/ Oct 15, 2024
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KARWA CHAUTH का व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा विशेष रूप से रखा जाता है। यह व्रत पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सौभाग्य के लिए किया जाता है। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को इस पर्व का आयोजन किया जाता है। करवा चौथ भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है और इसे विशेष रूप से उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। इसका मतलब है कि वे पानी और भोजन दोनों का सेवन नहीं करतीं। यह व्रत सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी विवाहित महिलाओं के जीवन में गहरा महत्व रखता है। इस व्रत में स्त्रियां दिनभर भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की आराधना करती हैं और अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से कठिन माना जाता है, क्योंकि महिलाएं दिनभर बिना भोजन और पानी के रहती हैं, लेकिन उनके भीतर का उत्साह और भक्ति उन्हें इस कठिन तपस्या को सहर्ष पूरा करने में मदद करता है।
करवा चौथ की एक विशेषता यह है कि इस दिन चंद्रमा को विशेष महत्व दिया जाता है। चंद्रमा को ब्रह्मांड के महत्वपूर्ण देवताओं में से एक माना जाता है, जो प्रेम, शीतलता और दीर्घायु के प्रतीक होते हैं। जब रात्रि में चंद्रमा उदित होता है, तब महिलाएं पहले उसे अर्घ्य देती हैं और फिर छलनी के माध्यम से चंद्रमा और अपने पति का चेहरा देखती हैं। इस परंपरा का महत्व यह है कि छलनी के छेदों के माध्यम से पति का चेहरा देखने से पति की आयु में वृद्धि होती है। इसके बाद पति पत्नी को जल पिलाकर व्रत तुड़वाता है। यह क्षण पति-पत्नी के आपसी प्रेम और समर्पण का प्रतीक होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, करवा चौथ का व्रत सबसे पहले देवी पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। उन्होंने कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को प्राप्त किया और तब से यह व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा रखा जाने लगा। इसके पीछे की मान्यता यह है कि इस व्रत को करने से पति-पत्नी के बीच का प्रेम और बंधन और मजबूत होता है और उन्हें जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह व्रत महिलाओं के धैर्य, तपस्या और समर्पण की परीक्षा भी है, जो उन्हें मानसिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है।
इस साल करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर, रविवार को रखा जाएगा। चतुर्थी तिथि 20 अक्टूबर को दिन में 10:46 बजे शुरू होगी और 21 अक्टूबर, सोमवार को दिन में 9 बजे तक चलेगी। इस व्रत में चंद्रमा के उदय का विशेष महत्व होता है, और 20 अक्टूबर की रात 7:40 बजे चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाएगा।
आजकल करवा चौथ का स्वरूप बदल गया है, लेकिन इसका महत्व अभी भी उतना ही गहरा है। शहरी क्षेत्रों में भी यह व्रत धूमधाम से मनाया जाता है और महिलाएं इसे एक त्यौहार की तरह सेलिब्रेट करती हैं। इस दिन पति भी अपनी पत्नियों को उपहार देकर उनका सम्मान करते हैं और उनके व्रत का महत्व समझते हुए उनकी सराहना करते हैं। सोशल मीडिया और फिल्मों ने भी करवा चौथ को और लोकप्रिय बना दिया है, जिससे इस पर्व की जागरूकता बढ़ी है और यह आधुनिक समय में भी प्रासंगिक बना हुआ है।
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