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CHANDRASHEKHAR : 38 साल बाद घर पहुंचा इस जवान का पार्थिव शरीर, मचा कोहराम

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ऑपरेशन मेघदूत के 20 जवान हो गए थे लापता, 15 के ही मिले शव 

हल्द्वानी, ब्यूरो। 38 साल बाद घर पहुंचा लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला (CHANDRASHEKHAR HARBOLA) का पार्थिव शरीर, पथराई आंखों से नहीं रूक रहे आंसु…वीरों की भूमि उत्तराखंड के आर्मी जवान लांस नायक चंद्रशेखर हर्बोला (CHANDRASHEKHAR HARBOLA) का पार्थिव शरीर आज बुधवार को 38 साल बाद उनके घर हल्द्वानी पहुंचा तो पत्नी और परिवार वालों के साथ ही सभी की आंखों से आंसु निकल गए। बता दें कि 29 मई 1984 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई तनातनी के बाद आर्मी के ऑपरेशन मेघदूत के लिए तैनात 20 जवान एवलाॅंच की चपेट में आने से लापता हो गए थे। इनमें 15 जवानों के ही शव मिल पाए थे। चंद्रशेखर हर्बोला समेत पांच जवानों का कोई पता नहीं लग पाया था।

CHANDRASHEKHAR

CHANDRASHEKHAR HARBOLA ब्रेसलेट और आर्मी बैच से हुई पहचान

38 साल बाद विगत शनिवार को आर्मी की ओर से चंद्रशेखर हर्बोला (CHANDRASHEKHAR HARBOLA) की पत्नी शांति देवी को फोन आया कि उनके पति का पर्थिव शरीर सियाचिन बाॅर्डर से मिला है। उनके हाथ में मौजूद लोहे के ब्रेसलेट में मौजूद आर्मी बैच नंबर से उसकी पहचान हुई है। अब आज तीसरे दिन उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी पहुंचा तो उनकी पत्नी, बेटी समेत सभी परिवार के लोग फूट-फूट कर रो पड़े। CHANDRASHEKHAR HARBOLA की पत्नी और बेटी ने कहा कि वह हर दिन उनसे जुड़ी कोई भी खबर आने का इंतजार करते थे। अब खुश होए या दुःखी, कुछ बुझ नहीं रहा। इतना जरूर है कि अब पिता का हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करने पर उनकी आत्मा को जरूर शांति मिलेगी।

1975 में कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे चंद्रशेखर हर्बोला 

बता दें कि 38 साल पहले 1975 में अल्मोड़ा की हाथी गुर बिंता द्वाराहाट अल्मोड़ा निवासी चंद्रशेखर हर्बोला (CHANDRASHEKHAR HARBOLA) कुमाऊं रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। इसके बाद 1984 में भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन बॉर्डर के लिए हुए संग्राम के ऑपरेशन मेघदूत में चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। मई 1984 में सियाचिन बॉर्डर पर पेट्रोलिंग के दौरान 20 सैनिक ग्लेशियर की चपेट में आ गए थे। इनमें से 15 जवानों की ही शव मिल पाए थे। लापता सैनिकों में चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे।

सियाचिन बॉर्डर पर -40 से -50 रहता है तापमान

सियाचिन बॉर्डर पर -40 से -50 रहता तापमान रहता है और यहां पर बिना संसाधनों के कोई आम व्यक्ति पलभर के लिए भी जीवित नहीं रह सकता। उनकी पत्नी के अनुसार सेना से उन्हें जानकारी मिली कि शहीद चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर अभी भी सुरक्षित है और सेना के लोहे के ब्रेसलेट से उनकी पहचान हुई है। दरअसल, सेना के इस ब्रेसलेट में उनका बैच नंबर भी था जिससे उनकी पहचान की गई। आजादी के अमृत महोत्सव से दो दिन पहले ही इस खबर से पूरे परिवार की पथराई आंखों को थोड़ा सुकून जरूर मिला था, लेकिन चंद्रशेखर हर्बोला की आत्मा को अब अंतिम संस्कार के बाद शांति मिलेगी। सैन्य सम्मान के साथ चंद्रशेखर हर्बोला का अंतिम संस्कार किया जाएगा।

CHANDRASHEKHAR : 38 साल बाद घर पहुंचा इस जवान का पार्थिव शरीर, मचा कोहराम

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