माथे और छाती पर गोली लगने के बाद भी कैसे इस वीर ने दुश्मन पर की ताबड़तोड़ फायरिंग

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वो योद्धा जिसे सीने और माथे पर गोली लगी बावजूद इसके वो रणभूमि में डटा रहा और खून की आखिरी बूंद तक दुश्मनों के छक्के छुड़ाता रहा। जरा याद करो कुरबानी के इस शो में आज बात करेंगे उस वीर के बारे में जिसने मात्र 9 सैनिकों के साथ से ही दुश्मनों को ऐसा खदेड़ा कि वो आजतक उस भूमि को कबजा न सके।

21 नवंबर 1916 को यूपी के शाहजहांपुर के खजूरी गांव में जन्में जदुनाथ बचपन से ही बजरंगबली के भक्त थे। इनके पिता का नाम बीरबल सिंह राठौर था जो पेशे से एक किसान थे और इनकी माता एक गृहणी थी। पढ़ाई में ज्यादा रुची न होने के कारण इन्होंने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की और इसके बाद गांव के पहलवानों में शामिल हो गए। वहीं हनुमान भक्त होने के कारण इन्होंने जिंदगी भर ब्रह्मचारी रहना का फैसला किया और साथ ही 1941 में ब्रिटिश भारतीय सेना की राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गए। भर्ती होने के एक साल बाद ही यानी की 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा अभियान चलाया गया जिसमें जदुनाथ को जापान के खिलाफ मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। युद्धभूमि में अपना अदम्य साहस दिखाने के बाद इन्हें नायक पद पर प्रमोट कर किया गया।

इसके बाद 1947 में भारत-पाकिस्तान एक दूसरे से अलग हो गए जिसके बाद कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की नीयत गड़बड़ाती नजर आई और उसने चुपके से कश्मीर पर हमला बोल दिया। जब तक भारतीय सेना इस आक्रमण को लेकर तैयार होती तब तक पाकिस्तानी सेना ने झागर पर कब्जा कर लिया था और अब उनका अगला टार्गेट था नौशेरा सेक्टर जिसके बाद भारतीय सेना की राजपूत बटालियन को दुश्मन सेना को खदेड़ कर अपना झंडा फहराने के आदेश दिए गए और 1 फ़रवरी 1948 को ये ऑपरेशन ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में चलाया गया जिसमें हमारे भारतीय जवान दुश्मन सेना को खदेड़ने में सफल भी हुए।

अब इस हार से बौखलाए पाकिस्तान ने इस बार 6 फरवरी को टैनधार पर हमला बोल दिया। जहां दुश्मन की फौज के सामने मात्र 9 भारतीय वीर तैनात थे और इन 9 सैनिकों का नेतृत्व कर रहे थे नायक जदुनाथ सिंह। अब दुश्मन किसी भी हालत में इस पोस्ट पर अपनी जीत हांसिल करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने टैनधार के आसपास के इलाके में आग लगा दी ताकि धुंए की आड़ में वे इन सैनिकों को मात दे सकते। मगर सतर्क जदुनाथ दुश्मन के प्लान पर पानी फेरते हुए अपने साथियों के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़े और दुश्मन सेना के छक्के छुड़ा दिए जिसके बाद दुश्मन को पीछे हटना पड़ा। मगर युद्ध यहीं खत्म नही हुआ था इस बार दुश्मन पहले से ज्यादा संख्या बल के साथ वापिस लौटे और एक बार फिर से पाकिस्तानी सेना ने जदुनाथ की टोली पर हमला बोल दिया। इस हमले में जदुनाथ के 4 साथी बुरी तरह घायल हो गए मगर फिर भी जदुनाथ अपने बचे हुए साथियों को युद्ध भूमि में डटे रहने और दुश्मनों को मार गिराने के लिए लगातार प्रोत्साहित करते रहे। इसके बाद बस कुछ ही क्षणों में जदुनाथ और उसकी बची हुई टोली एक बार फिरसे दुश्मनों को धूल चटानें में कामयाब हो गई। जिसके बाद दुश्मन सेना समझ गई थी कि जब तक जदुनाथ सिंह युद्ध भूमि में डटा रहेगा तब तक वह इस पोस्ट को नहीं जीत पाएंगे। जिसके बाद उन्होंने सीधे तौर पर जदुनाथ सिंह को टारगेट करना शुरू कर दिया। दुश्मन सेना के नापाक मंसूबों को भांपते हुए जदुनाथ ने ब्रिगेडियर उस्मान को इसकी सूचना दी और जल्द मदद पहुंचाने का आग्रह किया मगर जब तक कोई मदद उन तक पहुंच पाती तब तक उन्हें विरोधियों को रोक कर रखना था। अब बुरी तरह घायल होने के बावजूद भी जदुनाथ सिंह दुश्मनों पर गोलियां बरसा रहे थे। इसी बीच एक गोली जदुनाथ से सिर पर आ लगी और दूसरी गोली उनके सीने को चीरते हुए आरपार हो गई। जिसके बाद दुश्मन को लगा कि जदुनाथ मर गए हैं और अब उनकी आधी जीत तय हो गई है। मगर जदुनाथ के हाथ से अब तक बंदुक नहीं छूटी थी और अब भी खून की कुछ बंदू उनके शरीर पर मौजूद थी जो मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर थी। जब तक ब्रिगेडियर उस्मान की बैकअप टीम युद्ध भूमि में नहीं पहुंची थी तब तक जदुनाथ दुश्मनों पर गोलियां बरसाते रहे और अंत में जीत हांसिल करते हुए भारत माता की रक्षा करते हुए देश के लिए शहीद हो गए। युद्ध भूमि में निडरता से दुश्मनों का सामना करने और अपना पराक्रम दिखाने के लिए मरणोपरांत नायक जदुनाथ को सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया।

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