एक ऐसा मंदिर जहां पर लोग भूत प्रेत, उपरी बाधाओं के निवारण के लिए आते हैं

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एक ऐसा मंदिर जहां पर लोग भूत प्रेत उपरी बाधाओं के निवारण के लिए आते हैं….लोगों की आस्था है कि यहां से लोग बिना दवा के स्वस्थ होकर लौटते  हैं…. राजस्थान के सवाई माधोपुर और जयपुर की  सीमा रेखा पर स्थित मेंहदीपुर में बालाजी का एक प्रसिद्ध मन्दिर है जिसे “श्री मेंहदीपुर बालाजी मन्दिर” के नाम से जाना जाता है ।

बालाजी का मन्दिर मेंहदीपुर नामक स्थान पर दो पहाड़ियों के बीच स्थित है, इसलिए इन्हें “घाटे वाले बाबा जी” भी कहा जाता है । इस मन्दिर में स्थित बजरंग बली की बालरूप मूर्ति किसी कलाकार ने नहीं बनाई, बल्कि यह स्वयंभू है । इस मूर्ति को प्रधान मानते हुए बाकी मन्दिर का निर्माण कराया गया है । इस मूर्ति के सीने के बाईं तरफ़ एक अत्यन्त सूक्ष्म छिद्र है जिससे पवित्र जल की धारा निरंतर बह रही है।

बालाजी

भक्तों में मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं।  जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर में प्रवेश करने से ही चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं, भूत-पिशाच आदि पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं। कहा जाता है कि यहां आने वाले किसी भक्त पर यदि भूत प्रेत का साया हो तो, वह दूर हो जाता है। ये चमत्कार कैसे होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। ऐसी मान्यता है कि बालाजी महाराज के हजारों गण यानि कि अतशप्त आत्माएं यहां बालाजी के नित्य लगने वाले भोग की खुशबू से तृप्त हो रही हैं। इसलिए यहां भूत प्रेत के साये से परेशान लोग आते हैं और ठीक होकर जाते हैं।

मंदिर से जुडी कहानी है कि यहां तीन देवों की प्रधानता है— श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री कोतवाल (भैरव)। यह तीन देव यहां आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। इनके प्रकट होने से लेकर अब तक बारह महंत इस स्थान पर सेवा-पूजा कर चुके हैं और अब तक इस स्थान के दो महंत इस समय भी विद्यमान हैं।

शुरुआत में मेहंदीपुर धाम में घना जंगल हुआ करता था और यहां जंगली जानवरों का वास था। सुनसान होने के कारण यहां चोर-डाकुओं का भी डर था। ऐसे में आम आदमी की पहुंच इस जगह से काफी दूर थी।

प्रारंभ में यहाँ घोर बीहड़ जंगल था। चारो तरफ फैली हुई घनी झाड़ियों में जंगली जानवरों का बसेरा था। श्री मंहत जी महाराज के पूर्वज को स्वप्न आया और स्वप्न की अवस्था में ही वे उठ कर चल दिए। उन्हें पता नहीं था कि वे कहाँ जा रहे है और इसी दौरान उन्होंने एक बड़ी विचित्र लीला देखी। एक ओर से हजारों दीपक चलते आ रहे है। हाथी घोड़ों की आवाजें आ रही है और एक बहुत बड़ी फौज चली आ रही है। उस फौज ने श्री बालाजी महाराज की मूर्ति की और दण्डवत प्रणाम किया तथा जिस रास्ते वे आए उसी रास्ते को चले गए।

गोसाई जी महाराज चकित होकर यह सब देखते ही रह गए। उन्हें कुछ डर सा लगा और वे वापस अपने गांव चले गए किन्तु नींद नहीं आई और बार-बार उसी विषय पर विचार करते हुए उनकी जैसे ही आँखें लगी उन्हें स्वप्न में तीन मूर्तिया दिखी। उनके कानों में यह आवाज आई – “उठो, मेरी सेवा का भार ग्रहण करो। मैं अपनी लीलाओं का विस्तार करूंगा“ यह बात कौन कह रहा था, कोई दिखाई नहीं पड़ा। गोसाई जी ने फिर इस बात पर ध्यान नहीं दिया और अन्त में हनुमान जी महाराज ने स्वंय उन्हें दर्शन दिए और पूजा का आग्रह किया।

दूसरे दिन गोसाई जी महाराज उस मूर्ति के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चारो ओर से घंटा-घड़ियाल और नगाड़ों की आवाज आ रही है, किन्तु दिखाई कुछ नहीं दिया। इसके बाद श्री गोसाई जी ने आस-पास के लोग इकट्ठे किए और सारी बातें उन्हें बताई। गोसाई जी ने सब लोगों के साथ मिलकर वहां बालाजी महाराज की एक छोटी सी तिवारी बना दी, तत्पश्चात वहाँ पूजा-अर्चना होने लगी।

मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस मूर्ति को नष्ट करने की कुचेष्टा की, लेकिन वे असफल रहे। वे इसे जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया। भक्तजन इस चोलें को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुँचे, जहाँ से उन्हें चोले को गंगा में प्रवाहित करने जाना था। ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी ज्यादा हो जाता और कभी कम हो जाता। असमंजस में पड़े रेलवे स्टेशन मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के चमत्कार को नमस्कार किया। इसके बाद बालाजी को नया चोला चढाया गया।

यह बालाजी का मंदिर भूतप्रेतादि ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिये पूरे विश्वभर में विख्यात है, मान्यता है कि तंत्र मंत्रादि ऊपरी शक्तियों से ग्रसित व्यक्ति भी बालाजी महाराज की कृपा से बिना दवा के स्वस्थ होकर लौटते है। दुखी कष्टग्रस्त व्यक्ति को मंदिर पहुंचकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है। बालाजी को लड्डू, प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

एक ऐसा मंदिर जहां पर लोग भूत प्रेत, उपरी बाधाओं के निवारण के लिए आते हैं