/ Nov 07, 2025

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वंदे मातरम के 150 वर्ष हुए पूरे, पीएम ने किया स्मरणोत्सव का शुभारंभ, जानिए राष्ट्रगीत का इतिहास और महत्व

VANDE MATARAM 150 YEARS: नई दिल्ली में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर देशभर में वर्षभर चलने वाले स्मृति समारोह का शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम 7 नवंबर 2025 से 7 नवंबर 2026 तक चलेगा। इस अवसर पर स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्का भी जारी किया गया। कार्यक्रम की खास बात रही 75 संगीतकारों द्वारा वंदे मातरम का सामूहिक गायन, जो देशभर के सार्वजनिक स्थानों पर भी आयोजित किया गया। संस्कृति मंत्रालय ने दिशा-निर्देश जारी कर कहा कि इस अवसर पर स्कूलों, कॉलेजों, और सांस्कृतिक संस्थानों में विशेष कार्यक्रम, संगोष्ठियां और वंदे मातरम विषयक कला-प्रदर्शनियां आयोजित की जाएंगी।

VANDE MATARAM 150 YEARS
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VANDE MATARAM 150 YEARS:  ‘वंदे मातरम’ का ऐतिहासिक महत्व

‘वंदे मातरम’ की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1875 (अक्षय नवमी) को की थी। यह संस्कृत-प्रभावित बांग्ला भाषा में लिखा गया भक्ति काव्य है। बंकिम चंद्र (1838-1894) ब्रिटिश प्रशासन में उप-विभागीय मजिस्ट्रेट थे और साथ ही एक प्रख्यात उपन्यासकार, कवि और निबंधकार भी थे। गीत की प्रेरणा उन्हें 18वीं शताब्दी के सन्यासी विद्रोह से मिली, जब बंगाल में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष चल रहा था। यह रचना मूल रूप से पत्रिका ‘बंगदर्शन’ के लिए तैयार की गई थी। ‘वंदे मातरम’ पहली बार 1882 में बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंदमठ’ में प्रकाशित हुआ। यह उपन्यास 18वीं शताब्दी के बंगाल अकाल और सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आधारित था।

VANDE MATARAM 150 YEARS
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इसमें भारत भूमि को देवी के रूप में दर्शाया गया है। हालांकि ब्रिटिश सेंसरशिप के कारण उपन्यास का कुछ हिस्सा हटाया गया, परंतु गीत ने धीरे-धीरे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नारा बनकर राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत किया। 1896 में ‘बंगदर्शन’ के पुनः प्रकाशन में इसे पुनः शामिल किया गया। 1905 में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया, जिससे यह स्वदेशी आंदोलन का मुख्य नारा बन गया। बंगाल विभाजन के विरोध में छात्र, कार्यकर्ता और समाजसेवी इसे एकजुटता के प्रतीक के रूप में गाते थे। ब्रिटिश शासन ने इसके जनप्रभाव को देखते हुए इसे प्रतिबंधित करने का प्रयास किया, लेकिन यह आंदोलन का अभिन्न हिस्सा बना रहा।

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1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया। 1947 में विभाजन के दौरान मुस्लिम लीग ने इसके कुछ छंदों पर आपत्ति जताई, जिसके कारण संविधान सभा ने केवल पहले दो छंदों को राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी। 24 जनवरी 1950 को इसे औपचारिक रूप से भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया गया, जबकि उसी वर्ष ‘जन गण मन’ को राष्ट्रीय गान के रूप में स्वीकार किया गया। गीत में माता भूमि को दस भुजाओं वाली देवी दुर्गा के रूप में चित्रित किया गया है, जो शक्ति, सौंदर्य और मातृभूमि की महिमा का प्रतीक है।(VANDE MATARAM 150 YEARS)

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