अजय सिंह बिष्ट कब और कैसे बने योगी आदित्यनाथ

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devbhoomi

जिंदगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है… यह गीत सिटीक बैठक बैठता है हमारे देश के ऐसे राजनेता पर जो अपना पहला चुनाव हार गये थे लेकिन जब चुनाव जीतना शुरू हुए तो फिर कोई हराने वाला नहीं हुआ. जब वे अपना पहला चुनाव हार थे तो तब न उनको, न उनके परिवारवालों को और ना ही उनके जानने वालों को यह महसूस हुआ होगा कि कभी ये आगे चलकर देश के ऐसे नेता बनेगे जिनकी चर्चा देश में ही नहीं पूरे विश्व में होगी. मै बात कर रह हूं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की.

बहुत कम लोग जानते हैं कि योगी आदित्यनाथ अपना पहला चुनाव हार गये थे. लेकिन तब वे योगी आदित्यनाथ नहीं अजय सिंह बिष्ट हुआ करते थे. उनके पहला चुनाव हारने और उसके बाद योगी बनने के पीछे की पूरी स्टोरी आज हम आप को बताते हैं.

योगी आदित्यनाथ यानी की अजय सिंह बिष्ट का जन्म पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के पंचूर गांव में हुआ था. शुरूआती पढ़ाई करने के बाद वे ऊच्च शिक्षा के लिए अपने पास के शहर कोटद्वार चले गये. कोटद्वार पहुंचकर उन्होंने डॉक्टर पितांबर दत्त बड़थ्वाल पीजी कॉलेज में बीएससी में दाखिला लिया. बीएससी करते हुए ही वे हिंदुत्व की विचार धारा से जुड़ गये थे. तब राम जन्मभूमि का आंदोलन चल रहा था तो उन्होंने आंदोलन में कोट्दवार में रहकर बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. जब रामजन्म भूमि के कारसेवा का रथ कोटद्वार पहुंचा तो स्वागत में अजय सिंह बिष्ट सबसे आगे थे. यहां से उनकी अलग पहचान बननी शुरू हो गई. फिर उन्होंने आरएसएस की शाखाओं में भी जाना शुरू कर दिया. कॉलेज में पढ़ रहे थे तो वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गये.

अब एबीवीपी से जुड़े तो वे छात्र राजनीति में कूद गये. अजय सिंह बिष्ट के साथी और वरिष्ठ पत्रकार विपिन बनियाल बतातें हैं कि वे होनहार छात्र तो थे ही लेकिन लाइम लाइट में रहना उन्हें कॉलेज टाइम से ही पसंद था. इसलिए 1993 में उन्होंने छात्रसंघ में चुनाव लड़ने की ठान ली. उन्होंने एबीवीपी के संगठन से छात्रसंघ में महामंत्री पद पर चुनाव लड़ने की बात रखी.लेकिन एबीवीपी संगठन ने उन्हें अपने बैनर तले चुनाव लड़ाने से साफ मना कर दिया. तब उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत एबीवीपी में राष्ट्रीय सचिव थे और उत्तराखंड के वर्तमान शिक्षा एवं ऊच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत एबीवीपी में प्रदेश मंत्री थे. वरिष्ठ पत्रकार विपिन बनियाल बतातें हैं कि एबीवीपी संगठन से अपनी बात मनवाने के लिए उन्होंने कोटद्वार में शक्ति प्रदर्शन तक किया. लेकिन फिर भी एबीवीपी ने उन्हें अपना प्रत्याशी नहीं बनाया.

तब एबीवीपी ने विनोद रावत को अध्यक्ष पद पर और दीप प्रकाश भट्ट को महामंत्री पद पर अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया. फिर नाराज अजय सिंह बिष्ट महामंत्री पद पर निर्दलीय ही उतर गये. इस चुनाव का परिणाम न उनके पक्ष में आया न एबीवीपी के पक्ष में. अरूण तिवारी इस लड़ाई में बाजी मारते हुए छात्रसंघ महामंत्री बन गये. अब अजय सिंह बिष्ट इस चुनाव में दूसरे- तिसरे नहीं पांचवे नंबर पर रहे. बीएससी करने के बाद उनका मन कोटद्वार से उठ गया और उन्होंने कोटद्वार छोड़ने का विचार बनाया. इस बीच उनके साथ एक घटना और हुई. उनके कमरे में चोरी हो गई और उनके सभी सर्टिफिकेट भी चोरी हो गये. अब यहां से होती है उनके अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्नाथ बनने की शुरूआत. बीएससी करते हुए अजय सिंह बिष्ट जब हिंदु विचार धारा से जुड़े तो उनका सम्पर्क गोरखपुर के प्रसिद्ध मंदिर गोरखनाथ के महंत, महंत अवैद्यनाथ से हो गया था. फिर अजय सिंह बिष्ट ने कोटद्वार छोड़ गोरखपुर जाकर एमएससी करने पर विचार बना लिया और एमएससी करने गोरखपुर चले गये.

गोरखपुर पहुंचने पर वे वहां सिर्फ महंत अवैद्यनाथ को ही जानते थे तो वे वहीं गोरखनाथ मंदिर में रहने लगे. फिर वहां भी वे हिंदु संगठन से जुड़ गये फिर एक दिन ऐसा आया कि अजय सिंह बिष्ट ने सभी मोहमाया को त्यागते हुए नागपंथ की दीक्षा ली और वे हो गये योगी आदित्यनाथ. महंत अवैद्यनाथ बहुत कम समय में उनसे इतना प्रभावित हो गये कि उन्हें अपना उतराधिकारी बना दिया. योगी आदित्यनाथ गोरखपुर मंदिर के महंत तो बन ही गये साथ ही 1998 में उन्हें बीजेपी ने गोरखपुर लोकसभा का टिकट भी दे दिया.अजय सिंह बिष्ट भले ही अपना पहला चुनाव हार गये हों लेकिन योगी आदित्यनाथ अपना पहला चुनाव नहीं हारे और 26 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकॉर्ड उन्होंने बना दिया. उसके बाद 2014 तक वे लगातार सांसद के चुनाव जीतते रहे. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद घटनाक्रम बदला और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये..फिर 2022 में भी यूपी की जनता ने उन्हें अपना समर्थन दिया और वे दोबारा यूपी के मुख्यमंत्री बने.

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