/ Sep 22, 2025
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PITRU AMAVASYA 2025: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है, जो आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। यह काल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 को हुई थी और इसका समापन आज यानि 21 सितंबर 2025 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। इस अवधि में लोग अपने पितरों को स्मरण करते हुए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म संपन्न करते हैं।
पितृ अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहा जाता है, पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में आश्विन अमावस्या का प्रारंभ 21 सितंबर की रात 12:16 बजे होगा और समापन 22 सितंबर की रात 1:23 बजे होगा। उदय तिथि मान्य होने के कारण यह पर्व 21 सितंबर को ही मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज पितृ लोक से पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए जा रहे श्राद्ध कर्मों को स्वीकार करते हैं।
गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितरों का पृथ्वी पर निवास होता है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन वे अपने लोक लौट जाते हैं। इसी कारण इस तिथि को विशेष महत्व दिया गया है और इस दिन श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। सर्वपितृ अमावस्या का सबसे बड़ा महत्व यह है कि जिन परिवारों को अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, वे इस दिन सभी पितरों का सामूहिक श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
यह दिन पितृ दोष निवारण के लिए भी अत्यंत शुभ माना गया है। पंडितों का मानना है कि इस दिन श्राद्ध करने से वंशजों के जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस वर्ष 21 सितंबर को आंशिक सूर्य ग्रहण भी लग रहा है। सूतक काल की वजह से तर्पण और श्राद्ध कर्म दिन में ही पूरे कर लेने की सलाह दी गई है। हिंदू परंपरा में इस अमावस्या का संबंध देवी दुर्गा की पूजा से भी जोड़ा जाता है। महालय अमावस्या के बाद शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है, इसलिए यह तिथि धार्मिक दृष्टि से और भी खास बन जाती है।
7 सितंबर से शुरू हो रहें हैं पितृपक्ष 2025, जानिए क्या है श्राद्ध और तर्पण का महत्व?
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