कैसे एक शिक्षक बन गया राज्यपाल

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इस पॉलिटिकल स्टोरी में कहानी ऐसे राजनीतिज्ञ की जिन्होने कैरियर की शुरूआत तो शिक्षक बन कर की लेकिन शिक्षक की नौकरी ज्यादा रास नहीं आई और कूद गये राजनीति में जिसके बाद वे मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक बने. हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की.

भगत सिंह कोश्यारी का जन्म 17 जून 1942 को बागेश्वर जिले के कफकोट तहसील के पालनाधूरा गांव में हुआ था. भगत दा के जीवन की शुरूआत ही संघर्ष के साथ हुई. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय महरगाड़ से की. लेकिन जूनियर हाईस्कूल की शिक्षा लेने के लिए वे रोज 8 किलोमीटर का सफर तय कर शामा पहुंचते थे. फिर हाई स्कूल उन्होंने कफकोट और इंटर पिथौरागढ़ से किया. आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न होनें के कारण वे ऊच्च शिक्षा के लिए अल्मोड़ा महाविद्यालय चले गये. यहां पढ़ाई करते हुए उन्हें राजनीति भी पसंद आने लगी. 1961-62 में वे अल्मोड़ा कॉलेज के सचिव भी रहे यहां भी भगत दा ने अपनी अलग पहचान बना दी थी. बंद गले का कोट और घुंगराले बाल उनकी पहचान बन गई. लेकिन तब तक वे आरएसएस से नहीं जुड़े थे. फिर एमए करते हुए वे 1963 से वे आरएसएस के कार्यक्रमों में जाने लगे.

इस बीच 1964 में उत्तर प्रदेश के राजा का रामपुर इंटर कॉलेज एटा में प्रवक्ता पद पर नियुक्त हो गये. यहां उनका ज्यादा मन नहीं लगा और वे पिथौरागढ़ लौट गये. फिर पिथौरागढ़ को ही उन्होंने अपनी कर्मभूमि बना दी. साथ ही आरएसएस के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और वे प्रचारक बन गये उन्होंने 1967 में पिथौरागढ़ में सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की और 1975 तक यहां प्रधानाचार्य रहे. जनभावनाओं से जुड़े होने के कारण उनका रूझान पत्रकारिता की ओर भी हुआ और उन्होंने 1975 में पर्वत पीयूष नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र निकालना शुरू कर दिया. इसके संपादन और प्रकाशन का कार्य वे खुद करते थे. इसके बाद आपात काल लागू हो गया और वे 3 जुलाई 1975 से 23 मार्च 1977 तक जेल में बंद रहे. इसके बाद वे धीरे- धीरे राजनीति में भी कदम बढ़ाने लगे 1979 से 1985 तक और उसके बाद 1988 से 1991 तक कुमाऊं विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में प्रतिनिधि रहे.

1989 में भगत दा ने अल्मोड़ा- पिथौरागढ़ संसदीय सीट से बीजेपी के टिकेट पर चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गये. 1997 में वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में कूद गये और उत्तर प्रदेश की विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए. नवंबर 2000 में उत्तराखंड के उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद वे अंतरिम सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. इसी अंतरिम सरकार के समय 30 अक्टूबर 2001 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भी बने. 2002 को हुए उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनावों में वे जीत तो गये लेकिन बीजेपी पूर्ण बहुमत मे नहीं आ पाई. 2007 में वे एक बार फिर विधानसभा चुनाव जीते लेकिन बीजेपी ने तब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में मेजर जरनल भुवन चंद्र खंडूरी पर दांव चला. फिर वे 2008 में राज्यसभा पहुंच गये. इस बीच 2007 से 2009 तक वे उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे. 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उन्हें नैनीताल सीट से अपना प्रत्याशी बना दिया और वे देश की संसद में भी पहुँचे. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उन्हें अपना प्रत्याशी नहीं बनाया. लेकिन आरएसएस के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले भगत सिंह कोश्यारी को भारत के राष्ट्रपति ने 1 सितंबर 2019 को महाराष्ट्र का राज्यपाल नियुक्त कर दिया. भगत सिंह कोश्यारी को उत्तराखंड बीजेपी की रीड की हड्डी भी कहा जाता है. वे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट जैसे कई राजनेताओँ राजनैतिक गुरू भी हैं.

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