रोकड़ा तैयार तो टिकट मेरे “चचा” कर देंगे पक्का, लोकतंत्र में परिवारवाद हावी

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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कई ऐसे प्रत्याशियों को जारी हुए एमएलए टिकट, पार्टियों के टिकट बंटवारे पर परिवारवाद हावी

देहरादून, ब्यूरो। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित करने में दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों चाहे वह भाजपा या कांग्रेस हो इन पर उम्मीदवार बनाने को लेकर परिवार वाद की छाया कहीं न कहीं दिखती हैं। भाजपा चाहे लाख दावे कर ले लेकिन, कहीं न कहीं वह भी ऐसे लोगों को टिकट जारी कर चुकी है जो कहीं न कहीं परिवारवाद के दायरे में आते हैं। वहीं, बात कांग्रेस की करें तो इस पार्टी को तो लोग पहले से ही परिवारवाद वाली पार्टी कहते रहे हैं। इस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक सोनिया-राहुल के अलावा कोई नहीं बनता। ऐसे में देश-भर में लोग किस पार्टी के नेताओं पर भरोसा करें या फिर कहें कि वह परिवारवाद की बजाय स्वच्छ छवि और सिर्फ अपना ही नहीं क्षेत्र के विकास पर भी ध्यान दे ऐसे प्रत्याशी को दावेदार बनाएं।

बात उत्तराखंड की करें तों भाजपा ने इस बार कई ऐसे टिकट बांटे हैं जो परिवारवाद ही है। देहरादून की कैंट विधानसभा हो, सल्ट विधानसभा हो या पिथौरागढ़ और सितारगंज से लेकर तमाम अन्य विधानसभाएं जिनका यहां उल्लेख नहीं है, वह क्या परिवारवाद नहीं हैं? ऐसे में आप दूसरी पार्टियों पर कैसे सवाल उठा सकते हैं कि आप परिवारवाद को बढ़ावा देने वाली पार्टियां हैं? कुल मिलाकर भाजपा भी परिवारवाद के जंजाल से बाहर आने की बजाय उलझती जा रही है। अगर भाजपा के कोई नेता असमर्थ हैं या दिवंगत हो गए हैं तो किसी और व्यक्ति को जो इस क्षेत्र में सक्रिय है, उसे अपना उम्मीदवार बना सकते हैं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यहां पार्टियों के डंडे-झंडे के खर्चे की भी आती है। ऐसे में कई लोग किसी भी पार्टी को देने या कोई भी टिकट खरीदने में भी कई बार असमर्थ देखे गए हैं।

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वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस तो पहले से ही परिवारवाद का आरोप लगती पार्टी रही है। उत्तराखंड में भी परिवारवाद के कई ऐसे उदाहरण इस बार प्रत्याशी घोषित करते वक्त लग रहे हैं, लेकिन शायद पार्टी हाईकमान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रत्याशी जीते न जीते लेकिन जिसकी चलती उसकी क्या गलती की तरह मैदान में उतार ही देना है। जीत गया तो बल्ले-बल्ले नहीं जीता तो कौन सा पहाड़ टूट रहा है। इससे टूटेगी तो सिर्फ पार्टी। ऐसे ही कई कारण हैं कि कांग्रेस देशभर में डूबता जहाज की तरह बन चुकी है। कांग्रेस में इस बार टिकट वितरण में परिवारवाद की बात करें तों भाजपा से कांग्रेस में वापस आए यशपाल आर्य, उनके बेटे संजीव आर्य, हाल ही वापस कांग्रेस में आए भाजपा के मंत्री रहे हरक सिंह की बहू अनुकृति गुसांई, हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत, सीएम रहते वक्त हरीश रावत का निजी सचिव रंजीत दास (बागेश्वर), प्रीतम सिंह के कई चहेतों सहित तमाम ऐसे नाम हैं जिनका यहां उल्लेख नहीं किया जा रहा है। कई नाम ऐसे भी होंगे जो मोटा चढ़ावा देकर पार्टी का टिकट खरीद कर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। कुल मिलाकर परिवारवाद और पुरानी कहावत ‘‘अंधा बांटे रेवड़ी फिरी-फिरी अपनों को दे’’ कहीं कहीं न इस पर सटीक बैठ रही हैं।