/ Aug 12, 2025

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लोकसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव मंजूर, जांच के लिए 3 सदस्यीय समिति का गठन

JUSTICE YASHWANT VARMA : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इस प्रस्ताव पर 146 लोकसभा सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं। स्पीकर ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होंगे। इसी बीच, राज्यसभा में भी जस्टिस वर्मा के खिलाफ एक अलग महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन के नेतृत्व में 60 से अधिक सांसदों का समर्थन दर्ज किया गया है।

JUSTICE YASHWANT VARMA
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JUSTICE YASHWANT VARMA के खिलाफ लोकसभा में प्रस्ताव

लोकसभा में यह प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत पेश किया गया। इस प्रस्ताव को कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), जनता दल सेक्युलर (JDS), जनसेना पार्टी, असम गण परिषद (AGP), शिवसेना (शिंदे गुट), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) समेत कई दलों का समर्थन प्राप्त है। प्रमुख नेताओं में राहुल गांधी, अनुराग सिंह ठाकुर, रवि शंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, पीपी चौधरी, सुप्रिया सुले और केसी वेणुगोपाल के हस्ताक्षर भी शामिल हैं।

JUSTICE YASHWANT VARMA
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स्पीकर ओम बिरला ने बताया कि यह प्रस्ताव 31 जुलाई 2025 को प्राप्त हुआ था। अब गठित समिति तीन महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करेगी और संसद को रिपोर्ट सौंपेगी। यदि समिति आरोपों को सही पाती है, तो संसद में इस पर बहस होगी और जस्टिस वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिलेगा। महाभियोग प्रस्ताव को पारित करने के लिए लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत, यानी करीब 362 सांसदों का समर्थन, और राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होगी।

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क्या है मामला?

जस्टिस यशवंत वर्मा पर आरोप है कि 15 मार्च 2025 को उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास से अधजले नोटों का एक संदिग्ध बंडल और 15 करोड़ रुपये की नकदी बरामद हुई थी।  बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक जांच समिति ने इन आरोपों में उन्हें दोषी पाया था, लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है, क्योंकि यदि समिति आरोपों की पुष्टि करती है और प्रस्ताव पास हो जाता है, तो यह हाल के वर्षों में न्यायपालिका से जुड़े सबसे बड़े महाभियोग मामलों में से एक होगा।

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भारतीय संविधान में महाभियोग

महाभियोग भारत में सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जजों को पद से हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 218 के तहत परिभाषित किया गया है और जजों (जांच) अधिनियम, 1968 द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह केवल गंभीर आरोपों जैसे कदाचार या अक्षमता पर ही लागू होता है। प्रक्रिया में लोकसभा या राज्यसभा में कोई भी सांसद प्रस्ताव पेश कर सकता है, जिसके लिए लोकसभा में कम से कम 100 और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी हैं, साथ ही आरोप स्पष्ट रूप से दर्ज होने चाहिए।

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प्रस्ताव मिलने पर लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति प्रारंभिक जांच करते हैं और उचित आधार मिलने पर इसे स्वीकार करते हैं। इसके बाद एक तीन सदस्यीय समिति बनाई जाती है जिसमें सुप्रीम कोर्ट का एक जज, हाईकोर्ट का एक मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता शामिल होते हैं। समिति आरोपों की जांच करती है और जज को अपना पक्ष रखने का मौका देती है। जांच पूरी होने पर रिपोर्ट संसद में पेश होती है। प्रस्ताव पारित करने के लिए दोनों सदनों में सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास जाता है और राष्ट्रपति के आदेश पर जज को पद से हटा दिया जाता है।

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