निर्मलजीत सिंह सेखों, जिन्होंने अनोखे तरीके से रणभूमि में अपनी शादी का मनाया जश्न

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देहरादून ( मनीषा रावत) :   शादी को महज कुछ ही दिन हुए थे, बीवी के हाथों की महन्दी हल्की तक न हुई थी मगर रणभूमी में युद्ध का शंखनाद बज चुका था। अब बीवी की भावनाओं के आगे देश प्रेम की जीत हो चली और अपनी शादी का जश्न मनाने के लिए ये निकल पड़े रणभूमि में।
इस वीर का नाम है निर्मलजीत सिंह सेखों, जिनका जन्म 17 जुलाई 1943 को लुधियाना के रुरका गांव में हुआ। इनके पिता तारलोचन सिंह सेखों भी भारतीय वायुसेना का हिस्सा रहे। जिसका नतीजा रहा कि बचपन से ही निर्मलजीत सिंह सेखों वीरता के किस्से सुनकर बड़े हुए और नन्हीं आखों ने एक वीरता भरा सपना देखा, भारतीय सेना में शामिल होने का।
फिर क्या था निर्मलजीत 19सड़सठ में बतौर पायलट अफसर वायूसेना का हिस्सा बने और नियुक्ती के चार साल बाद ही निर्मलजीत को फ्लाइंग अफसर के पद पर प्रमोट कर दिया गया। इसी दौरान उनकी शादी मंजीत कौर नाम की एक लड़की से हुई। शादी को महज कुछ ही दिन हुए थे। छुट्टियां कहां बिताई जाएं इस पर विचार विमर्श चल ही रहा था कि तभी 3 दिसम्बर 1971 को निर्मलजीत की यूनिट से खबर आती है कि पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया है। जिसके बाद निर्मलजीत सिंह सेखों ने बिना एक क्षण गवाएं रणभूमि में जाने का तय किया। किसी भी व्यक्ती के लिए ये बहुत मुश्किल होगा कि वो अपनी नई नवेली दुल्हन को छोड़कर एक ऐसी जगह जाए जहां से वापिस आने का कुछ पता नहीं है। मगर सेना के एक जवान के अंदर ही इतना साहस हो सकता है कि वो ऐसा कुछ कर दिखाए, जो की निर्मलजीत ने भी किया।

निर्मलजीत सिंह सेखों, जिन्होंने अनोखे तरीके से रणभूमि में अपनी शादी का मनाया जश्न

निर्मलजीत सिंह सेखों ने श्रीनगर स्थित अपनी पोस्ट पर रिपोर्ट की और 14 दिसंबर 1971 को पाकिस्ताचन अपने सेबर जेट फाइटर प्ले न F-86 के साथ भारत पर हवाई हमले के लिए उड़ान भर चुके थे। सुबह का समय था, चारों ओर धुंध छाई हुई थी, ऐसे में लड़ाकू विमानों का टेकऑफ करना थोड़ा मुशकिल साबित हो रहा था। मगर वायूसेना द्वारा 18 नेट स्क्वाड्रन विमान के साथ दुश्मन को मार गिराने की रणनीति तैयार की गई। रणनीति के तहत पहली उड़ान भरने का आदेश मिला फ्लाइंग लेफ्टिनेंट बीएस घुम्मणन को। बीएस घुम्मन को उनकी यूनिट में जी-मैंन के नाम से जाना जाता है। जैसे ही बीएस घुम्मन ने उड़ान भरी वैसे ही फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत ने भी घुम्मन को कवर देने के लिए उनके पीछे से उड़ान भरी। आसमान की इस लड़ाई में दुश्मन लगातार एयरबेस पर हमला बोल रहा था। फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह भी दुश्मन पर बारीक नजर बनाए रखे थे और इंतजार कर रहे थे सही वक्त का, जो की उन्हें जल्द मिला भी। सबसे पहले उन्होंने पाकिस्तान के दो विमानों को टारगेट किया और उनका पीछा करते हुए उन्हें तबाह कर डाला।
इसके बाद फ्लाइंग लेफ्टिनेंट बीएस घुम्मन ने विजुअल्सप खो दिए, जिसके बाद उन्हें वहां से लौटना पड़ा। अब अकेले ही सेखों पाकिस्तान के 4 और विमानों का सामना कर रहे थे। दो विमानों को गिराने के बाद सेखों ने अब पाकिस्तान के उस विमान को टारगेट किया जो भारतीय एयरबेस पर लगातार बमबारी कर रहा था। अब इससे पहले की दुश्मन कुछ भी समझ पाता सेखों ने इस विमान के भी परखच्चे उड़ा दिए और बाकी के विमान वहां से भाग निकले।
3 पाकिस्तानी विमानों को ध्वस्त करने के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों दुश्मन की नजरों में आ चुके थे। इनकी तेज रफ्तार के कारण दुश्मन के हाथ बार बार असफलता ही हाथ लग रही थी। जिसके बाद पाकिस्तानियों को ये समझ आ गया कि अगर जंग में आगे बढ़ना है तो सेखों को खत्म करना बेहद जरूरी है। मगर बेखौफ सेखों लगातार दुश्मन को शिकस्त दे रहे थे और उन्हें अपने एरिया से खदेड़ रहे थे। लेकिन तभी दुश्मन द्वारा उनके विमान को नुकसान पहुंचाया गया, जिसके बाद एयरबेस से सेखों को तुरंत एयरबेस लौटने के निर्देश दिए गए मगर सेखों नहीं माने और उन्होंने एयरबेस को जवाब दिया कि ‘जब तक मारूंगा नहीं, तब तक लौटूंगा नहीं.’
इसके बाद भी सेखों लगातार पाकिस्तानी विमानों पर हमले कर रहे थे और इसी बीच उनका एक इंजन खराब हो गया जिसके बाद फिरसे उन्हें एयर बेस द्वारा रनवे पर वापस लौटने का आदेश मिला, मगर इस बार भी सेखों नहीं माने। वे लगातार दुश्मन को खदेड़ रहे थे। मगर ऐसा करते करते सेखों का जेट लगभग जर्जर हालत में पहुंच चुका था जिसके बाद बडगाम के पास उनका विमान क्रैश हो गया। विमान के क्रैश होने के बाद भी सेखों में अभी कुछ जान बची थी, उन्होंने जेट से बाहर निकलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे कामयाब न हो सके और आखिर में वे वीरगति को प्राप्त हो गए।
सेखों की इस बहादुरी ने पाकिस्तानियों का एक बड़ा नुकसान किया था। जिसके परिणाम स्वरूप 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानियों ने भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए। वहीं इस युद्ध के परिणाम स्वरूप पूर्वी पाकिस्तान आज़ाद हुआ और बांग्लादेश के रूप में विश्व को एक नया देश मिला। अब निर्मलजीत की पत्नी अपने पती के इंतजार में बैठी थी, उनको देखने के लिए, उनसे बात करने के लिए तरस रही थी। ये इंतजार खत्म तो हुआ, निर्मलजीत घर तो लौटे मगर अपनी पत्नी से कभी बात न कर सके। वे घर लौटे तिरंगे में लिपटकर।मरणोपरांत सेखों के अदम्य साहस को देखते हुए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया और वे वायु सेना के एकलौते ऐसे अधिकारी बनें, जिन्हेंए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।