पांडवों ने क्यों खाया अपने ही मृत पिता पांडु का मांस?

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पांडवों ने क्यों खाया अपने ही मृत पिता पांडु का मांस?

देहरादून ब्यूरो। महाभारत काल से जुड़े ऐसे कई रहस्य हैं जिनके बारे में शायद ही किसी को जानकारी होगी। ऐसा ही हैरान कर देने वाला एक वाक्य है जब पांडवों ने अपने ही पिता के मरने के बाद उनका मांस खाया था। मगर उन्होंने ऐसा क्यों किया। अगर हम कलयुग की बात करें तो आज की तारीख में हमें ऐसे कई किस्से सुनने को मिलते हैं मगर कोई भी ऐसा किस्सा नही है जिसमें किसी बेटे ने अपने ही बाप का मांस खाया हो तो फिर द्वापर युग में क्यों पांडवों ने अपने पिता पांडु का मांस खाया।

हस्तिनापुर की राज गद्दी में बैठने के बाद एक दिन राजा पांडु अपनी दोनों पत्नियों कुंती और माद्री के साथ वन में घूमने निकले। वन में विचरण करते समय राजा पांडु को एक मृग दिखाई दिया जो सहवासरत थे और उसी समय उनका शिकार करने के इरादे से राजा पांडु ने उन मृगों पर तीर चला दिया जिसके बाद मृग का जोड़ा अपने असल अवतार में आ गया। दरअसल वो मृग का जोड़ा ऋषि किदंम और उनकी पत्नी थी जो जंगल में मृग के रूप में सहवासरत थे। राजा पांडु द्वारा ऋषि और उनकी पत्नी पर इस अवस्था में तीर चलाने के कारण इस दंपति द्वारा राजा पांडु को श्राप दिया गया कि जब भी वे किसी औरत के साथ संभोग कर रहे होगें उसी दौरान उनकी मृत्यु हो जाएगी। राजा पांडु ने अपनी इस करनी के लिए ऋषि किंदम से काफी माफी मांगी मगर गुस्से में आग बबूला ऋषि ने अपने अंतिम समय में राजा पांडु को ये श्राप दे दिया।

अब इस समय तक राजा पांडु की कोई भी संतान न थी जिसके कारण राजा पांडु काफी परेशान रहने लगे। अपने इस श्राप के कारण राजा पांडु इतने दुखी रहने लगे कि उन्हें अपने महल के सुख भी काटने को आते। जिसके बाद राजा पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ सारा राज पाठ छोड़कर वन में चले गए। राजा पांडु अब ब्रम्हचार्य जीवन व्यतीत करने लगे और उन्हें ये बात अंदर से खाने लगी कि अब उनका वंश आगे कभी नही बढ़ पाएगा। अब अपने पति को हर समय परेशान देख माता कुंति को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए उस वरदान का ध्यान आया जिससे वह किसी भी देवता का आवाहन कर संतान प्राप्ति का वरदान मांग सकती थी। अब ये बात जैसे ही उन्होंने राजा पांडु को बताई तो वह बेहद खुश हो गए। जिसके बाद उन्होंने रानी कुंति से इस वरदान को इस्तेमाल कर संतान प्राप्ति की इच्छा जताई और कुंति ने देवताओं का आवाहन कर युधिष्ठर, भीम और अर्जुन को संतान के रूप में प्राप्त किया। इसके बाद कुंति ने माद्री को भी इस मंत्र का ज्ञान दिया जिसके बाद माद्री ने नकुल और सहदेव को प्राप्त किया।

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अब राजा पांडु को संतानों की प्राप्ति तो हो गई थी मगर वो उनके वीर्य से पैदा हुई संताने नहीं थी जिसके कारण पांडु पुत्रों के अंदर पांडु का ज्ञान, कौशल और बुद्धिमता नही थी। अब राजा पांडु मन ही मन इस बात का अफसोस जताते की कैसे वह अपने सभी गुण अपने पुत्रों को दें। इसी के चलते पांडु ने अपनी मृत्यु से पहले एक ऐसा वरदान मांगा जिससे उनके पुत्रों के भीतर उनके गुण आ जाएं। ये वरदान था कि उनकी मृत्यु के बाद उनके बच्चे उनके शरीर का मांस मिल-बांट कर खा लें जिससे की उनके गुण और उनका ज्ञान उनके बच्चों में चला जाए। जिसके बाद पांडु ने अपने बच्चों के सामने अपनी आखिरी इच्छा जाहिर की कि उनके मरने के बाद वह सभी उनके मांस का सेवन कर लें ताकी उनकी संतानों के अंदर पांडु के गुण आ सकें।

इसके बाद एक दिन जब राजा पांडु और रानी माद्री वन में घूम रहे थे तो वह रानी माद्री को देखकर अपने ऊपर नियंत्रण न कर पाए जिसके बाद जैसे ही पांडु ने माद्री के साथ शारीरिक संबध बनाए वैसे ही पांडु की मृत्यु हो गई। अब पांडु की मृत्यु के बाद सभी शोक में इस कदर डूबे कि सभी पांडु की आखिरी इच्छा के बारे में भूल गए जिसके बाद अंतिम संस्कार के समय जब एक चींटी पांडु के मांस का टुकड़ा लेकर जा रही थी तो सहदेव ने ये देख लिया जिसके बाद उसे अपने पिता कि बात याद आ गई और उसने बिना एक क्षण गंवाए चींटी से वो मांस का टुकड़ा छीन कर खा लिया। इसके साथ ही मांस खाने की एक कथा ये भी है कि जब पांचों भाइयों ने मांस खाना शुरू किया तो पाचों में से अपने पिता का मांस सबसे ज्यादा सहदेव ने खाया था। सहदेव ने पिता की इच्छा का पालन करते हुए पांडु के मस्तिष्क के तीन हिस्से खाए। पहला टुकड़ा खाते ही सहदेव को इतिहास का ज्ञान हुआ, दूसरा टुकड़ा खाते ही वर्तमान का ज्ञान हुआ और तीसरा टुकड़ा खाते ही भविष्य का ज्ञान हुआ। इसी कारण ये कहा जाता है कि पांचो भाइयों में सबसे ज्यादा ज्ञान सहदेव को ही था। जिसके कारण उन्हें भविष्य में होने वाली सभी घटनाओं का ज्ञान हो जाता।

पांडवों ने क्यों खाया अपने ही मृत पिता पांडु का मांस?