परमवीर चक्र को डिजाइन करने के लिए क्यों एक विदेशी मूल की महिला को चुना गया?

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क्या आपको पता है कि परमवीर चक्र, अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र और शौर्य चक्र डिज़ाइन करने वाली एक विदेशी महिला थी जिन्हे भारतीय संस्कृती, वेदों और पुराणों की जबरदस्त समझ थी। आज हम आपको उसी विदेशी महिला के परमवीर चक्र डिज़ाइन करने तक की जीवन यात्रा सुनाएँगे जो हैरान करने वाली भी है और प्रेरणा देने वाली भी।

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इस महिला का नाम था ईवा योन्ने लिंडा जो बाद में सावित्री बाई खानोलकर बन गईं। 20 जुलाई 1913 को स्विटजरलैंड में जन्मी इवा के पिता पेशे से लाइब्रेरियन थे जिस कारण ईवा को छोटी उम्र से ही तरह-तरह की किताबें पढ़ने को मिलती रहीं और ये बहुत रोचक बात है कि इन्हीं किताबों के जरिए ही ईवा को भारत को जानने का मौका मिला और उन्हें हमारे भारत से इनता प्यार हुआ कि आज उस प्यार ने इतिहास रच दिया।

एक दिन ईवा अपने परिवार के साथ रिवियेरा के तट पर छुट्टियां मनाने पहुंची थी जहां उनकी मुलाकात कैप्टन विक्रम खानोलकर से हुई। कैप्टन विक्रम खानोलकर ब्रिटेन के सेन्डहर्स्ट मिलिटरी कॉलेज के छात्र थे। बस यहीं से ईवा और कैप्टन विक्रम की प्यार भरी कहानी आगे बढ़ती चली गई और ईवा बन गईं सावित्री बाई खानोलकर। शादी के बाद सावित्री बाई खानोलकर पूरी तरह से भारतीय रंगों में रंग गई और अब भारत में रहकर सावित्री बाई ने भारत को और गहराई से जानना शुरु कर दिया।

परमवीर चक्र को डिजाइन करने के लिए क्यों एक विदेशी मूल की महिला को चुना गया?

कैप्टन विक्रम की बतौर सैन्य अधिकारी पहली पोस्टिंग औरंगाबाद मे हुई। इसके बाद जब वे मेजर की पोस्टी पर प्रमोट हुए तो उनकी पोस्टिंग पटना आई जहां सावित्री बाई भी उनके साथ गईं। यहां आकर सावित्री बाई ने पटना विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और संस्कृत नाटक, वेद, और उपनिषद का गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने स्वामी रामकृष्ण मिशन का हिस्सा बनकर सतसंग सुनाने शुरू कर दिए। संगीत और नृत्य से गहरा लगाव होने के कारण सावित्री बाई इसमें निपुणता हासिल करने के लिए उस्ताद पंडित उदय शंकर की शिष्या बन गईं। यहां सभी विधाओं में पारंगत होने के बाद उन्होंने सेंट्स ऑफ महाराष्ट्र और संस्कृत डिक्शनरी ऑफ नेम्स नामक दो बुक भी लिखी, जो काफी प्रसिद्ध हुई।

देश की आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया,जिसमें हमारे देश के वीर जवानों द्वारा अदम्य साहस दिखाया गया और कई वीर योद्धा अपनी मातृ भूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। इन वीरों के बलिदान को सम्मानित करने के लिए भारतीय सेना नए पदक बनाने के काम में लग गई और इसकी जिम्मेदारी दी गई मेजर जनरल हीरालाल अट्टल को। मेजर जनरल अट्टल का मानना था कि सावित्री बाई ज्ञान का भंडार थी, उनसे ज्यादा भारतीय संस्कृती, वेदों और पुराणों की समझ शायद ही किसी को इतनी अच्छी थी जितनी की सावित्री बाई को थी। तो उन्होंने इस काम के लिए सावित्री बाई को चुना। जिसके बाद सावित्रीबाई ने कुछ दिनों तक मेहनत करने के बाद अपने डिजाइन मेजर जनरल अट्टल को भेज दिए। सावित्री बाई की महनत रंग लाई और उनके द्वारा दिया गया डिजाइन पास हो गया। ये वही परम वीर चक्र है जो भारत के सभी सैन्य शाखाओं के अधिकारियों के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार के रूप में माना जाता है।

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भारत का सर्वोच्च शौर्य अलंकरण ‘परमवीर चक्र’ 26 जनवरी 1950 को यानी की भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर पेश किया गया था। अपने जीवन में परमवीर चक्र के अलावा सावित्री बाई ने अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र, वीर चक्र और शौर्य चक्र को भी डिजाइन किया। इसके अलावा इन्होंअने जनरल सर्विस मेडल 1947 डिजाइन किया था। इसके बाद 19बावन52 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर का देहांत हो गया,इसके बाद 1952 में मेजर जनरल विक्रम खानोलकर के देहांत हो गया जिसके बाद सावित्री बाई ने खुद को पूरी तरह से अध्यात्म को समर्पित कर दिया । वे दार्जिलिंग के राम कृष्ण मिशन में चली गयीं। अपने जीवन के अन्तिम वर्ष उन्होंने अपनी पुत्री मृणालिनी के साथ गुजारे और 26 नवम्बर 1990 को वे भी इस दुनिया को अलविदा कहकर हमेशा हमेश के लिए चलीं गई। भारत के विकास में अपना महत्तवपूर्ण योगदान देने के लिए भारतीय इतिहास में इनका नाम स्वकर्णिम अक्षरों में लिखा गया।

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