ये केंद्रीय मंत्री कभी नहीं बना पाये अपना घर

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पहले राजनीति समाज सेवा के लिए होती थी, लेकिन अब राजनीति व्यापार बन कर रह गई है. राजनीति के इस बदले दौर में आज हम अपनी पॉलिटिकल स्टोरी में ऐसे नेता की बात कर रहे हैं जो चार बार सांसद रहे, केंद्रीय मंत्री रहे और संसद में तो आधा दर्जन से अधिक समितियों के सदस्य रहे, लेकिन उन्होंने अपना पूरा जीवन किराये के मकान में काटा और कभी एक स्कूटर तक नहीं खरीद सके, जिंदगीभर रोजवेज की बसों में ही उन्होंने सफर किया.

आजादी के बाद वे 1948 में गढ़वाल जिला परिषद के निर्विरोध अध्यक्ष बनें और 1949 से 1952 तक देहरादून और पौड़ी जिले के जिला नियोजन अधिकारी रहे. 1952 में देश में पहले लोकसभा चुनाव हुए तो उन्हें कांग्रेस ने गढ़वाल लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बना दिया.  1952 का चुनाव जीतने के बाद वे 1957, 1962 और 1967 का लोकसभा चुनाव भी जीते.  इस बीच वे जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के साथ मंत्रीमंडल में सदस्य रहे. केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहते हुए पूरे देश में केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना की.  पूरे देश में हिंदी के विकास में इनका प्रमुख योगदान रहा है.  इनके प्रयासों से ही केंद्रीय हिंदी निदेशालय की स्थापना हुई. इनका दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदी के    प्रचार- प्रसार में अद्वितीय योगदान रहा है.

उत्तरकाशी में नेहरू पर्वातारोहण संस्थान खोलने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है. 1972 में इन्होंने सक्रिय राजनीति से खुद को किनारे कर दिया. उसके बाद वे 1971 से 1977 तक कानपुर विश्विद्यालय के कुलपति रहे और 1988 से 1990 तक उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष रहे. इनता सब कुछ होने के बावजूद भी वे अपने लिए एक मकान तो दूर एक कमरा तक नहीं बना पाये. जिंदगी भर किराये के ही मकानों में रहे. यहां तक कि जब 30 अप्रैल 1991 उनकी मृत्यु हुई तो तब भी वे देहरादून के चुक्खूवाल में किराये पर ही रहते थे.

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