/ Apr 18, 2025
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BAISAKHI 2025: देश भर में बैसाखी के त्योहार की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। यह पर्व, जो हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है, इस बार ये त्यौहार 14 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। बैसाखी, जिसे वैसाखी भी कहा जाता है, मुख्य रूप से भारत का उत्साह के साथ मनाया जाने वाला एक प्रमुख वसंत और फसल उत्सव है। यह त्योहार न केवल रबी फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार खास तौर पर किसानों के लिए बेहद अहम होता है। इसी दिन किसान अच्छी फसल की खुशी में भगवान का धन्यवाद करते हैं और नए मौसम की शुरुआत का स्वागत करते हैं।
बैसाखी का सिख धर्म में खास धार्मिक महत्व भी है। 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसी दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने पांच प्यारों का चयन किया और उन्हें अमृतपान करवाकर खालसा पंथ में दीक्षित किया। इस घटना ने सिख समुदाय को संगठित और सशक्त पहचान दी। इसलिए सिख धर्म में बैसाखी को बहुत ही श्रद्धा और जोश के साथ मनाया जाता है पंजाब और हरियाणा में यह मुख्य रूप से फसल कटाई का त्योहार होता है। यहां लोग पारंपरिक भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करके इस दिन को खुशी-खुशी मनाते हैं।
यह दिन नए संवत्सर (हिंदू नववर्ष) की शुरुआत का भी हिस्सा माना जाता है। असम में इसे ‘बोहाग बिहू’ के नाम से जाना जाता है, जो असमिया नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। बंगाल में इसे ‘पोइला बैशाख’ कहा जाता है और यह बंगाली नव वर्ष होता है। तमिलनाडु में बैसाखी ‘पुथांडु’ के नाम से मनाई जाती है, जो तमिल नव वर्ष की शुरुआत का दिन होता है। केरल में इसे ‘विशु’ कहा जाता है, जो मलयाली नव वर्ष होता है। ओडिशा में यह ‘महा विषुव संक्रांति’ के रूप में मनाया जाता है, जो उड़िया नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। उत्तराखंड के में कई स्थानों पर इस दिन बिखौती का त्यौहार मनाया जाता है।
पिंजौर और कुरुक्षेत्र जैसे क्षेत्रों में मेले लगते हैं, जहाँ लोग लोकगीत गाते हैं और पारंपरिक खेलों में हिस्सा लेते हैं। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी बैसाखी को सूर्य के मेष राशि में प्रवेश (संक्रांति) के साथ जोड़ा जाता है, जिसे मेष संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। पंजाब के आनंदपुर साहिब में BAISAKHI के अवसर पर लगने वाला मेला देश भर में प्रसिद्ध है। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर (श्री हरमंदिर साहिब) बैसाखी पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यहाँ कोई औपचारिक मेला नहीं लगता, लेकिन इस दिन का उत्सव मेले से कम नहीं होता।
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