क्या है रेवेन्यू पुलिस,160 साल पुराने ब्रिटिश सिस्टम से क्यों नहीं मिली निजात? उत्तराखण्ड  एकलौता राज्य जिसे चाहिए छुटकारा

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Revenue Police की लड़ाई अब नौकरशाही और खाकी के बीच, अंग्रेजों से आजादी के बाद भी व्यवस्था कायम

अंग्रेजों से आजादी मिलने के सालों बाद भी वो व्यवस्था बनी हुई है, जिसे 19वीं सदी के हालात के हिसाब से लागू किया गया था और अब यह लड़ाई नौकरशाही और खाकी की हो गयी है जिसमें कई सालों से कोशिश चल रही है कि उत्तराखण्ड को उस राजस्व पुलिस [Revenue Police] से छुटकारा दिलाया जा सके, जो राज्य के करीब 60%हिस्से पर सिविल पुलिस की भरपाई करती है।

जी हाँ,उत्तराखण्ड इकलौता राज्य है, जहां आधे से ज्यादा हिस्से में पुलिस यानी खाकी वर्दी की व्यवस्था नहीं है। 1861 में ब्रिटिश राज के दौरान यहाँ पहाड़ी जिलों में रेवेन्यू पुलिस सिस्टम शुरू हुआ था। जिसके तहत राजस्व अधिकरियों [Revenue Officers]को पुलिस के बराबर अधिकार हासिल थे और वो किसी भी केस केस की जांच कर सकते थे।

Revenue Police सिस्टम बनी जी का जंजाल,अलग राज्य बने हुए उत्तराखण्ड को हो चुके 22 साल

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क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सिस्टम के करीब 160 साल और ब्रिटिशो से देश को आजादी मिलने के 75 साल बाद भी उत्तराखण्ड में यह व्यवस्था बनी हुई है? यह व्यवस्था तब भी बनी हुई है, जब उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखण्ड को राज्य बने 22 साल हो चुके हैं।  प्रदेश में यह जरूरत कई बार महसूस की गयी कि Revenue Police सिस्टम को खत्म किया जाए लेकिन यह जी का जंजाल बना हुआ है।

क्या है Revenue Police सिस्टम?

उत्तराखण्ड में कुल 9 पर्वतीय और 4 मैदानी जिले हैं। ब्रिटिश राज में यहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस कि व्यवस्था शुरू हुई थी, जिसके मुताबिक राजस्व क्षेत्रों में होने वाले हर किस्म के अपराध की जांच राजस्व police[Revenue Police]ही करती है। उत्तराखण्ड के सिर्फ 40%हिस्से में सिविल पुलिस है और राजस्व पुलिस के हिस्से में बाकी सब। गौर करने वाली बात है की राजस्व पुलिस के क्षेत्र में बीते कुछ सालों में अपराध का ग्राफ बढ़ा है। 

Revenue Police बनाम Civil Police

उत्तराखण्ड में एक हज़ार से अधिक पटवारी सर्कल में 30 %पद खाली पड़े हैं और नतीजा यह कि Revenue Police अपराधों की जांच सही तरीके और कुशलता से नहीं कर पाती। स्टाफ के साथ ही संसाधन भी रेवेन्यू पुलिस के पास कम है।दूसरी तरफ, गंभीर अपराधों के मामले सिविल पुलिस को ही सौंपे जाने लगे हैं क्योंकि उनके पास स्टाफ और संसाधन पर्याप्त हैं।

इन तमाम हालात को देखते हुए हाइकोर्ट ने याचिका के सुनवाई के दौरान सिविल पुलिस सिस्टम बनाने को लेकर निर्देश दिये थे मगर प्रदेश सरकार ने संसाधनों की कमी के हवाले से सूप्रीम कोर्ट की शरण ली। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से राजस्व क्षेत्रों में पुलिस थाने खोले जा रहे है ।

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Revenue Police से निजात के पेंच में आईएएस बनाम आईपीएस  की लड़ाई?

आकड़ों के अनुसार पुलिस अधिकारी कहते रहे हैं कि एक दशक पहले तक राजस्व क्षेत्रों मे अपराध गंभीर और ज्यादा नहीं थे लेकिन अपराधों कि संख्या और प्रवृति गंभीर होने के बाद यहां Revenue Police नाकाफी और कमजोर साबित हो चुका है। पुलिस और प्रशासन के हवाले से यह भी कहा जा चुका है कि सिविल पुलिस पूरी तरह सक्षम है हर परिस्थिति के लिए।

पिछले कुछ सालों से प्रशासनिक स्तर पर कई तरह कि कमेटियाँ बनाकर Revenue Police सिस्टम को खत्म किए जाने कि कवायद कि जा चुकी है, लेकिन कोशिश रंग नहीं लायी। एक अधिकारी के हवाले से पता चला कि यहां असल में, आईएएस और आईपीएस अफसरों के बीच यह लड़ाई का मुद्दा बन चुका है। जहां आईएएस लॉबी का मानना है कि रेवेन्यू सिस्टम से आधे से ज्यादा राज्य पर उनका वर्चस्व रह सकता है। वहीं आईपीएस लॉबी इस बात से बिलकुल इत्तिफाक़ नहीं रखती।

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