पुरातत्व विभाग भी नही पढ़ पाया इस मंदिर का शिलालेख, अभी भी है रहस्य

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भारत भूमि आदिकाल से विश्वभर में पूजनीय रही है, साथ ही अपनी आलौकिक शक्तियों ओर दैविक भक्ति की शक्ति की अनेकानेक प्रामाणिक कथाओं से विश्वविख्यात है। आज हम बात कर रहे हैं जिला सहारनपुर के देववृन्द कस्बा में बने प्राचीन मंदिर त्रिपुर बाला सुंदरी देवी की जहाँ दूर दराज छेत्रों से श्रद्धालु अपनी मनन्ने मांगने के लिए आते हैं और इस मंदिर में आस्था है कि यहाँ जो भी आये खाली हाथ न जाये।

माता बाला सुंदरी मंदिर से युगों से विशेषता रही है कि यहाँ छुआ – छूत का नामोनिशान देखने को भी नहीं मिलता। इस मंदिर में किसी भी काल से अछूतों का प्रवेश वर्जित नहीं रहा। यहाँ के पुजारियों ने किसी भी राजा और रंक में कोई भेद नही माना।

यहाँ पर लोगों की मुख्य धारणा है कि यहाँ पर प्राचीन काल में माँ बाला सुंदरी देवी बाल कन्या के रूप में प्रकट हुई थी, उसके बाद यहाँ पर अनेकों चमत्कार छेत्र वासियों ने देखें। यहाँ पर भक्त की भक्ति पर भी कथा प्रचलित है की , ध्यानु भगत ने देवी माँ को प्रसन्न करने के लिए ओर असत्य पर सत्य की जीत को बरकरार रखने के लिए अपना शीश काट कर देवी माँ को अर्पित कर दिया।
जो कि बादशाह अकबर के समय की बात है।

इस मंदिर की अनेकों गाथाएँ प्रचलित हैं। इन्हीं गाथाओं को लेकर यहाँ प्रत्येक वर्ष चैत्र शुदी शुक्ल पक्ष में चौदस पर एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जहाँ हर वर्ष मेले के दौरान देश के कोने कोने से श्रद्धालु अपनी मनन्ने लेकर आते हैं यह मेला लगभग 15 से 20 दिनों तक लगता है। मंदिर प्रांगण के समीप एक बड़ा विशाल कुंड है जो देवी कुंड के नाम से प्रचलित है। कहा जहाँ है कि यह चौरासी बीघे में बनाया गया है जिसमें देवी माँ स्नान करती थी। जहाँ कमल के फूलों की सुंदरता देखने को मिलती है।

पुरातत्व विभाग भी नही पढ़ पाया इस मंदिर का शिलालेख, अभी भी है रहस्य

देवी के इस मंदिर के मुख्य दरबार पर एक अपठित शिलालेख है जो आजतक कोई नही पढ़ पाया, जिसमें भारत के पुरातत्व विभाग भी विफल रहे हैं।