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महिला नागा साधु कैसे बनती हैं, क्या ये भी पुरुष नागा साधुओं की तरह निरवस्त्र रहती हैं?

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Naga Sadhu: कुंभ के मेले में अचानक कहा से एक साथ सैकड़ों की तादाद में प्रकट हो जाते हैं नागा साधु?

Naga Sadhu: आप सभी ने पुरुष नागा साधुओं के बारे में तो बहुत कुछ सुना होगा लेकिन आप में से शायद बहुत ही कम लोगों को महिला नागा साधुओं के बारे में कुछ भी मालूम होगा। इन महिला नागा साधुओं का जीवन पुरुष नागा साधुओं से भी ज्यादा कठिन होता है और सबसे बड़ी बात कि क्या महिला नागा साधु भी पुरुष नागा साधुओं (Naga Sadhu) की तरह ही हर वक्त निरवस्त्र रहती हैं। इनके बारे में ऐसे कई रोचक तथ्य हैं जिन्हें हम आज आपको बताएगें।

आपने देखा होगा की नागा साधु आपको रोज नही दिखाई देते, ये केवल कुंभ या फिर महा कुंभ में ही दिखाई देते हैं और अचानक से ये नागा साधु (Naga Sadhu) सैकड़ों की तादाद में तीर्थनगरी की सड़कों पर उतर आते हैं। लेकिन ये नागा साधु कुंभ के अलावा कहा रहते हैं और क्या करते हैं। दरअसल नागा साधु बाकी के वर्ष तपस्या में लीन होते हैं और जंगलों, गुफाओं, पर्वतों में जाकर भगवान का ध्यान करते हैं।

कौन होती है महिला नागा साधु?

अब आपको बताते हैं कि कौन होती हैं महिला नागा साधु और महिलाओं को नागा साधु बनने के लिए क्या क्या करना पड़ता है। महिला नागा साधुओं (Mahila Naga Sadhu) का जीवन कई रहस्यों से भरा होता है। सबसे पहले तो जब कोई महिला, नागा साधु बनने की इच्छा जताती है तो सबसे पहले उसे अपने परिवार, रिश्तेदारों से और दुनिया की मोह माया से अपना बंधन तोड़ना पड़ता है।

mahila naga sadhu
Source: Social Media

इसके बाद 10 सालों तक उन्हें ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करना होता है, यानी की काम वासना से उन्हें अपना नाता हमेशा हमेशा के लिए तोड़ना पड़ता है। सन्यासिनों को सबसे पहले नदी में स्नान कराया जाता है ऐसा शुद्धिकरण करने के लिए किया जाता है, इसके बाद जाकर सन्यासिनों की साधना शुरू होती है। फिर इन 10 वर्षों में इन सन्यासिनों को सन्यास की दीक्षा दी जाती है।

कैसा रहता है सन्यसिनों का पूरा दिनचर्या

सन्यासिन पूरा दिन भगवान का नाम जपती हैं। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान शिव की पूजा करती हैं, दिन में सातविक भोजन करती हैं और शाम को भगवान दत्तात्रेय की अराधना करती हैं। हर सन्यासिन का ये रोज का दिनचर्या रहता है। जब एक सन्यासिन इन वर्षों में कड़े नियमों का पालन करते हुए हर परीक्षा में खरी उतरती है तो वो नागा साधु बनने के योग्य हो जाती हैं।   

अगर इन वर्षों में कोई महिला ब्रह्मचर्य का पालन करने में असमर्थ पायी जाती है तो वो कभी भी नागा साधु (Mahila Naga Sadhu) नहीं बन पाती, वहीं जो महिला कई सालों तक बह्मचर्य का कड़ा पालन करने में सक्षम होती है उनके बारे में ये पता किया जाता है कि महिला ने इन वर्षों में अपने परिवार के साथ कोई सम्पर्क साधा है या नहीं यानि की ये सुनिश्चित किया जाता है कि नागा साधु (Naga Sadhu)बनने जा रही महिला का सांसारिक मोह से बंधन टूटा है या नहीं।

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गुरु तय करती है कि महिला नागा साधु बन सकती है या नहीं?

इसके बाद महिला नागा साधु (Mahila Naga Sadhu) की गुरू ये तय करती है कि वो महिला नागा साधु बन सकती है या नहीं। नागा साधु बनने के लिए महिला को अपने बाल मुंडवाने होते हैं और अपना ही जीते जी पिंड दान करना पड़ता है और सांस्सारिक वस्त्र उतारकर गेरुए रंग के कपड़े धारण करने होते हैं।

ऐसा करना ये दर्शाता है कि आज के बाद वो सन्यासिन अपने परिवार और बाकी के रिश्तों से मुक्त होने जा रही है यानि की वो उनके लिए हमेशा हमेशा के लिए मर चुकी है। इन सब परीक्षाओं पर खरे उतरने के बाद एक महिला सन्यासिन, नागा साधु (Mahila Naga Sadhu) बनती है और तब जाकर उन्हें माता की उपाधि दी जाती है।

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इसके बाद जाकर महिला नागा साधुओं (Mahila Naga Sadhu) को सन्यास की सही मायने में दीक्षा दी जाती है। वहीं कुंभ के मेले में इन महिला नागा साधुओं के साथ महिला सन्यासिन भी शाही स्नान करती हैं। आपने ये भी देखा होगा कि पहले जब कुंभ या फिर महा कुंभ होता था तो उसमें ज्यादातर पुरुष नागा साधु (Naga Sadhu)ही दिखाई देते थे, मगर इस भीड़ में कुछ महिला नागा साधु भी मौजूद होती थीं। असल में ये महिला नागा साधु पुरुष नागा साधु की छांव में रहती थीं, क्योंकि इनकी संख्या पहले काफी कम थी।

कैसे बना महिला नागा साधुओं के लिए अलग अखाड़ा?

