जब अटल बिहारी की क्लास में दाखिला लिया उनके पिता ने

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आज हम बात कर रहें है उस शख्सियत की जिनके किस्से सब सुनना पसंद करते हैं. उन्हें भारत की अब तक की राजनीति में सबसे निर्विवाद राजनेता माना जाता है. उनको पक्ष ही नहीं विपक्ष भी सुनना पंसद करता था.जब वे एक बोलना शुरू कर देते थे तो फिर पूरा सदन बस उन्हें ही सुनना चाहता था.

जी हां हम बात कर रहे हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था. शुरूआती पढ़ाई उनकी ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में हुई और विक्टोरिया कॉलेज से उन्होंने बीए किया तब उनके तीनों विषय हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत में डिस्टिंसन आई थी. तब ग्वालियर में एमए करने के लिए कोई कॉलेज नहीं था, उन्हें एमए करने लिए कानपुर जाना था, लेकिन उनकी आर्थिक स्थित बहुत अच्छी नहीं थी. तब ग्वालियर राज के महाराज जीवाजी राव सिंधिया ने उनकी मद्द की और 75 रूपये का वजीफा हर महिना देना शुरू कर दिया. फिर बाजपेयी जी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज में राजनीति शास्त्र से एमए किया. एमए करने के बाद उनका मन वकालात करने का हुआ तो उन्होंने लॉ में एडमिशन ले लिया. अब लॉ करते हुए उनके साथ एक अनोखी घटना हो गई. वहां डीएवी कॉलेज में लॉ करने कृष्ण बिहारी बाजपेयी भी पहुंच गये.अब पूछोगे कि ये कृष्ण बिहारी बाजपेयी कौन हुए. तो ये कृष्ण बिहारी बाजपेयी अटल बिहारी बाजपेयी के पिता हुए ये अदभुत संयोग था दोनों पिता पुत्र एक ही क्लास मे पढ़ने लगे ही नहीं उन्हें छात्रावास मिला भी तो एक ही तो फिर दोनों पिता पुत्र छात्रावास में एक ही कमरे में रहने भी लगे.

अब ऐसे में पूरे डीएवी कॉलेज में दोनों पिता पुत्र की जोड़ी फेमस हो गई. पिता क्लास में पहले पहुंच जाते तो शिक्षक पुछते तुम्हारा बेटा कहां रह गया और बेटा पहले पहुंच जाता तो शिक्षक पूछते कि तुम्हारे पिता कहां रह गये. फिर यह खबर कानपुर के एक पत्रकार को भी पता चल गई. उसने और मसाला लगाकर दोनों पिता- पुत्र के चर्चे अपने अखबार में छाप दिये. फिर क्या था उनकी चर्चा डीएवी कॉलेज से बाहर कानपुर में भी होने लगी. फिर उनकी इन्हीं चर्चाओं के बाद दोनों ने अपने सेक्शन बदल दिये लेकिन वे छात्रावास में रहते साथ ही थे. अब हम अटल बिहारी बाजपेय जी जुड़ा एक और किस्सा आप को बताते हैं. बात 1984 की है अटल बिहारी बाजपेयी ग्वालियर सीट से लोकसभा चुनाव हार गये थे. हार के बावजूद वे अपनी लोकसभा सीट में आते- जाते रहते थे. एक दिन अटल बिहारी बाजपेयी दिल्ली से ग्वालियर जा रहे थे. कार में उनके साथ उनके एक सहयोगी शिवकुमार साथ में थे.अब जैसी ही उनकी कार मथुरा के पास फरे गांव से गुजरी तो तभी एक भैसों का झुंड उनकी कार के सामने आ गया उनकी कार एक भैंस से टक्करा गई.

इस हादसे में बाजपेयी जी और उनके सहयोगियों को कुछ नहीं हुआ लेकिन कार की टक्कर से भैंस की मौत हो गई इतना देखते ही ग्रामीण भी वहां पहुंच गये ये ग्रामीण अटल बिहारी बाजपेयी को नहीं पहचानते थे, ग्रामीणों को गुस्से में देख शिवकुमार ने ड्राईवर को कहा कि कार स्ट्राट हो रही है. ड्राईवर ने कहा हां तो शिव कुमार ने कहा कि कार भगाओ.अब जैसे ही कार वहां से निकलने लगी तो ग्रामीणों ने कार को घेरने का प्रयास किया. शिवकुमार अपने पास रिवाल्वर रखते थे तो उन्होंने ग्रामीणों को डराने के लिए रिवाल्वर निकाली और वहां से चल दिये, लेकिन बाजपेयी जी ने ड्राईवर को पहले थाने चलने को कहा ड्राईवर ने उनके आदेश पर कार थाने के लिए मोड़ दी. थाने पहुंचते ही बाजपेयी जी को देखकर सभी पुलिस वाले भौच्चके रह गये. उन्होंने जाते ही थानेदार को कहा कि मैं यहां मामला दर्ज कराने आया हूं…मेरी कार की टक्कर से एक भैंस की मौत हो गई…फिर उन्होंने कहा कि मैं अपनी कार यहीं छोड़ के जा रहा हूं, तुम किसान की पहचान कर उसे मेरे पास भेज देना, जिससे मैं उसका मुआवजा दे सकूं.

अब इस हादसे को कई दिन हो गये थे तो सभी लोग उस हादसे को भूल भी गये थे इस बीच भैंस का मालिक उनके पास नहीं आया. अचानक एक दिन दिव्यांग कवि बाजपेयी जी के पास आया और उन्हें अपना कविता पाठ सुनाया. कविता बाजपेयी जी को पसंद आ गई. फिर बातचीत में बाजपेयी जी ने कवि से उसका गांव पूछा. तो कवि ने कहा कि वहे फरे गांव का रहने वाला है. फरे गांव का नाम सुनते ही बाजपेयी जी को हादसे की याद आ गई. बाजपेयी जी ने कवि से कहा कि तुम्हारे गांव के पास मेरी कार से एक किसान की भैंस मर गई थी, मैने पुलिसवालों को कहा भी था लेकिन वह किसान आज तक मुआवजा लेने नहीं आया. इस पर कवि ने बताया कि वो किसान आता भी कैसे पुलिस वाले उसे घर से बाहर ही नहीं निकलने देते. इस पर बाजपेयी जी ने कवि से कहा कि अगर तुम उस किसान को मेरे पास ला जाओगे तो मैं तुम्हें लाल किले में कविता पाठ करने का मौका दूंगा. फिर कुछ दिन बाद कवि उस किसान को लेकर बाजपेयी जी के पास पहुंच गया. बाजपेयी जी ने किसान को उसकी भैंस के बदले 10 हजार का मुआवजा दिया और बाद में कवि को लालकिले में कविता पाठ करने का मौका भी दिया.

जब अटल बिहारी की क्लास में दाखिला लिया उनके पिता ने