एक ऐसा गांव है जहां का मुखिया खाता किसी देश में है और सोने के लिए किसी और देश में जाता है. जहां के लोगों को दोहरी नागरिता का लाभ मिलता है. जहां बिना पासपोर्ट-वीजा के लोग दो देशों की यात्रा कर सकते हैं।
सदियों पूर्व यहां रहने वाले लोगों के बीच दुश्मन का सिर काटने की परंपरा चल रही थी, जिस पर 1940 में प्रतिबंध लगाया गया।
वो गांव और कोई नही बल्कि वो गांव है नागालैंड का लोंगवा गांव….यहां का जो मुखिया है वो खाना किसी और देश में खाता हो और सोने के लिए किसी और देश में जाता है।
और इस गांव के बारे में सबसे अनोखी बात यह है कि भारत-म्यांमार सीमा इसके ठीक बीच से गुजरती है। यहां के लोगों को दोहरी नागरिकता का लाभ मिलता है… और वे लोग स्वतंत्र रुप से दोनों देशों में घूम सकते हैं…
ये गांव जितना खूबसूरत है, उतनी ही अनोखी यहां की कहानी भी है। आपको बता दें कि इस गांव का आधा हिस्सा भारत में पड़ता है और आधा म्यांमार में। इस गांव की एक और खास बात ये है कि सदियों से यहां रहने वाले लोगों के बीच दुश्मन का सिर काटने की परंपरा चल रही थी, जिस पर 1940 में प्रतिबंध लगाया गया।
म्यांमार सीमा से सटा लोंगवा गांव नागालैंड के मोन जिले में घने जंगलों के बीच में बसा भारत का आखिरी गांव है। यहां कोंयाक आदिवासी रहते हैं। इन्हें बेहद ही खूंखार माना जाता है। अपने कबीले की सत्ता और जमीन पर कब्जे के लिए वो अक्सर पड़ोस के गांवों से लड़ाइयां किया करते थे।
साल 1940 से पहले कोंयाक आदिवासी अपने कबीले और उसकी जमीन पर कब्जे के लिए वो अन्य लोगों के सिर काट देते थे। कोयांक आदिवासियों को हेड हंटर्स भी कहा जाता है। इन आदिवासियों के ज्यादातर गांव पहाड़ी की चोटी पर होते थे, ताकि वे दुश्मनों पर नजर रख सकें। हालांकि 1940 में ही हेड हंटिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। माना जाता है कि 1969 के बाद हेड हंटिंग की घटना इन आदिवासियों के गांव में नहीं हुई।
अधिकारियों ने तय किया कि दोनों देशों के बीच की सीमा रेखा गांव के बीचों-बीच से जाएगी, लेकिन कोंयाक पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
वहीं बॉर्डर के पिलर पर एक तरफ हिंदी में संदेश लिखा हुआ है और दूसरी तरफ बर्मीज में …
यहां के जो आदिवासी होते हैं उनमें मुखिया प्रथा चलती है… और कईं सारे गांवों का ये मुखिया प्रमुख होता है… और ये कईं सारी पत्नियां रख सकते हैं.. .
यहां का मुखिया है, उसकी 60 बीवियां हैं। भारत और म्यांमार की सीमा इस गांव के मुखिया के घर के बीच से होकर निकलती है। इसलिए कहा जाता है कि यहां का मुखिया खाना भारत में खाता है और सोता म्यांमार में है।