/ Sep 28, 2025
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SHARADIY NAVRATRI 2025: प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक मनाई जाने वाले शारदीय नवरात्र हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। यह नौ दिनों का अनुष्ठानिक उत्सव मात्र नहीं है, बल्कि इसका धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक महत्व है, जो भारत की आत्मा में सदियों से रचा-बसा है। यह पर्व नारी शक्ति की सर्वोच्चता का प्रतीक है और अच्छाई की बुराई पर विजय का उद्घोष करता है। नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना को समर्पित हैं। ये रूप हमें स्थिरता, तपस्या, शांति, सृजन, मातृत्व, धर्म, रौद्रता, पवित्रता और सिद्धि का संदेश देते हैं।
शारदीय नवरात्रि का प्रमुख धार्मिक आधार मार्कण्डेय पुराण में वर्णित “देवी माहात्म्यम्” या “दुर्गा सप्तशती” है। कथा के अनुसार, असुर महिषासुर ने कठोर तपस्या से वरदान पाया था कि उसकी मृत्यु किसी देवता या पुरुष के हाथों नहीं होगी। अहंकार में डूबकर उसने तीनों लोकों में आतंक मचाया। देवताओं की सामूहिक ऊर्जा से आदिशक्ति देवी दुर्गा का प्राकट्य हुआ। त्रिदेव और अन्य देवताओं ने उन्हें अपने-अपने शक्तिशाली अस्त्र प्रदान किए। देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भीषण युद्ध चला और अंततः विजयादशमी के दिन देवी ने उसका वध किया। देवी का यही स्वरूप “महिषासुरमर्दिनी” कहलाता है।
रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पाने से पहले समुद्र तट पर नौ दिनों तक देवी चंडी की पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया। दशहरे के दिन रावण वध के साथ यह परंपरा सत्य और धर्म की विजय का उत्सव बन गई। शारदीय नवरात्रि का संबंध कृषि चक्र से भी है। वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद जब फसल घर आती है, तो यह पर्व धरती माता के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक बन जाता है। गुजरात में गरबा और डांडिया रास, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा, उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा, तथा दक्षिण भारत में गोलू परंपरा इसके प्रमुख रूप हैं।
यह पर्व हमें धर्म की अधर्म पर विजय, नारी शक्ति का सम्मान, आत्म-शुद्धि और आत्म-अनुशासन का महत्व, सामूहिक शक्ति की आवश्यकता और जीवन में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है। देवी दुर्गा का प्राकट्य इस बात का प्रतीक है कि जब सकारात्मक शक्तियां संगठित होती हैं, तो कोई भी आसुरी ताकत परास्त हो सकती है। शारदीय नवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है। यह हमें सिखाता है कि चाहे अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, सत्य और धर्म की ज्योति हमेशा विजय प्राप्त करती है। यह पर्व स्त्री शक्ति की सर्वोच्चता, आत्मबल और एकता का संदेश देता है।
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