दिये. लेकिन खंडूड़ी जी ने चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया..कारण था कि वे अपने ममेरे भाई विजय बहुगुणा के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे. इसी बीच कांग्रेस ने गढ़वाल सीट से सतपाल महाराज को मैदान में उतार दिया तो फिर खंडूड़ी जी भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गये.

वे अपना पहला ही लोकसभा चुनाव, 1991 मे जीत गये. भले ही 1996 का लोकसभा चुनाव वे हारे लेकिन 1998 और 1999 के दोनों चुनाव वे जीत गये. खंडूड़ी जी को अटल बिहारी वाजपेयी जी का करिबी माना जाता था.1999 में वाजपेजी सरकार बनने के बाद उन्हें केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री बनाया गया. तब पूरे देश में स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत सड़कों का जाल बिझाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. इसके बाद 2007 में उन्हें बीजेपी ने उत्तराखंड की कमान दी. 2009 में लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन न कर पाने और बीजेपी में गुटबाजी के चलते उन्होंने इस्तीफा दे दिया. लेकिन 2011 में एक बार फिर बीजेपी ने रमेश पोखरियाल निशंक की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बनाया 2014 में उन्होंने अपना आखिरी लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी लेकिन उसके बाद खराब स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के कारण वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गये.

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