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जंग में जाने से पहले इस योद्धा ने अपने प्यार के नाम अंगूठी के साथ भेजा था ये संदेश

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कारगिल युद्ध का वो योद्धा जिसने जंग में जाने से पहले अपने बचपन के प्यार को देने के लिए एक अंगूठी अपने सीनियर को सौंपी और कहा कि ये अंगूठी उनकी होने वाली मंगेतर को दे दें। ये वाक्य युद्ध में जा रहे योद्धा के मन की पूरी व्यथा को बयां कर रहा है। हमारे चैनल को सबस्क्राइब और इस वीडियो को शेयर ज़रूर कीजिएगा क्यूंकी हमारे देश के शूरवीरों और उनके शौर्य को जानना देश के हर नागरिक के लिए बेहद ज़रूरी है।

anuj nair

कारगिल युद्ध को 22 वर्षों से ज्यादा हो चुके हैं। जिस युद्ध में हमारे जवानों ने अपने अजम्य साहस और पराक्रम दिखाकर विजय हासिल की और दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए उस युद्ध में कई वीरों ने भी भारत की जीत को अपने पवित्र खून से हमेशा हमेशा के लिए लिख डाला। इस युद्ध के एक हीरो थे कैप्टन अनुज नैय्यर जो मात्र 25 साल की उम्र में ही देश के लिए शहीद हो गए।

जंग में जाने से पहले इस योद्धा ने अपने प्यार के नाम अंगूठी के साथ भेजा था ये संदेश

इस वीर की एक ओर ख्वाहिश थी अपने बचपन के प्यार के साथ जिंदगी बिताने की और दूसरी ओर सपना था अपनी मातृ भूमी को दुश्मनों के चुंगुल से छुड़ाने का, जो साकार भी हुआ मगर प्यार की बाजी में ये योद्धा हार गया। कैप्टन अनुज अपने बचपन के प्यार से सगाई करने के लिए घर जाने ही वाले थे कि तभी कारगिल युद्ध का शंख बज गया जिसके लिए कैप्टन अनुज को युद्ध भूमी में जाना पड़ा। इस युद्ध में 17 जाट रेजिमेंट के कैप्टन अनुज नैय्यर को एक अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। टाइगर हिल के पश्चिम में प्वाइंट 4875 के एक हिस्से पिंपल कॉम्प्लेक्स को खाली कराने की जिम्मेदारी। प्वाइंट 4875 की यह पोस्ट करीबन 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित थी। इसे जीतना बेहद जरूरी था, क्योंकी ऊंचाई से दुश्मन हमारी सेना को आसानी से टारगेट कर पा रहे थे और अगर इस पोस्ट से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया जाए तो आगे की राह काफी आसान हो जाएगी। तो इसलिए एक दल के साथ कैप्टन नैय्यर ने 6 जुलाई की रात को चढ़ाई चढ़ना शुरू कर दिया। चढ़ाई बेहद मुश्किलों भरी थी मगर कैप्टन नैय्यर और उनकी टोली के सामने नहीं जीत पाई। उन्होंने ठान लिया था कि किसी भी तरह इस पोस्ट को दुश्मनों के चुंगुल से छुड़ाकर रहेंगे। मगर दुश्मनों को कैप्टन अनुज और उनके साथियों के आने की भनक लग गई थी, जिसके बाद दुश्मनों ने उन पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। कैप्टन और उनकी टीम ने भी दुश्मनों को करारा जवाब दिया और अकेले ही कैप्टन अनुज ने नौ घुसपैठियों को मार गिराया जिस दौरान वो घायल भी हो गए।

कैप्टन नैय्यर की सोच थी कि किसी भी तरह से इस पोस्ट को खाली करवाना है, जिसके लिए वह साथियों के साथ दबे पांव आगे बढ़ रहे थे। इसी बीच दुश्मन को इनके दस्तक देने की आहट मिल गई और उसने अनुज की टीम पर फायर शुरू कर दिया। कैप्टन ने साथियों के साथ मिलकर दुश्मन को करारा जवाब दिया और अकेले ही पाकिस्तान के नौ घुसपैठियों को मार गिराया। इस दौरान कैप्टन अनुज घायल भी हो गए थे मगर घायल अवस्था में ही कैप्टन अनुज नैय्यर ने मशीनगन से बंकर को तबाह कर दिया मगर जैसे ही वह विजय का तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़ रहे थे तभी दुश्मन का एक ग्रेनेड सीधा उनके ऊपर पड़ा और वह शहीद हो गए।

इसी बीच पाकिस्तानी घुसपैठियों ने वापस प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना चाहा, लेकिन पीछे से दूसरी टीम के साथ कैप्टन विक्रम बत्रा पहुंच चुके थे और उन्होंने घुसपैठियों को फिरसे वहां से खदेड़ दिया। लेकिन तिरंगा फहराने से पहले ही विक्रम बत्रा पर भी दुश्मन की गोलियां लगीं और वो देश के लिए शहीद हो गए। हालांकि 4875 पर 7 जुलाई को ही झंडा फहरा दिया गया।

जब कैप्टन अनुज नैय्यर जंग पर जा रहे थे, तो उन्होंने अपने सीनियर को एक अंगूठी दी और कहा था कि ये अंगूठी उनकी होने वाली मंगेतर को दे दें। सीनियर ने कहा कि तुम खुद देना, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं जंग पर जा रहा हूं वापस लौटूंगा या नहीं, पता नहीं। इसके बाद उन्होंने आगे कहा कि लौट आया तो खुद दे दूंगा वरना आप इसे मेरे घर भेज देना और मेरा संदेश दे देना। ये दुर्भाग्य की बात है कि रणभूमि से अनुज कभी वापस नहीं लौट सके लौटा तो तिरंगे में लिपटा हुआ उनका पार्थिव शरीर। जब उनका पार्थिव शरीर उनके घर दिल्ली पहुंचा तो उनके परिवार के साथ एक लड़की भी थी जो फूट-फूटकर रो रही थी। वो लड़की थी उनकी मंगेतर सिमरन, जिसके लिए अनुज ने लड़ाई में जाने से पहले अपने सीनियर को अंगूठी दी थी। कैप्टन अनुज नैय्यर को युद्ध में अपना पराक्रम दिखाने के लिए मरणोपरांत भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र से नवाजा गया।

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