/ Jul 03, 2025
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EARTH ROTATION CHANGE: धरती की घूर्णन गति में तेजी आने के कारण अब दिन की लंबाई 24 घंटे से कम हो रही है। इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस (IERS) और यूनाइटेड स्टेट्स नेवल ऑब्जर्वेटरी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2025 में 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त को दिन क्रमशः 1.30, 1.38 और 1.51 मिलीसेकंड छोटा हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह धरती की गति में चल रहा अप्रत्याशित बदलाव है, जिसे अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। इस बदलाव से समय मापन की मौजूदा प्रणालियों पर गंभीर असर पड़ सकता है।
धरती 24 घंटे यानी 86,400 सेकंड में एक चक्कर पूरा करती है, जिसे सौर दिन कहा जाता है। 5 जुलाई 2024 को धरती ने अब तक का सबसे छोटा दिन रिकॉर्ड किया था, जो सामान्य से 1.66 मिलीसेकंड कम था। वैज्ञानिकों की आशंका है कि 5 अगस्त 2025 को यह रिकॉर्ड टूट सकता है जब दिन 1.51 मिलीसेकंड छोटा होगा। कुछ वैज्ञानिक इसे धरती के आंतरिक कोर, समुद्रों की लहरों, वायुमंडलीय दबाव, चंद्रमा की स्थिति और धरती की धुरी में होने वाले सूक्ष्म बदलावों से जोड़ते हैं। चंद्रमा जब धरती के भूमध्य रेखा से अधिकतम दूरी पर होता है तो उसका गुरुत्वाकर्षण प्रभाव कम होता है, जिससे धरती की गति थोड़ी बढ़ सकती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, लंबे समय में चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव से धरती की गति धीमी होती है और हर सदी दिन की लंबाई औसतन 1.8 मिलीसेकंड बढ़ जाती है। लेकिन 2020 से जो स्थिति बन रही है, उसमें यह प्रवृत्ति उलटी दिखाई दे रही है। इसे लेकर पूरी वैज्ञानिक दुनिया चकित है क्योंकि यह घटना मौजूदा खगोलीय और भौतिक नियमों की सीमा से बाहर जाती प्रतीत हो रही है। कुछ विशेषज्ञ इसका कारण चांडलर वॉबल को मानते हैं, जो धरती की धुरी में एक धीमा और अनियमित झुकाव होता है, जिसकी अवधि लगभग 430 दिन होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह बदलाव सुनने में भले ही बेहद छोटा लगे, लेकिन इसका प्रभाव अत्यधिक सटीक तकनीकों पर हो सकता है। जैसे जीपीएस सिस्टम और सैटेलाइट्स नैनोसेकंड स्तर की गणना पर निर्भर करते हैं, इसलिए मिलीसेकंड का भी अंतर नेविगेशन में त्रुटियां ला सकता है। वैश्विक वित्तीय लेनदेन, विशेषकर हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग, सटीक समय से संचालित होते हैं, और समय में सूक्ष्म बदलाव डेटा समन्वयन में बाधा डाल सकता है। इंटरनेट, क्लाउड सर्वर और संचार नेटवर्क में भी समय का एकरूप समन्वय जरूरी होता है, वरना डेटा ट्रांसफर में समस्याएं आ सकती हैं।
इस स्थिति में पहली बार “नेगेटिव लीप सेकंड” जोड़ने की आवश्यकता पड़ सकती है, जो मौजूदा तकनीकी सिस्टम्स के लिए एक नई चुनौती होगी, क्योंकि अब तक केवल पॉजिटिव लीप सेकंड के लिए ही सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर डिजाइन किए गए हैं। साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधानों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। अंतरिक्ष मिशनों की गणना में रोटेशन के बदलाव को ध्यान में रखना आवश्यक होगा, क्योंकि इससे यान की स्थिति और प्रक्षेपण समय में अंतर आ सकता है। भू-भौतिकी अनुसंधानों में भी धरती के कोर, वातावरण और समुद्रों के व्यवहार को नए मॉडल्स के आधार पर समझने की जरूरत होगी।
हालांकि आम लोगों के लिए मिलीसेकंड का यह बदलाव दैनिक जीवन में कोई फर्क नहीं डालता, लेकिन यदि यह प्रवृत्ति लंबे समय तक जारी रही तो घड़ियों और कैलेंडर सिस्टम में बदलाव लाना पड़ सकता है। तकनीकी दृष्टि से देखा जाए तो अटॉमिक क्लॉक को बार-बार समायोजित करना होगा, जो महंगा और जटिल कार्य है। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स को नेगेटिव लीप सेकंड को संभालने वाले नए समन्वय प्रोटोकॉल तैयार करने पड़ सकते हैं, जो वर्तमान में मौजूद तकनीकों से काफी अलग और जटिल हो सकते हैं।
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