गोलियां खत्म होने के बावजूद भी इस योद्धा ने कैसे दी दुश्मनों को जोरदार शिकस्त

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कारगिल युद्ध का वो वीर जिसने गोलियां खत्म होने के बावजूद भी दुश्मनों का पीछा नहीं छोड़ा और आमने सामने की लड़ाई में 3 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया। “ज़रा याद करो कुरबानी” के इस शो में आज आपको बताएंगे उस वीर के बारे में जिसे मरणोपरांत नहीं बल्की जीते जी ही भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया।

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3 मार्च 1976 में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले में जन्में संजय कुमार मात्र 20 साल की उम्र मे ही सेना में भर्ती हो गए थे। 1996 में भारतीय सेना में कड़ी ट्रेनिंग के बाद उनकी तैनाती 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफ़ल्स में हुई। 1999 यानी की नौकरी के तीन साल बाद ही भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध छिड़ गया। जिसके बाद संजय कुमार की यूनिट को युद्ध भूमी में बुला दिया गया। 4 जुलाई 1999 को 13 जम्मू एंड कश्मीर राइफ़ल्स को मश्कोह घाटी में पॉइंट 4875 के फ़्लैट टॉप पर तिरंगा फहराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसके लिए उन्हें हज़ारों मीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद दुश्मन का सामना करना था, मगर दुश्मन के ऊंचाई पर होने के कारण वे बहुत आसानी से भारतीय सैनिकों को टार्गेट कर पा रहे थे। उन्होंने भारतीय सेना पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया, जिसमें संजय कुमार के कई साथी शहीद हो गए।

गोलियां खत्म होने के बावजूद भी इस योद्धा ने कैसे दी दुश्मनों को जोरदार शिकस्त

इसके बाद संजय कुमार ने सीधे रास्ते को न अपनाकर जोखिम भरा रास्ता अपनाने का प्लान बनाया। उन्होंने अपने साथियों से कहा कि हम इस खड़ी चट्टान से दुश्मन तक पहुंचेंगे, जिसे सुनकर पहले तो उनके साथी घबराए, लेकिन जब खुद संजय कुमार ने आगे बढ़कर खड़ी चट्टान में चढ़ना शुरू किया तो उससे बाकियों का हौंसला भी बढ़ा और वो भी दुश्मन को धूल चटाने के लिए निकल पड़े। अब जल्द ही संजय कुमार और उनकी टीम दुश्मन के नजदीक पहुंच चुकी थी, और इससे पहले की दुश्मन कुछ समझ पाते भारतीय सेना के वीर उन पर हमलावर हो गए और उन्होंने भारी मात्रा में पाकिस्तानियों का नुकसान कर दिया। जिसके बाद दुश्मन ने भी संजय कुमार की टीम पर बमबारी करना शुरू कर दिया। अब जिस बंकर से दुश्मन बमबारी कर रहे थे उसे उड़ाने के लिए संजय कुमार ने भी मशीन गन को अपने कंधे पर रखा और सीधे विरोधी की ओर दौड़ पड़े।

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संजय कुमार के यू इस तरह खुल्लेआम दुश्मन की ओर बढ़ने से उनके साथियों ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की, मगर संजय ने किसी की न सुनी और कुछ ही पलों में उन्होंने एक हथगोला पाकिस्तानी सेना के बंकर पर दाग दिया। अब लड़ाई यहीं ख़त्म नहीं हुई, अभी भी बड़ी संख्या में दुश्मन बचे हुए थे जो लगातार गोलियां बरसा रहे थे। इसी दौरान संजय कुमार की बंदूक की गोलियां ख़त्म हो गई थी जिसके बाद दुश्मन को लगा कि अब शायद वे संजय कुमार की टीम पर आसानी से विजय पा सकेंगे, मगर संजय कुमार कहा रुकने वाले थे। वो बिना हथियार के ही दुश्मनों पर टूट पड़े और इस दौरान संजय कुमार ने 3 घुसपैठियों को मार गिराया, मगर वे खुद भी बुरी तरह घायल हो गए। राइफलमैन संजय कुमार के यूं इस तरह युद्ध भूमी में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने से बाकी जवान भी उनसे प्ररित हुए, जिसके परिणाम स्वरूप पॉइंट 4875 पर भारतीय तिंरगा लहराया। इसके बाद भारतीय सेना ने टाइगर हिल की सभी चोटियों पर भी अपना तिरंगा फहराया और भारत ने कारगिल का यह युद्ध अपने नाम कर दिया।

इस युद्ध में संजय कुमार गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनकी पीठ और दाहिना पैर गोली लगने की वजह से बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया था। जिसके बाद उनका ऑपरेशन किया गया और समय रहते उनके शरीर से गोलियां निकाल दी गई जिसकी वजह से संजय कुमार की जान बच गई। युद्धभूमि में अपना अदम्य साहस दिखाने के लिए राइफलमैन संजय कुमार को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। फ़िलहाल वह बतौर सूबेदार मेजर सेना में कार्यरत हैं।

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