/ Apr 18, 2025
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AKSHAYA TRITIYA 2025: अक्षय तृतीया, जिसे वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, हिंदू और जैन धर्म में अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है। ये पर्व, इस साल 30 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन को शुभ कार्यों के लिए सबसे उत्तम दिन माना जाता है। इस साल पंचांग के अनुसार तृतीया तिथि 29 अप्रैल को शाम 5 बजकर 31 मिनट पर शुरू होकर 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक रहेगी। लेकिन हिंदू मान्यताओं में उदया तिथि को प्रधानता दी जाती है, इसलिए अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को ही मनाई जाएगी।
संस्कृत शब्द “अक्षय” का अर्थ होता है – जो कभी न क्षय हो, यानी जो नष्ट न हो। इस दिन किए गए पुण्य कर्म, दान, जप, तप और अच्छे कार्यों का फल कभी समाप्त नहीं होता। यह मान्यता पद्म पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु पुराण जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है। यह दिन “अबूझ मुहूर्त” कहलाता है, यानी इस दिन किसी भी शुभ कार्य को बिना पंचांग देखे किया जा सकता है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था। यानी यह दिन कालचक्र में एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह जानकारी कर्मकांड दीपिका और विष्णु धर्मसूत्र जैसे वैदिक ग्रंथों में दर्ज है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु ने अपने छठे अवतार परशुराम के रूप में पृथ्वी पर अवतरण किया था। परशुराम जी को क्षत्रियों के अत्याचार से पृथ्वी की रक्षा करने वाला देवता माना जाता है। उनका जन्म महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। यह विवरण भागवत पुराण और महाभारत के वनपर्व अध्याय में मिलता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण और स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही गंगा नदी का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। राजा भागीरथ के कठोर तप और प्रयत्नों के कारण यह संभव हुआ, जिससे उनके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हुआ। महाभारत के वनपर्व में उल्लेख है कि पांडवों को वनवास के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अक्षय पात्र प्रदान किया था। यह पात्र कभी खाली नहीं होता था और इससे कभी समाप्त न होने वाला भोजन प्राप्त होता था। यह घटना भी अक्षय तृतीया के दिन हुई थी।
लिंग पुराण और पद्म पुराण में उल्लेख है कि इसी दिन भगवान शिव ने कुबेर को समस्त धन-संपदा का अधिपति बनाया था। कुबेर को इस दिन विशेष रूप से पूजा जाता है, विशेषकर व्यापारी वर्ग द्वारा। अक्षय तृतीया के दिन उत्तराखंड स्थित गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलते हैं, जिससे चारधाम यात्रा की शुरुआत होती है। यह परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है और आज भी लाखों श्रद्धालु इसी दिन यात्रा की शुरुआत करते हैं।
जैन धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष स्थान है। जैन ग्रंथों के अनुसार, भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) ने एक वर्ष की तपस्या के बाद इसी दिन गन्ने के रस से पारायण (भोजन) किया था। इसलिए जैन अनुयायी इस दिन गन्ने के रस का सेवन कर व्रत का पारायण करते हैं। मनुस्मृति और धर्मसिंधु में वर्णित है कि इस दिन जल से भरे घड़े, फल, अन्न, वस्त्र, चांदी, सोना, छाते, जूते और पंखे आदि का दान विशेष पुण्यदायी होता है। मान्यता है कि इन वस्तुओं का दान अक्षय फल देता है और पितरों को तृप्ति मिलती है।
इस दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा और श्रीसूक्त का पाठ करने की परंपरा है। मंत्र “ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मयै नमः” का जाप भी अत्यंत शुभ माना गया है। अक्षय तृतीया आज भी समाज में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और नव आरंभ का प्रतीक मानी जाती है। सोना-चांदी खरीदना, नया घर लेना, नया व्यापार शुरू करना और भूमि पूजन करना इस दिन शुभ माना जाता है। यही कारण है कि बाजारों में इस दिन भारी खरीदारी देखी जाती है।
अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, यानी इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना पंचांग देखे किया जा सकता है। विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यापार शुरू करने जैसे काम इस दिन अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन सोना-चांदी खरीदने से धन-संपत्ति में बढ़ोतरी होती है। जैन धर्म में भी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन जैन साधु गन्ने का रस ग्रहण कर अपनी तपस्या का समापन करते हैं।
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 30 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 18 मिनट तक रहेगा, जो कुल 6 घंटे 37 मिनट का है। वहीं सोना और चांदी खरीदने के लिए शुभ समय सुबह 5 बजकर 41 मिनट से दोपहर 2 बजकर 12 मिनट तक रहेगा, जो कुल 8 घंटे 31 मिनट का होगा। इस दिन शोभन योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहे हैं, जो इसे और अधिक शुभ बनाते हैं। इन योगों में किया गया कोई भी कार्य विशेष फलदायी माना जाता है।
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