पहले महिला नागा साधुओं (Mahila Naga Sadhu) का कोई अखाड़ा नही था, फिर जब धीरे धीरे महिला नागा साधुओं की संख्या बढ़ने लगी तो 2013 में महिला नागा साधुओं ने अपना एक अलग अखाड़ा बनाए जाने की बात रखी। जिसके बाद अखाड़ों और शंकराचार्यों के बीच इस बात को लेकर काफी विवाद भी हुआ, लेकिन फिर आखिर में भारत का 14वां और महिलाओं के लिए पहला अखाड़ा बनाया गया। जिसका नाम पहले था माई बाड़ा और फिर 2013 के कुंभ में माई बाड़ा को अखाड़ा बनाते हुए नाम दिया गया दशनाम सन्यासिनी अखाड़ा।

आपको बता दें कि अब भी दशनाम सन्यासिनी अखाड़ा देश के सबसे पुराने अखाड़े यानी की जूना अखाड़े के अंदर ही शामिल है। लेकिन महिलाओं के लिए एक अलग अखाड़ा बनाए जाने के बाद महिला नागा साधुओं को एक अलग पहचान मिली और साथ ही उनका नेतृत्व करने के लिए उनकी एक अगल नेता भी हैं।

क्या पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधु भी रहती हैं निरवस्त्र?

अब आप सभी के मन में जो सवाल आ रहा होगा उसके बारे में बात कर लेते हैं कि क्या पुरुष नागा साधुओं की तरह महिला नागा साधु भी निरवस्त्र ही रहती हैं, तो इसका जवाब है नहीं। दरअसल नागा साधु (Naga Sadhu) दो प्रकार के होते हैं पहले वस्त्रधारी और दूसरे दिगंबर यानी निर्वस्त्र। पुरुष नागा साधु दिगंबर श्रेणी में आते हैं वहीं महिला नागा साधु वस्त्रधारी श्रेणी में आते हैं।

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महिला सन्यासिनी अपने शरीर में केवल एक ही वस्त्र धारण करती हैं जिसे गंती कहा जाता है। आपको बता दें कि गंती गेरुए रंग की होती है और ये सिली हुई नही होती है। सभी महिला सन्यासिनों को कुंभ के दौरान शाही स्नान करते वक्त भी नग्न अवस्था में रहने की इजाज़त नही होती है।

अचानक कुंभ के मेले में कहां से प्रकट हो जाते हैं सैकड़ों की तादाद में नागा साधु

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आपने देखा होगा कि आपको आमतौर पर सड़कों पर नागा साधु (Naga Sadhu) नहीं दिखाई देते होगें लेकिन जैसे ही कुंभ मेले की शुरुआत होती है वैसे ही सैकड़ों की तादाद में एक साथ सभी नागा साधु सड़कों पर नजर आते हैं और शाही स्नान के लिए जाते हैं। लेकिन कुंभ के आगे पीछे ये सभी नागा साधु कहां रहते हैं और कैसे बिना फोन के भी इन सभी नागा साधुओं को ये पता चल जाता है कि कुंभ शुरू होने वाला है।

Naga Sadhu कहां रहकर करते हैं साधना?

दरअसल कुंभ के आगे पीछे ये सभी नागा साधु (Naga Sadhu) भगवान की घोर तपस्या में लीन रहते हैं। नागा साधु एकांत में जाकर तपस्या करते हैं। कुछ नागा साधु पर्वतों में छिपकर यानि की गुफाओं के अंदर साधना करते हैं, इन्हें गिरी साधु के नाम से जाना जाता है। कुछ नागा साधु जंगलों में रहकर साधना करते हैं, इन्हें अरन्य नागा साधु कहा जाता है, वहीं कुछ लोग शहरों में रहकर ही भगवान की साधना करते हैं इन्हें पूरी साधु कहा जाता है।

कोतवाल पहुंचाते हैं नागा साधुओं तक संदेश

इन जगहों पर साधना करते वक्त इन नागा साधुओं (Mahila Naga Sadhu) के पास कोई फोन या फिर आधुनिक उपकरण नही होते हैं फिर कैसे इन सभी को ये ज्ञात हो जाता है कि कुंभ का महीना आने वाला है। दरअसल अखाड़ों और नागा साधुओं के बीच में कुछ लोग होते हैं जिन्हें कोतवाल की उपाधी दी जाती है। ये कोतवाल आखाड़ों और नागा साधुओं के बीच संपर्क साधने के लिए तैनात किए जाते है। कुंभ या फिर अखाड़ों से जुड़ी कोई भी सूचना जो इन नागा साधुओं तक पहुंचानी होती हैं वो यही कोतवाल पहुंचाते हैं।

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