/ Sep 30, 2025

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ऋषिकेश एम्स में 2.73 करोड़ का घोटाला, सीबीआई ने दर्ज किया मामला

AIIMS RISHIKESH CORRUPTION: ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) एक बार फिर भ्रष्टाचार के मामले में सुर्खियों में आ गया है। कार्डियक केयर यूनिट (सीसीयू) की स्थापना से जुड़े 2.73 करोड़ रुपये के घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. रवि कांत, डॉ. राजेश पासरिचा (वर्तमान में एम्स भोपाल में प्रोफेसर) और तत्कालीन स्टोरकीपर रूप सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जांच में पाया गया कि टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी कर दिल्ली की एक कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाया गया, जिससे मरीजों को निर्धारित 16 बेड वाली यूनिट का लाभ नहीं मिल पाया।

AIIMS RISHIKESH CORRUPTION
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AIIMS RISHIKESH CORRUPTION:  सीबीआई की कार्रवाई और आरोप

सीबीआई ने 26 सितंबर 2025 को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 420 (धोखाधड़ी), 406 (आपराधिक विश्वासघात) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया। जांच के अनुसार, 5 दिसंबर 2017 को जारी टेंडर के तहत एमएस प्रो मेडिक डिवाइसेस नामक दिल्ली की कंपनी को ठेका दिया गया था। कंपनी को 1 नवंबर 2019 और 13 जनवरी 2020 को दो किस्तों में कुल 8.08 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, लेकिन आपूर्ति अधूरी रही और कई जरूरी दस्तावेज गायब पाए गए। इस वजह से एम्स को वित्तीय हानि हुई और मरीजों की सुविधा भी प्रभावित हुई।

AIIMS RISHIKESH CORRUPTION
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पहले भी विवादों में रहा है एम्स ऋषिकेश

यह मामला कोई पहला नहीं है। एम्स ऋषिकेश में इससे पहले भी कई घोटाले उजागर हो चुके हैं। 2022 में रोड स्वीपिंग मशीन खरीद में 2.41 करोड़ और केमिस्ट शॉप टेंडर में 2 करोड़ रुपये के नुकसान का खुलासा हुआ था। वहीं 2023 में वेसल सीलिंग उपकरण की खरीद में 6.57 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। इन घटनाओं ने संस्थान की छवि को गहरा धक्का पहुंचाया है और टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

AIIMS RISHIKESH CORRUPTION
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सीबीआई की जांच जारी

मामले की जांच सीबीआई द्वारा जारी है। आरोपी अधिकारियों की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है। वहीं एम्स ऋषिकेश के पीआरओ संदीप कुमार ने कहा कि यह सीबीआई का आंतरिक मामला है और संस्थान का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की साख को नुकसान पहुंचाती हैं। विशेषज्ञों ने जोर दिया है कि भविष्य में ऐसे घोटालों को रोकने के लिए पारदर्शिता और सख्त निगरानी जरूरी है।

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